
पॉलिटिकल डेस्क
फर्रुखाबाद, उत्तर प्रदेश राज्य का एक शहर और लोकसभा क्षेत्र है। फर्रुखाबाद की सीट यूपी 40वीं संसदीय सीट है। व्यापार तथा व्यवसाय की दृष्टि से फर्रूखाबाद एक महत्वपूर्ण शहर है। किसी जमाने में फर्रुखाबाद राजशाही की राजधानी हुआ करता था। वर्तमान में यह कानपुर मंडल का हिस्सा है। इसका जिला मुख्यालय फतेहगढ़ है।
फर्रुखाबाद जिले का गठन 1997 में हुआ था। गंगा, रामगंगा, कालिन्दी और ईसन नदी इस क्षेत्र की प्रमुख नदियां हैं। पंडाबाग मंदिर यहां का सबसे प्राचीन मंदिर है। इस मंदिर की स्थापना पांडवों ने की थी। यहां एक प्राचीन किला भी है। इनके अलावा यहां के प्रमुख पर्यटन स्थलों में श्री श्वेताम्बर जैन मंदिर, श्री दिगम्बर जैन मंदिर, पांचाल घाट, श्री शेखपुर जी की दरगार प्रमुख है।
फर्रूखाबाद देश के 250 पिछड़े क्षेत्रों में से एक है। इस कारण इसे पिछड़ा क्षेत्र अनुदान निधि के तहत विशेष सहायता मिलती है। इस क्षेत्र में गेंहू, दाल और आलू की अच्छी पैदावार होती है। फर्रुखाबाद शहर को पोटैटो सिटी (आलू का शहर) के नाम से भी जाना जाता है।

आबादी/ शिक्षा
फर्रुखाबाद का क्षेत्रफल 4349 वर्ग किलो मीटर है। फर्रुखाबाद के अंतर्गत 3 तहसील आती है। यह जिला उत्तर में शाहजहांपुर और बदायूं, पूर्व में हरदोई, दक्षिण में कन्नौज और पश्चिम में एटा और मैनपुरी से घिरा हुआ है।
यहां की औसत साक्षरता दर 72 प्रतिशत है। यहां पुरुष साक्षरता दर 70 प्रतिशत और महिला साक्षरता दर 60 प्रतिशत है। यहां की कुल आबादी 18,87,000 है। वर्तमान में यहां मतदाताओं की कुल संख्या 1,613,781है जिसमें महिला मतदाता 721,921 और पुरुष मतदाता की संख्या 891,793 है।

राजनीतिक समीकरण
फर्रूखाबाद संसदीय सीट 1952 में अस्तित्व में आई। इस संसदीय सीट के अंतर्गत पांच विधानसभा सीटें आती है जिसमें अलीगंज, कैमगंज (सुरक्षित), अमृतपुर, भोजपुर और फर्रुखाबाद आती है। यह संसदीय सीट शुरुआत से ही सामान्य सीट रही है। यहां पहला लोकसभा चुनाव 1952 में हुआ जिसमें कांग्रेस के मूलचंद दूबे विजयी रहे। उसके अगले दो चुनावों में भी इस सीट पर कांग्रेस का कब्जा रहा।
1962 के चुनाव में यहां की जनता ने कांग्रेस नकार दिया और सयुंक्त सोशलिस्ट पार्टी पर अपना विश्वास जताया। 1967 के चुनाव में एक बार फिर कांग्रेस ने इस सीट पर वापसी की और अगले चुनाव में भी अपनी सीट बचाने में कामयाब रही। 1977 और 1980 के चुनाव में इस सीट पर जनता दल को जीत मिली लेकिन 1984 के चुनाव में कांग्रेस ने फिर कब्जा जमा लिया।
1989 के चुनाव में जनता दल ने वापसी की लेकिन उसके बाद से उसके लिए जीत सपना हो गया। 1991 में जहां इस सीट पर कांग्रेस को जीत मिली तो वहीं 1996 और 1998 में भाजपा को जीत मिली। 1999 में सपा ने यहां अपना खाता खोला और 2004 के चुनाव में भी अपनी सीट बचाने में कामयाब रही। 2009 में इस सीट पर कांग्रेस को जीत मिली लेकिन 2014 में मोदी लहर में यह सीट बीजेपी के खाते में चली गई।
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