जुबिली स्पेशल डेस्क
लखनऊ. क्रिकेट एसोसिएशन लखनऊ (CAL) का आगामी चुनाव अचानक ही महज़ एक खेल संगठन की औपचारिक प्रक्रिया से निकलकर राजनीतिक रस्साकशी और प्रतिष्ठा की जंग बन चुका है। मैदान पर खिलाड़ियों की परफॉर्मेंस से ज़्यादा चर्चा अब एसोसिएशन के गलियारों में ‘कौन किसके साथ’ की हो रही है।
क्यों अहम है यह चुनाव?
उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ सिर्फ़ प्रशासनिक नहीं, बल्कि क्रिकेट संचालन का भी केंद्र है। CAL की कमान जिनके हाथ में होती है, वही BCCI और उत्तर प्रदेश क्रिकेट एसोसिएशन (UPCA) में शहर की आवाज़ बनता है। लिहाज़ा यह पद अब एक “क्रिकेट सत्ता केंद्र” का चेहरा बन गया है।
‘गुटबाज़ी’ बनाम ‘गुड गवर्नेंस’
चुनाव से पहले CAL दो साफ गुटों में बंटा नज़र आ रहा है —
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एक तरफ़ है पुराना गार्ड, जो लंबे समय से संगठन पर क़ाबिज़ है
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दूसरी ओर नई पीढ़ी के सुधारवादी चेहरे, जो पारदर्शिता और खिलाड़ियों के हक़ की बात कर रहे हैं
सूत्रों के मुताबिक, मतदाता (क्लब्स व सदस्य) भी दो धड़ों में बंट गए हैं और चुनाव से पहले जोड़ों-तोड़ों का खेल पूरे ज़ोर पर है।
राजनीतिक रंग भी चढ़ा
इस बार कुछ ऐसे नाम भी चर्चा में हैं जो राजनीति से जुड़े हैं या उनके पीछे बड़े राजनैतिक आकाओं का आशीर्वाद बताया जा रहा है। इससे यह चुनाव खेल संगठन से बढ़कर सियासी ताक़त का प्रतीक बन गया है।
खिलाड़ियों का क्या?
चौंकाने वाली बात ये है कि खुद लखनऊ के कई युवा क्रिकेटर शिकायत कर रहे हैं कि चयन प्रक्रिया, सुविधाएं और ट्रायल में पारदर्शिता की बात कहीं खो गई है। सभी की निगाहें इस चुनाव पर टिकी हैं कि क्या यह सिर्फ़ पदों की लड़ाई है या खिलाड़ियों के भविष्य का भी फैसला?
बात सिर्फ़ क्रिकेट की नहीं…
जिस अंदाज़ में प्रचार हो रहा है, सोशल मीडिया पर पोस्टर वार चल रहा है, और क्लब प्रतिनिधियों को साधने के लिए लॉबिंग हो रही है — यह स्पष्ट है कि CAL का चुनाव अब “प्रतिष्ठा, पकड़ और भविष्य की पिच तय करने वाली लड़ाई” बन चुका है।