डा. उत्कर्ष सिन्हा
क्या भारत में एग्जिट पोल्स की सत्यता और सटीकता अब एक मजाक बन चुकी है? ये सवाल इस समय देश के जनमानस के बीच काफी चर्चा में है , खासकर तब बीते मंगलवार को बिहार जैसे महत्वपूर्ण राज्य के चुनावों के सिलसिले में कई सारे एग्जिट पोल्स सामने आने लगे ।
11 नवंबर को बिहार विधानसभा चुनाव के दूसरे और अंतिम चरण का मतदान खत्म होते ही टीवी चैनलों पर एग्जिट पोल्स की बौछार शुरू हो गई। लगभग सभी प्रमुख सर्वे एजेंसियों—मैट्रिज़, पीपुल्स पल्स, पीपुल्स इनसाइट, जेवीसी, डीवी रिसर्च, डैनिक भास्कर, न्यूज18 मेगा पोल आदि—ने एक स्वर में एनडीए को भारी बहुमत दिया। पोल ऑफ पोल्स में एनडीए को औसतन 147 सीटें (133-167 की रेंज में), महागठबंधन को मात्र 90 (70-102), जन सुराज पार्टी को 0-5 और अन्य को 3-6 सीटें मिलने का अनुमान लगाया गया। 243 सीटों वाली विधानसभा में बहुमत के लिए 122 सीटें चाहिए, और ये आंकड़े एनडीए को स्पष्ट विजेता बता रहे हैं। देश के एक बड़े हिस्से के बीच इस बार की चर्चा तेज हो गयी है कि क्या ये वाकई जनता की आवाज हैं या सत्ता के इशारे पर चलने वाला प्रोपेगैंडा?
ये एग्जिट पोल्स कल ही आए हैं, और इनकी एकरूपता ही इनकी विश्वसनीयता पर सवाल उठाती है। मैट्रिज़-आईएएनएस ने एनडीए को 147-167, पीपुल्स पल्स ने 133-159, जेवीसी-टाइम्स नाउ ने 135-150, दैनिक भास्कर ने 145-160 सीटें दीं। सभी चैनल्स—रिपब्लिक, इंडिया टीवी, न्यूज18, टाइम्स नाउ, आज तक—एक ही रेंज में आंकड़े दिखा रहे हैं, जैसे कोई स्क्रिप्ट लिखकर बांटी गई हो। क्या ये संयोग है? नहीं, ये सत्ता का दबाव है। बिहार में विपक्ष के नेता तेजस्वी यादव ने साफ कहा कि “पीएमओ और अमित शाह जो तय करते हैं, वही मीडिया दिखाती है।” ये सर्वे मनोवैज्ञानिक दबाव बनाने के लिए हैं, ताकि काउंटिंग के दिन अधिकारियों पर असर पड़े और विपक्षी कार्यकर्ता हताश हो जाएं।
2024 लोकसभा चुनावों में भी यही हुआ था—350+ का शोर मचाया गया, लेकिन असल में एनडीए 290 के आसपास सिमट गया। बिहार में भी रिकॉर्ड 67% से ज्यादा वोटिंग हुई, खासकर महिलाओं और पिछड़ों में, बढे हुए मतदान प्रतिशत को अब तक बदलाव की बयार बताया जाता रहा है, लेकिन एग्जिट पोल्स इसे नजरअंदाज कर एनडीए की जीत का नैरेटिव गढ़ रहे हैं।
एग्जिट पोल्स की सटीकता का इतिहास भी शर्मनाक है। 2004 में एनडीए को 240-275 सीटें दी गईं, असल में 186 आईं। 2009 में यूपीए को कम आंका गया। 2014 में एनडीए को 270-290 बताया, लेकिन 336 मिलीं। 2019 में 300+ का अनुमान सही निकला, लेकिन 2024 में फिर चूक हुई । बिहार में ही 2020 में ज्यादातर पोल्स ने महागठबंधन को बहुमत दिया, लेकिन एनडीए जीत गया। 2015 में भी उलटा हुआ। अब 2025 में सभी पोल्स एक तरफा एनडीए की जीत बता रहे हैं, जबकि ग्राउंड रिपोर्ट्स बदलाव की बात कर रही हैं। एकमात्र आउटलायर जर्नो मिरर ने महागठबंधन को 130-140 सीटें दीं, लेकिन मुख्यधारा मीडिया ने इसे दबा दिया।
सत्ता का दबाव स्पष्ट है। बहुत सारे संपादक इस बात के गवाह है कि 2024 में भी चैनल मालिकों को दिल्ली बुलाकर “350 से कम मत दिखाना” का फरमान दिया गया था। बिहार में भी यही हुआ—मतदान खत्म होते ही आंकड़े एक जैसे आने लगे । सूत्र बता रहे हैं कि इस बार भी विज्ञापन, एनबीडीए, आईटी सेल का दबाव डाला गया। परिणाम? सभी चैनल्स 140-160 की रेंज में आ गए ।
ये टीआरपी से ज्यादा “कृपा” की भूख है। गोदी मीडिया अब सत्ता की भक्ति करती है, जनता की नहीं। तेजस्वी ने कहा, “ये सर्वे पीएम मोदी की एजेंसियों की प्रोपेगैंडा स्ट्रैटेजी हैं।” उच्च वोटिंग को “चेंज के लिए वोट” बताया, लेकिन पोल्स इसे अनदेखा कर रहे हैं।
वातावरण निर्माण की रणनीति पुरानी है। टीना फैक्टर (There Is No Alternative) को मजबूत करना—400 पार या बिहार में 150+ का शोर मचाकर विपक्ष को हताश करना। 2019 में यूपी में अखिलेश-मायावती गठबंधन के कार्यकर्ता घर बैठ गए क्योंकि पोल्स बीजेपी की भारी जीत बता रहे थे। बिहार में भी यही हो रहा है। दूसरा, शेयर बाजार लूट—11 नवंबर को मतदान खत्म होते ही अदानी, रिलायंस शेयरों में उछाल, 20 लाख करोड़ का फायदा। असल नतीजों में गिरावट आएगी तो “पंप एंड डंप” स्कैम पूरा होता है । तीसरा, ईवीएम की ढाल—अंतर आने पर कहेंगे “पोल्स भी यही बता रहे थे, ईवीएम ठीक हैं।” चौथा, विपक्षी कार्यकर्ताओं को डिमोटिवेट करना।
सैंपलिंग का झूठ भी उजागर हो रहा है। बिहार पोल्स में 60-70% सैंपल शहरी, महिलाओं से सिर्फ 10-15% बात, दलित-आदिवासी इलाकों से न के बराबर। ग्रामीण बिहार, जहां 80% आबादी है, गायब। फिर ±3% एरर का दावा! पेड पोल्स का बाजार भी चल रहा—एक एजेंसी ने कबूला कि “वांछित डेटा” के लिए ज्यादा पैसे मिलते हैं। कानूनी खामी—गलत पोल पर कोई सजा नहीं। चुनाव आयोग सिर्फ प्रकाशन समय नियंत्रित करता है, सटीकता पर नहीं।
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बिहार के ये ताजा पोल्स उसी साजिश का हिस्सा लगते हैं। रिकॉर्ड वोटिंग के बावजूद सभी एनडीए की जीत बता रहे हैं। प्रशांत किशोर की जन सुराज को भी जीरो दिखाकर नया प्रयोग दबाया जा रहा है। 14 नवंबर को असल नतीजे आएंगे, और अगर अंतर हुआ तो ये पोल्स फिर बेनकाब होंगे।
ऑस्ट्रेलिया, कनाडा जैसे 18 देशों में एग्जिट पोल्स बैन हैं। भारत में भी समय आ गया है कि या तो इसे प्रतिबंधित किया जाए , या गलत पोल पर लाइसेंस रद्द कर दिया जाए अन्यथा लोकतंत्र का ये तमाशा सत्ता की जीत और जनता की हार बनता रहेगा। एग्जिट पोल्स अब कोई ठोस रिसर्च नहीं, सत्ता की गोद में बैठा प्रोपेगैंडा है। बिहार की जनता बदलाव चाहती है, लेकिन मीडिया का ये खेल इसे दबाने की कोशिश कर रहा है। 14 नवंबर सच्चाई का दिन होगा, उस दिन के नतीजे ही एग्जिट पोल की विश्वसनीयता का उत्तर देंगे ।
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