Sunday - 14 December 2025 - 10:52 AM

नए यूपी BJP अध्यक्ष पंकज चौधरी की कठिन राह, सामने हैं 5 बड़ी राजनीतिक चुनौतियां

जुबिली स्पेशल डेस्क

उत्तर प्रदेश भाजपा को आज नया प्रदेश अध्यक्ष मिलने जा रहा है। केंद्रीय राज्यमंत्री पंकज चौधरी के नाम का औपचारिक ऐलान किया जाएगा। प्रदेश अध्यक्ष पद के लिए नामांकन प्रक्रिया में पंकज चौधरी एकमात्र उम्मीदवार रहे और उन्होंने शनिवार को अपना नामांकन पत्र दाखिल किया, जिससे उनका निर्विरोध चुना जाना तय हो गया।

पंकज चौधरी उत्तर प्रदेश के महराजगंज लोकसभा क्षेत्र से सात बार सांसद रह चुके हैं। उन्हें दूसरी मोदी सरकार में केंद्रीय वित्त राज्य मंत्री की जिम्मेदारी सौंपी गई थी। कुर्मी समुदाय से आने वाले पंकज चौधरी का राजनीतिक सफर जमीनी स्तर से शुरू हुआ। उन्होंने 1989 से 1991 तक गोरखपुर नगर निगम के सदस्य के रूप में काम किया और इस दौरान एक वर्ष तक डिप्टी मेयर की भूमिका भी निभाई।

2027 की तैयारी में अहम भूमिका

ऐसे समय में जब भाजपा 2027 के विधानसभा चुनावों की तैयारियों में जुटी है, पंकज चौधरी की भूमिका बेहद अहम मानी जा रही है। भले ही उनका राजनीतिक अनुभव लंबा रहा हो, लेकिन प्रदेश अध्यक्ष की जिम्मेदारी संभालते ही उनके सामने कई बड़ी चुनौतियां खड़ी होंगी।

संगठन और सरकार के बीच समन्वय सबसे बड़ी चुनौती

पंकज चौधरी के सामने पहली और सबसे बड़ी चुनौती पार्टी संगठन और योगी आदित्यनाथ सरकार के बीच बेहतर समन्वय स्थापित करने की होगी। 2024 के लोकसभा चुनाव में भाजपा को उम्मीद से कम सीटें मिली थीं। पार्टी के आंतरिक आकलन में कार्यकर्ताओं के उत्साह में कमी और स्थानीय स्तर पर संवाद की कमी को इसके प्रमुख कारणों में गिना गया है। कई जिलों में यह शिकायत भी सामने आई कि प्रशासन कार्यकर्ताओं की समस्याओं पर पर्याप्त ध्यान नहीं दे रहा। ऐसे में पंकज चौधरी को सरकार और संगठन के बीच सेतु की भूमिका निभानी होगी।

क्षेत्रीय संतुलन साधना आसान नहीं

नए प्रदेश अध्यक्ष पंकज चौधरी पूर्वांचल के गोरखपुर से आते हैं और वह पश्चिमी उत्तर प्रदेश के नेता भूपेंद्र चौधरी की जगह यह जिम्मेदारी संभाल रहे हैं। पश्चिमी यूपी में राष्ट्रीय लोकदल (RLD) का प्रभाव लगातार बढ़ रहा है, जो भाजपा का सहयोगी दल भी है। ऐसे में पश्चिमी यूपी के नेताओं और कार्यकर्ताओं को साथ लेकर चलना और क्षेत्रीय असंतुलन की धारणा को दूर करना उनके लिए बड़ी चुनौती होगी।

पंचायत और विधानसभा चुनाव होंगे अग्निपरीक्षा

पंकज चौधरी के नेतृत्व की असली परीक्षा 2027 के विधानसभा चुनाव होंगे। इससे पहले 2026 में पंचायत चुनाव भी प्रस्तावित हैं, जहां टिकट वितरण को लेकर असंतोष और बगावत की आशंका बनी रहती है। बड़ी संख्या में दावेदारों को संतुष्ट रखना और पार्टी में एकजुटता बनाए रखना उनके लिए आसान नहीं होगा। साथ ही योगी सरकार के खिलाफ किसी भी संभावित एंटी-इंकम्बेंसी को संभालना भी उनकी जिम्मेदारी होगी।

हालांकि पंकज चौधरी सात बार सांसद रह चुके हैं और करीब 35 वर्षों का राजनीतिक अनुभव रखते हैं, लेकिन संगठनात्मक स्तर पर उनका अनुभव सीमित माना जाता है। राज्य स्तर पर उन्होंने पहले कोई बड़ा संगठनात्मक पद नहीं संभाला है।

भाजपा और आरएसएस के कई वरिष्ठ नेताओं की तरह उनका प्रदेशव्यापी जमीनी नेटवर्क भी अभी उतना मजबूत नहीं माना जाता। ऐसे में कार्यकर्ताओं से सीधा और प्रभावी संवाद स्थापित करना उनके लिए एक नई चुनौती होगी।

अखिलेश यादव की PDA राजनीति से मुकाबला

पंकज चौधरी कुर्मी समुदाय से आते हैं, जो उत्तर प्रदेश की ओबीसी आबादी का अहम हिस्सा है। भाजपा ने उन्हें प्रदेश अध्यक्ष बनाकर समाजवादी पार्टी की PDA (पिछड़ा-दलित-अल्पसंख्यक) राजनीति को चुनौती देने की रणनीति अपनाई है। हालांकि कुर्मी वोट बैंक कभी पूरी तरह एकजुट होकर किसी एक पार्टी के साथ नहीं रहा है। 2024 के लोकसभा चुनाव में इस समुदाय का बड़ा हिस्सा सपा-कांग्रेस गठबंधन की ओर झुका था। ऐसे में ओबीसी मतदाताओं को दोबारा भाजपा के पक्ष में मोड़ना आसान नहीं होगा।

कुल मिलाकर पंकज चौधरी के सामने राह आसान नहीं है। संगठन और सरकार के बीच संतुलन, क्षेत्रीय समीकरण, चुनावी रणनीति और कार्यकर्ताओं का भरोसा इन सभी मोर्चों पर उन्हें खुद को साबित करना होगा। आने वाले दो साल यह तय करेंगे कि वह इन चुनौतियों को कितनी मजबूती से संभाल पाते हैं।

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