Wednesday - 10 January 2024 - 9:24 AM

ओली ने भारत के खिलाफ फिर उगला जहर

जुबिली न्यूज़ डेस्क

नेपाल के प्रधानमंत्री के पी शर्मा ओली ने एक बार फिर भारत को उकसाने की कोशिश की है। ऐसा माना जा रहा है कि अपनी घरेलू सियासत में बुरी तरह से फंस चुके ओली ने लोगों के ध्यान भटकाने के लिए फिर भारत के क्षेत्रों को अपना बताया है।

जहां एक तरफ चल रहे सीमा विवाद को लेकर दोनों देशों के बीच विदेश मंत्री स्तर की बातचीत होनी है। वहीं दूसरी तरफ ओली के ये बयान भारत को उकसाना का पूरा काम कर रहा है।

दरअसल ओली ने कहा कि वह भारत से कालापानी, लिंपियाधुरा और लिपुलेख क्षेत्र को वापस लेकर रहेंगे। ओली ने कहा कि सीमा विवाद को लेकर बातचीत करने के लिए भारत जा रहे विदेश मंत्री प्रदीप ग्यावली के एजेंडे में इन तीनों क्षेत्रों को वापस लेना प्रमुख है।

बता दें कि विदेश मंत्री एस. जयशंकर के निमंत्रण पर ग्यावली विदेश मंत्री स्तर की छठवें नेपाल-भारत संयुक्त आयोग की बैठक में भाग लेने के लिए 14 जनवरी को भारत आ रहे हैं।

इस दौरे के ठीक पहले पीएम ओली ने नेशनल असेंबली (उच्च सदन) को संबोधित करते हुए यह टिप्पणी की। दोनों देशों के बीच से रिश्तों में तनाव आने के बाद वह नेपाल से भारत आने वाले वह सबसे वरिष्ठ राजनेता होंगे। उन्होंने कहा कि, ‘सुगौली संधि के अनुसार, महाकाली नदी के पूर्वी हिस्से में स्थित कालापानी, लिम्पियाधुरा और लिपुलेख नेपाल का भाग हैं। हम भारत के साथ कूटनीतिक वार्ता के जरिए इन्हें वापस लेंगे।’

उन्होंने कहा कि आज, हमें हमारी जमीन वापस लेने में मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है, क्योंकि 1962 में भारत-चीन युद्ध के बाद जब भारतीय सैन्य बलों ने इन क्षेत्रों में अपना ठिकाना बनाना शुरू किया था तो नेपाली शासकों ने इन क्षेत्रों को वापस लेने की कोशिश नहीं की।

पीएम ने कहा कि लोगों ने कहा था कि नेपाल के इन तीनों क्षेत्रों को अपने नक्शे में दिखाए जाने के बाद भारत के साथ उसके रिश्ते खराब हो जाएंगे, लेकिन ऐसा कुछ भी नहीं हुआ। अब भारत के साथ मित्रता के आधार पर बातचीत हो रही है। नेपाल अपनी जमीन हर हाल में वापस लेकर रहेगा।

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बता दें कि गौरतलब है कि नेपाल सरकार ने पिछले साल भारतीय क्षेत्र कालापानी, लिम्पियाधुरा और लिपुलेख के अपना होने का दावा किया था साथ ही विवादित नक्शा जारी कर दिया था. इसका भारत ने कड़े शब्दों में विरोध जताया था। इसके लिए नेपाल सरकार ने संविधान में संशोधन भी किया। बताया जा रहा था कि नेपाल के इस कदम के पीछे चीन का हाथ है, क्योंकि केपी शर्मा ओली चीन की जिनपिंग सरकार से ज्यादा प्रभावित हैं।

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