जुबिली स्पेशल डेस्क
भारतीय विज्ञापन जगत के दिग्गज और पद्मश्री से सम्मानित रचनात्मक व्यक्तित्व पीयूष पांडे का गुरुवार को मुंबई में निधन हो गया।
वे 70 वर्ष के थे और पिछले कुछ समय से संक्रमण से जूझ रहे थे। उनकी रचनात्मकता, शब्दों की गहराई और आम लोगों से जुड़ाव ने भारतीय विज्ञापन को वैश्विक पहचान दिलाई।
ओगिल्वी इंडिया के स्तंभ रहे पीयूष पांडे
पीयूष पांडे लंबे समय तक ओगिल्वी एंड मेदर (Ogilvy & Mather) से जुड़े रहे और वहीं से उन्होंने भारतीय विज्ञापन जगत को एक नई सोच दी। ओगिल्वी इंडिया के पूर्व एग्जिक्यूटिव डायरेक्टर नीलेश जैन ने उनके निधन पर गहरी शोक संवेदना व्यक्त की। उन्होंने कहा,“पीयूष पांडे का जाना ऐसा है जैसे मेरी पूरी दुनिया ही चली गई हो।
”जैन ने याद करते हुए बताया कि उन्होंने पांडे के लिए एक बार लिखा था“दुनिया को दिखती होंगी उनकी ऊंचाइयां मगर, मुझे तो बुनियाद सा दिखता है।”उनके मुताबिक, पीयूष पांडे सिर्फ एक विज्ञापन विशेषज्ञ नहीं थे, बल्कि ओगिल्वी की आत्मा और भारतीय रचनात्मकता की बुनियाद थे।

जयपुर से वैश्विक विज्ञापन मंच तक का सफर
साल 1955 में जयपुर में जन्मे पीयूष पांडे नौ भाई-बहनों में से एक थे। उनके पिता बैंक में कार्यरत थे। उन्होंने दिल्ली विश्वविद्यालय के सेंट स्टीफन कॉलेज से इतिहास में एमए की डिग्री ली। क्रिकेट के शौकीन पांडे ने पहले राजस्थान रणजी टीम के लिए खेला, लेकिन बाद में अपनी पहचान विज्ञापन की दुनिया में बनाई।
27 वर्ष की उम्र में उन्होंने विज्ञापन जगत में कदम रखा। शुरुआती दिनों में उन्होंने और उनके भाई प्रसून पांडे ने रेडियो जिंगल्स में आवाज़ दी। वर्ष 1982 में वे ओगिल्वी एंड मेदर से जुड़े और कुछ ही वर्षों में भारत के सबसे चर्चित क्रिएटिव डायरेक्टर बन गए। उनके योगदान को देखते हुए वर्ष 2016 में उन्हें पद्मश्री सम्मान से नवाजा गया।‘फेविकॉल’ से ‘अबकी बार मोदी सरकार’ तक यादगार अभियानों के जनक पीयूष पांडे को देश का ‘एडगुरु’ कहा जाता था। उनके कई विज्ञापन भारतीय उपभोक्ताओं की स्मृति में आज भी जिंदा हैं।
उनके कुछ प्रसिद्ध अभियानों में शामिल हैं
- फेविकॉल का ट्रक वाला विज्ञापन
- पल्स पोलियो का नारा — “दो बूंदें ज़िंदगी की”
- बीजेपी का 2014 चुनाव अभियान — “अबकी बार, मोदी सरकार”
- हच का टैगलाइन — “व्हेयर यू गो, हच इज विद यू”
- कैडबरी डेयरी मिल्क — “कुछ खास है ज़िंदगी में”
- एशियन पेंट्स — “हर खुशी में रंग लाए”
फेविकॉल का जुड़ जाए कैंपेन
इसके अलावा उन्होंने प्रतिष्ठित गीत “मिले सुर मेरा तुम्हारा” भी लिखा, जो भारतीय एकता और विविधता का प्रतीक बन गया।
भारतीय विज्ञापन की आत्मा बने पीयूष पांडे
पीयूष पांडे ने भारतीय विज्ञापन को उस भाषा में ढाला, जो लोगों के दिलों में उतर सके। उनकी रचनात्मकता ने ब्रांड और भावनाओं के बीच ऐसा पुल बनाया, जिसे आने वाले वर्षों तक भुलाया नहीं जा सकेगा।
उनके निधन से भारतीय विज्ञापन जगत ने न सिर्फ एक रचनाकार, बल्कि एक विचार, एक दृष्टिकोण और एक युग खो दिया है।
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