जुबिली न्यूज़ डेस्क
उत्तर प्रदेश के कानपुर में एक ऐसा बंदर वन्य प्राणि उद्यान में हैं जो अपनी तन्हाईयों की सजा काट रहा है। दरअसल इस बंदर को उसके बाड़े से तीन साल से बाहर नहीं निकाला गया है। इसके पीछे वजह बताई जा रही है उसके स्वभाव का उग्र होना। हालांकि ये सजा घोषित नहीं है लेकिन यह तय है कि जब तक उसका स्वाभाव नहीं बदलता तब तक उसे बाड़े के अंदर ही रहना होगा।
बताया जा रहा है कि इस बंदर की निगरानी में विशेष कर्मचारी को रखा गया है जोकि उस बंदर को सुधरने का प्रयास कर रहे हैं। बताते हैं कि करीब तीन साल पहले इस बंदर को मिर्जापुर से कानपुर वन्य प्राणि उद्यान लाया गया था।
मिर्जापुर में यह बंदर एक तांत्रिक के साथ रहता था। वो तांत्रिक मांस व मदिरा का सेवन करता था और बंदर को भी वही खिलाता था। इसकी वजह से बंदर भी शराब और मांस का लती हो गया। तभी कुछ दिन बाद तांत्रिक की मौत हो गई। इसके बाद बंदर को शराब और मांस मिलना बंद हो गया जिसकी वजह से वो आक्रामक हो गया और लोगों पर हमला करने लगा।
यहां चिड़ियाघर के पशु चिकित्सक बताते हैं कि बंदर को इस कदर शराब की लत थी कि वो दुकानों में घुसकर लोगों पर हमलाकर करके बोटेल छीन लेता था। और उन्हें चोट पहुंचाता था। मिर्जापुर में यह बंदर करीब तीन सौ से अधिक लोगों को काट चुका था।
इसके बाद कानपुर से टीम गई थी और ट्रैंकुलाइज कर उसे पकड़कर लाई थी। मांस और शराब न मिलने के कारण अभी भी उसके स्वाभाव में आक्रामकता है।

पशु चिकित्सक मो. नासिर का कहना है कि इस बंदर को कानपुर में ‘मिर्जा लाल मुंह’ नाम दिया गया है। मिर्जापुर में सब इसे कलुआ कहते थे। कानपुर लाने के बाद उसे यहां अलग बाड़े में रखकर शाकाहारी खाना दिया लेकिन उसके स्वभाव में कोई परिवर्तन नहीं आया है। वह अभी भी आक्रामक है और किसी को भी देखकर हमला कर देता है।
उनका कहना है कि उसे बाड़े में बंद करके रखा जाता है। और जब तक उसका स्वभाव सही नहीं होता, तब तक वह बाड़े में ही रहेगा। वहीं, सहायक निदेशक अरविंद कुमार सिंह का कहना है, बंदर को शाकाहारी भोजन दिया जा रहा है। उसके स्वभाव के बारे में एक साल पहले शासन को पत्र लिखा गया था।
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