
पॉलिटिकल डेस्क
भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) ने लोकसभा चुनाव के लिए 61 सीटों पर अपने उम्मीदवारों का एलान कर चुकी है। देश की सत्ता की लड़ाई जीतने के लिए 2019 के चुनावी चौसर पर बीजेपी आलाकमान ने ऐसे जाति की गोटियां बिछाई हैं, जिसके बाद यूपी में महागठबंधन और कांग्रेस के लिए राह आसान नहीं होगी।
उत्तर प्रदेश की सियासत में जाति एक अहम फैक्टर रहा है। चुनाव में मुद्दे कोई भी हों, लेकिन इसके इतर हर दल सबसे ज्यादा जोर जातिय समीकरणों को साधने पर ही रहा है। प्रदेश में महागठबंधन बनने के बाद चुनाव में जातिय समीकरण काफी अहम हो गया है।
समाजवादी पार्टी (सपा), बहुजन समाज पार्टी (बसपा) और राष्ट्रीय लोक दल (आरएलडी) समेत यूपी के कई छोटे दलों ने मिलकर यूपी में महागठबंधन बनाया है, जिसके बाद से प्रदेश के दलित, ओबीसी, जाट और मुस्लिम वोटरों को अपने पाले में करने के लिए बीजेपी ने जाट के सामने जाट, वैश्य के सामने वैश्य और दलित के सामने दलित का दांव खेला है।
बीजेपी ने ‘मिशन 74’ के लिए 15 ब्राह्मण उम्मीदवारों को टिकट दिया है। इसके अलावा 14 पिछड़ी जातियों के कैंडिडेट को टिकट दिया गया है। बीजेपी अपने 61 उम्मीदवारों की लिस्ट में 13 दलित, 10 क्षत्रिय, चार जाट, दो गुर्जर को टिकट दिया है। इसके अलावा एक वैश्य, एक पारसी, और एक भूमिहार बिरादरी के उम्मीदवार को टिकट दिया है।
बीजेपी ने यूपी में अपना दल और सुभसपा समेत कई क्षेत्रीय पार्टियों के साथ गठबंधन करके पिछड़ी जातियों के वोटरों को अपने पाले में करने की कोशिश की है। यूपी में 7.64 फीसदी कुर्मी वोटर हैं। कुर्मी जाति की नेता तौर पर राजनीति करने वाली अपना दल की अध्यक्ष अनुप्रिया पटेल भी बीजेपी के साथ गठबंधन की साथी हैं।
गौरतलब है कि बसपा सुप्रीमो मायावती पिछड़ी जाति की राजनीति करने वाले नेताओं को अपने पक्ष में लाकर मुकाबले की तैयारी में जुटी हैं। सपा की बात करें इसका वोट बैंक ही यादव और मुस्लिम माना जाता है।
जातीय समीकरणों को देखें तो प्रदेश में सिर्फ पिछड़ी जाति की आबादी 54 फीसदी से अधिक है। अनुसूचित जाति 21 फीसदी तो जनजाति की आबादी 2 प्रतिशत तक पहुंच गई है। इसी तरह मुस्लिम आबादी भी 19.5 प्रतिशत के करीब है। जाति समीकरणों को साधने के लिए सियासी दल इसी आधार पर अपनी गोटें चलते हैं और अपने-अपने उम्मीदवार भी इसी आधार पर मैदान में उतारते हैं।
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