स्मिता जैन “रेवा”
आदिवासी भारतभूमि का सबसे बड़ा समाज जो कि देश के प्राकृतिक संसाधनों की सदियों से ना केवल रक्षा कर रहा बल्कि अपना जीवन यापन प्रकृति के साथ भी कर रहा है किन्तु आज सबसे अधिक खतरे में क्योंकि वह जल, जंगल,जमीन पर सदियों से मूलनिवासी की तरह रह रहा है लेकिन आज सरकार और पूंजीपतियों के कारण उसे बेदखल किया जा रहा है, पहले आदिवासी को वनवासी बनाया और अब उनसे उनके निवास स्थानों को छीना जा रहा है। वह भी तब देश के सर्वोच्च पद पर एक आदिवासी महिला विराजमान हैं। क्या अब वह भी सिर्फ एक कठपुतली बन कर अपना कार्यकाल पूरा कर रही हैं? ऐसे में वह आदिवासी समाज किससे अपनी पीड़ा बताये?
विकास और खनन के लिए मध्यप्रदेश छत्तीसगढ़ उत्तराखंड झारखंड बिहार राजस्थान गुजरात महाराष्ट्र उत्तरप्रदेश आदि राज्यों में वर्षों पुराने पेड़ों, पहाड़ों , नदियों, जंगलों को निर्दयतापूर्वक आज धड़ाधड़ काटा जा रहा है। जबकि सबसे अधिक सरकारी योजनाओं को उसी कमजोर समाज के लिए बनाया जाता है किन्तु ऐसा लगता है कि उनके हिस्से को लूटा जा रहा है उन्हीं का हितैषी बनकर। और इवेंट मैनेजमेंट से उनके हिस्से को रूपयों को पानी की तरह बर्बाद कर दिया गया है और हमारा सुशिक्षित उपभोक्ता समाज एक बार फिर से अपनी कायराना भरी चुप्पी के साथ सिर्फ देख कर अनदेखा कर रहा है।
क्या उस कायर समाज को शुद्ध हवा,जल, जंगल और नदी, पहाड़,अनाज एवं अन्य वस्तुओं की तो जैसे ज़रूरत ही नहीं है। क्योंकि अगर उसे कमी होगी तो उनकी राम राज्य वाली जो सरकार है ना उनके लिए विदेशों से आयात कर लेगी और इस पर वह सो कालड डबल स्टैंडर्ड, सभ्य समाज खुश होकर उस संसाधनों को हथियाने वाली सरकार को फिर से चुनाव में मजबूती से जीताने में अपना महान योगदान भी दे सकती है लेकिन अपने जल जंगल जमीन के संरक्षकों की कोई मदद नहीं कर सकती हैं।
फिर दुनिया भर में बढते हुए जल,वायु,धरती प्रदूषण, के बारे में बात करना, बड़े बड़े भव्य आयोजन करना, वृक्षारोपण कार्यक्रम आयोजित करना सिर्फ एक प्रोपेगेंडा नहीं है क्या जिसमें आम जनता को गुमराह किया जा रहा है जबकि मुख्य रूप से सरकार और पूंजीपति वर्ग इसके लिए जवाबदार है।

इससे तो अच्छे हमारे पूर्वज कितने समझदार और प्रकृति को संजोकर रखने वाले होंगे जिन्होंने इस शस्यश्यामला धरती को स्वर्ग बनाने में पूरी तरह से सहयोग दिया हमारे लिए और आने वाले पीढ़ियों के लिए। जिन्होंने जंगलों और पहाड़ों को बचाने के लिए अद्भुत मंदिर और महल एवं सुरंग का निर्माण किया ताकि हमारे पेड़ पौधे और संसाधन बचे रहे और यह इकोसिस्टम ना केवल इंसानों के लिए बल्कि हर उस जीवन के लिए जो धरती पर सांस लेता है और छोड़ता है मानव समाज की जरूरत जन्म से लेकर मृत्यु तक पेड पौधों पर ही आश्रित होती है।
वर्तमान मनुष्य भले ही अपनी तकनीकी ज्ञान और प्रयोग पर गर्व करे और कहें कि उसे प्राकृतिक संसाधनों की आवश्यकता नहीं है लेकिन यह सब असंभव है क्योंकि तकनीक पेट भरने के लिए अनाज और, शुदध हवा सांसों की खातिर हमें नहीं दे सकती हैऔर हम सब कुछ भले ही प्राप्त करले तकनीक से।
(स्मिता जैन “रेवा” स्वतंत्र लेखन करती हैं, यह उनके निजी विचार हैं)
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