
उनका कहना है कि यह बिल संविधान के मूल ढांचे और अल्पसंख्यक अधिकारों का उल्लंघन करता है। दूसरी ओर, सरकार और समर्थकों का तर्क है कि यह सुधार जरूरी है ताकि वक्फ संपत्तियों का बेहतर इस्तेमाल हो सके। इस मुद्दे ने सोशल मीडिया और सार्वजनिक मंचों पर बहस को तेज कर दिया है, जिससे हिंदू-मुस्लिम ध्रुवीकरण की चर्चा फिर से सुर्खियों में है।
ये भी पढ़ें-1 बजे राज्यसभा में पेश होगा वक्फ संशोधन विधेयक
इसी बीच, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की बैंकॉक यात्रा (3-4 अप्रैल 2025) और आगामी श्रीलंका यात्रा ने भी लोगों के बीच अलग-अलग प्रतिक्रियाएं पैदा की हैं। कुछ लोग इसे कूटनीतिक रूप से जरूरी मानते हैं, क्योंकि यह बिम्सटेक शिखर सम्मेलन और भारत-थाईलैंड संबंधों को मजबूत करने से जुड़ा है। लेकिन देश में चल रहे संवेदनशील माहौल के कारण कई लोग सवाल उठा रहे हैं कि क्या यह समय विदेश यात्रा के लिए सही है।
देश के लोगों की राय इस संदर्भ में बंटी हुई दिखती है:
समर्थन में राय: कुछ लोगों का मानना है कि पीएम की विदेश यात्राएं भारत की वैश्विक स्थिति को मजबूत करती हैं। उनका कहना है कि आर्थिक और कूटनीतिक लाभ लंबे समय में देश के लिए फायदेमंद हैं, भले ही घरेलू मुद्दे गर्म हों। सोशल मीडिया पर एक वर्ग का तर्क है कि वक्फ बिल जैसे मसले संसद और कानून के दायरे में हैं, और पीएम का इनसे सीधा हस्तक्षेप जरूरी नहीं।
विरोध में राय: दूसरी ओर, खासकर विपक्षी दलों और प्रभावित समुदायों के समर्थक मानते हैं कि जब देश में धार्मिक तनाव और सामाजिक अशांति बढ़ रही है, तो पीएम का देश में रहकर स्थिति को संभालना जरूरी था। उनका कहना है कि विदेश यात्रा से “गैर-जिम्मेदाराना” रवैये का संदेश जाता है।
तटस्थ राय: कुछ लोग इसे दोनों नजरियों से देखते हैं। उनका मानना है कि विदेश यात्राएं पहले से तय होती हैं और इन्हें रद्द करना भारत की अंतरराष्ट्रीय साख को नुकसान पहुंचा सकता है, लेकिन सरकार को घरेलू मसलों पर भी सक्रियता दिखानी चाहिए।
Jubilee Post | जुबिली पोस्ट News & Information Portal
