Sunday - 7 January 2024 - 9:05 AM

अब स्कूलों की आमदनी को इस तरह बढ़ाएगा कोरोना

प्रमुख संवाददाता

लखनऊ. कोरोना महामारी ने मास्क को ज़रुरत के साथ जोड़ दिया तो मास्क ने भी तमाम लोगों को आमदनी से जोड़ दिया. स्वयं सहायता समूहों से लेकर जेल के कैदियों तक ने इसे अपनाया और लोगों की मास्क की ज़रूरत पूरी कर अपनी आमदनी का इंतजाम भी किया लेकिन अब स्कूलों के शिकंजे में फंसकर मास्क अभिभावकों के गले की फांस भी बनने वाला है.

कोरोना महामारी की दस्तक के साथ ही मास्क पूरी दुनिया में अपनी पहुँच दर्ज करवा चुका था. लोगों ने इसे मर्जी से अपनाया या फिर डर से यह दूसरी बात है लेकिन घर से बाहर निकलने वाला शायद ही कोई व्यक्ति ऐसा बचा हो जिसने अपने चेहरे पर मास्क न लगाया हो.

यह महामारी शुरू हुई थी ठीक उसी समय देश भर की जेलों में कैदियों को मास्क बनाने के व्यवसाय से जोड़ा गया था. कैदियों ने न सिर्फ अपनी जेल के कैदियों और जेल अधिकारियों के लिए मास्क बनाए बल्कि इन्हें बाज़ार में सप्लाई भी किया गया. यही मास्क कैदियों की आमदनी का जरिया भी बन गए.

अहमदाबाद के चांगोदर शहर में धूल के प्रदूषण से बचाने वाले 80 हज़ार मास्क बनाए जाते थे. कोरोना आया तो इन मास्कों का निर्माण बंद कर दिया गया और एंटी वायरस मास्क बनाए जाने लगे. मांग बढ़ी तो दो लाख मास्क रोज़ बनने लगे. फैक्ट्री के तकनीकी प्रमुख आशीष कोटडिया के मुताबिक़ उनकी फैक्ट्री में अब दो लाख मास्क के अलावा 25 हज़ार अति सुरक्षित मास्क तैयार किये जाते हैं.

यही अति सुरक्षित मास्क एन 95 कहलाते हैं. 40 लोगों की टीम दो शिफ्टों में यह मास्क तैयार करती है. इनकी आपूर्ति पूरे देश में की जाती है. इस मास्क में फ़िल्टर क्लिप भी लगा होता है. इससे वायरस मास्क में नहीं घुस पाता है.

मास्क का बिजनेस चमकता दिखा तो कई स्वयं सहायता समूह भी इससे जुड़ते गए. मध्य प्रदेश राज्य ग्रामीण आजीविका मिशन कटनी से जुड़े महिलाओं के स्वयं सहायता समूहों ने मास्क बनाकर लाखों रुपये कमाए.

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उत्तर प्रदेश की आगरा जेल में कैदियों ने मास्क बनाने का काम शुरू किया था जो धीरे-धीरे पूरे देश की जेलों में पहुँच गया. कैदियों ने मास्क बनाकर जेल की भी आमदनी बढ़ाई और अपने रोज़गार का इंतजाम भी किया.

लोगों की ज़रूरतें पूरी करने के लिए की जाने वाली मेहनत से अगर कोई अपने पेट भरने का इंतजाम भी कर लेता है तो इसे गलत नहीं कहा जा सकता लेकिन यह व्यवस्था किसी के सर थोपने की तैयारी हो जाए तो न उगलते बनता है न निगलते बनता है. दिल्ली पब्लिक स्कूल ने अपने स्कूल में पढ़ने वाले बच्चो के लिए अपने संस्थान द्वारा बनवाया गया मास्क लेना अनिवार्य कर दिया है. इस मास्क के लिए अभिभावकों को स्कूल को चार सौ रुपये अदा करने होंगे.

मास्क के बाज़ार में सौ-डेढ़ सौ रुपये में शानदार मास्क उपलब्ध हैं. ऐसे में स्कूल से मास्क खरीदना ज़रूरी करार देना महामारी को अपारच्युनिटी में बदलने की कोशिश के सिवा कुछ नहीं है.

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