जुबिली स्पेशल डेस्क
बिहार विधानसभा चुनाव की तारीखों का अभी औपचारिक ऐलान नहीं हुआ है, लेकिन सियासी गतिविधियां तेज़ हो चुकी हैं।
महागठबंधन के प्रमुख नेता तेजस्वी यादव की मुश्किलें उस वक्त बढ़ गईं जब वीआईपी प्रमुख मुकेश सहनी ने 2025 के चुनाव के लिए 60 सीटों पर चुनाव लड़ने की घोषणा कर दी। यही नहीं, उन्होंने उपमुख्यमंत्री पद की भी मांग दोहराई है।
मुकेश सहनी की पार्टी विकासशील इंसान पार्टी (वीआईपी) महागठबंधन की नई सहयोगी है, लेकिन उनकी अपेक्षाएं किसी पुराने साझेदार से कम नहीं दिख रहीं।
सहनी ने सोशल मीडिया पर एक पोस्टर जारी कर यह घोषणा की कि उनकी पार्टी 60 सीटों पर चुनाव लड़ेगी और बाकी सीटों पर सहयोगी दलों के उम्मीदवार होंगे। उन्होंने इसे वीआईपी का पहला एजेंडा बताया।
महागठबंधन के भीतर बढ़ रही खींचतान
वीआईपी की सीटों की यह दावेदारी महागठबंधन के लिए चिंता का कारण बन गई है। गठबंधन में पहले से ही आरजेडी, कांग्रेस, वाम दल जैसे पुराने दल शामिल हैं, जो अपने परंपरागत हिस्से से कोई समझौता करने को तैयार नहीं हैं। ऐसे में नए दलों को जगह देना गठबंधन की आंतरिक एकजुटता को प्रभावित कर सकता है।
तेजस्वी यादव ने 2024 के लोकसभा चुनाव में सहनी को साथ लेकर प्रचार किया था और दोनों की केमिस्ट्री सार्वजनिक तौर पर नज़र आई थी। इसके बावजूद, सहनी की बढ़ती मांगों ने गठबंधन के भीतर खलबली मचा दी है। विशेषकर जब वीआईपी का पिछला प्रदर्शन उतना प्रभावशाली नहीं रहा।
क्या दोहराएंगे 2020 वाला फैसला?
यह पहली बार नहीं है जब मुकेश सहनी ने महागठबंधन से उच्च पद और ज्यादा सीटों की मांग की हो। 2020 में भी उन्होंने डिप्टी सीएम पद और 25 सीटें मांगी थीं, लेकिन जब बात नहीं बनी तो प्रेस कॉन्फ्रेंस बीच में छोड़ महागठबंधन से नाता तोड़ लिया था और एनडीए में चले गए थे। वहां उन्हें 11 सीटें मिली थीं और चार पर जीत हासिल हुई थी। हालांकि बाद में उनके सभी विधायक बीजेपी में शामिल हो गए।
अब एक बार फिर वह महागठबंधन में उसी आक्रामक शैली में दावेदारी कर रहे हैं। तेजस्वी यादव जहां खुद को सीएम चेहरा मानते हैं, वहीं सहनी उपमुख्यमंत्री बनने की महत्वाकांक्षा जताते दिख रहे हैं।
क्या फिर से बदलेंगे पाला?
सवाल उठता है कि अगर इस बार भी सहनी की मांगें नहीं मानी गईं तो क्या वह फिर से गठबंधन छोड़ सकते हैं? फिलहाल तो वह सार्वजनिक रूप से तेजस्वी यादव का सम्मान करते हुए दिखते हैं, लेकिन सीट बंटवारे से पहले 60 सीटों की घोषणा उनके इरादों को लेकर कई सवाल खड़े करती है।
महागठबंधन के लिए यह स्थिति बेहद संवेदनशील है, जहां नए सहयोगियों की अपेक्षाएं और पुराने दलों की जिद, चुनावी रणनीति को उलझा सकती है। अब देखना होगा कि तेजस्वी यादव इस सियासी चुनौती को कैसे साधते हैं।