Thursday - 11 January 2024 - 7:07 AM

नेताओं को युवाओं की नहीं राजनीति की ज्यादा चिंता

राजीव ओझा

भारत में व्यावसाइक कालेजों में शिक्षा का गिरता स्तर लगातार गिर रहा है। कॉलेज तो खुलते जा रहे लेकिन छात्र नहीं मिल रहे। इन कॉलेजों से जो छात्र डिग्री लेकर निकल रहे वो अंतर्राष्ट्रीय या राष्ट्रीय मानकों पर खरे नहीं उतरते और बेरोजगार रह जाते।

भारत में उच्च शिक्षा संस्थानों की संख्या में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है, लेकिन सिर्फ संस्थानों की संख्या ही बढ़ी है न कि उनकी गुणवत्ता| इसी बात का जिक्र पिछले दिनों श्रम मंत्री संतोष गंगवार ने बरेली में रिक्रूटमेंट एजेंसियों के हवाले से किया था। पता नहीं क्यों मायावती और प्रियंका गांधी को यह अपमानजनक लगता।

युवाओं की नहीं राजनीती की चिंता

उत्तर प्रदेश में राजनीति का यही हाल है। नेता तैयार बैठे रहते कि किसी विरोधी पक्ष के मुंह से कुछ निकला नहीं कि कौआ कान ले गया..कौआ कान ले गया…का हल्ला शुरू हो जाता। ताजा मामला केंद्रीय श्रम मंत्री संतोष गंगवार की टिप्पणी को लेकर मचे बवाल का है। मीडिया रिपोर्ट के अनुसार श्रम मंत्री ने बरेली में कहा कि उत्तर भारत के युवाओं में रोजगार पाने की काबिलियत नहीं है। लगता है मायावती, प्रियंका ने बिना सुने ही ट्वीट कर दिया है।

कहीं पे निगाहें कहीं पे निशाना

बहुजन समाज पार्टी की मुखिया मायावती और कांग्रेस की राष्ट्रीय महासचिव प्रियंका गांधी ने टिप्पणी को लेकर सरकार पर निशाना साधा है। नेताओं को अपनी राजनीति चमकाने की इतनी जल्दी है कि संतोष गंगवार ने वास्तव में क्या बोला, इसको सुने बिना हमले शुरू कर दिए। कौआ कान ले गया की तर्ज पर उन्होंने फुर्र से अपनी ट्विटर की चिडया उड़ा दी।

प्रियंका गाँधी वाड्रा ने ट्वीट किया है- मंत्री जी, पांच साल से ज्यादा समय से आपकी सरकार है। नौकरियाँ पैदा नहीं हुईं। जो नौकरियाँ थीं वो सरकार द्वारा लाई गई गई आर्थिक मंदी के चलते चीन रहीं है। नवजवान रास्ता देख रहें हैं कि सरकार कुछ अच्छा करे। आप उत्तर भारतीयों का अपमान कर बच निकलना चाहते हैं। ये नहीं चलेगा।

बसपा सुप्रीमों मायावती ने ट्वीट किया- ”देश में छाई आर्थिक मंदी के बीच केंद्रीय मंत्रियों के अलग-अलग हास्यास्पद बयानों के बाद अब देश और खासकर उत्तर भारतीयों की बेरोजगारी दूर करने के बजाय यह कहना कि रोजगार की कमी नहीं, बल्कि योग्यता की कमी है, अति शर्मनाक है। इसके लिए देश से माफी मांगनी चाहिए।

पहले सुने फिर दें प्रतिक्रिया

लेकिन पहले सुनिये गंगवार ने क्या कहा इस तरह की टिप्पणी निश्चित रूप से उत्तर भारत के युवाओं का बड़ा अपमान है, निंदनीय है। लेकिन जरा ठहरिये। क्या संतोष गंगवार जैसा वरिष्ठ, गंभीर और परिपक्व नेता इस तरह की गैरजिम्मेदाराना टिप्पणी कर सकता है? यह जानने के लिए संतोष गंगवार की टिप्पणी को ध्यान से सुनना होगा। जो बात श्रम मंत्री ने कही, वह पहले भी कही जा चुकी है कई बार। श्रम मंत्री ने कहा पद के अनुसार गुणवत्ता नहीं मिलती।

श्रम मंत्री संतोष गंगवार की बरेली में की गई उनकी टिप्पणी समाचार एजेंसी और देश के लगभग हर छोटे-बड़े मीडिया प्लेटफोर्म पर मौजूद है। श्रम मंत्री संतोष गंगवार ने कहा था- ”आजकल अखबारों में रोजगार की बात आ रही है। हम इसी मंत्रालय को देखने का काम करते हैं और रोज ही इसी का मंथन करने का काम करते है। बात हमारे समझ में आ गयी है। रोजगार दफ्तर के अलावा भी हमारा मंत्रालय इसको मॉनिटर कर रहा है। इसी क्रम में उन्होंने कहा था- ”देश में रोजगार की कमी नहीं है लेकिन उत्तर भारत में जो रिक्रूटमेंट करने आते हैं, इस बात का सवाल करते हैं कि जिस पद के लिए हम (कर्मचारी) रख रहे हैं उसकी क्वालिटी का व्यक्ति हमें कम मिलता है।

सुनिए हकीकत-

श्रम मंत्री संतोष गंगवार ने उत्तर भारत के युवाओं को नाकाबिल नहीं कहा। उन्होंने कहा था कि प्लेसमेंट या रिक्रूटमेंट के लिए जो संस्थाएं उत्तर भारत में आती हैं उन्हें पद विशेष के लिए योग्यतानुसार कम ही लोग मिलते हैं। यानी उनके जो मानक हैं उसके अनुसार कम ही लोग मिलते उत्तर भारत में। एआईसीटीई ने पहले ही उठा चुका यह सवाल कि विश्व के सर्वश्रेष्ठ 200 संस्थानों की सूची में भारत का एक भी संस्थान शामिल नहीं है।

हमारे उच्च शिक्षा संस्थानों में चलने वाले अनुसन्धान कार्यक्रमों की गुणवत्ता वैश्विक स्तर के आस-पास की भी नहीं है। यही बात अखिल भारतीय तकनीकी शिक्षा परिषद (एआईसीटीई) के एक ताजा अध्ययन में कही गई है। उसके अनुसार केवल 40 प्रतिशत इंजीनियरिंग छात्र ही रोजगार के योग्य हैं। इंजिनियरिंग के छात्रों को लेकर एक सनसनीखेज खुलासा हुआ है। ऑल इंडिया काउंसिल फॉर टेक्निकल एजुकेशन के अनुसार हर साल देश भर के तकनीकी संस्थानों से करीब 8 लाख छात्र इंजिनियरिंग करते हैं और इन 8 लाख छात्रों में महज कुछ ही लोगों को नौकरी मिल पाती है जबकि करीब 60 फीसदी से ज्यादा छात्रों को नौकरी नहीं मिलती है।

डिग्री तो है लेकिन दक्षता नहीं

दरअसल देशभर के तकनीकी कॉलेजों के स्टैंडर्ड में बड़े पैमाने पर अंतर पाया जाता है जिसकी वजह से इन संस्थानों से निकलनेवाले ग्रैजुएट रोजगार योग्य नहीं होते हैं। यही बात संतोष गंगवार ने कही है। जब कुकुरमुत्ते की तरह से खुले किसी इंजीनियरिंग संस्थान से पास होकर युवा श्रम बाजार में आता है तो उसके पास डिग्री तो होती है लेकिन नौकरी करने के लिए आवश्यक कौशल नहीं होता।

पहली बार नहीं है जब भारत में प्रोफेशनल डिग्री वालों की प्रतिभा पर सवाल उठाए उठाया गया हो। इससे पहले भी कई बार रिपोर्ट ये बताती रही हैं कि भारत के इंजीनियर और एमबीए डिग्री वाले बेरोजगार हैं और उसमें बड़ी कंपनियों में नौकरी के लिए जरूरी योग्यता नहीं है। भारत की आईटी कंपनियों को ही लें। अभी वैश्विक आईटी प्रतिस्पर्धा के मुकाबले भारत की आईटी कंपनियां काफी पीछे हैं।

भारत की एक अग्रणी आईटी कंपनी के सीईओ का मानना है कि भारतीयआईटी कंपनी को स्किल की जरूरत है, डिग्री धारक इंजीनियर की नहीं। उन्होंने कहा है कि भारत के 94 प्रतिशत आईटी ग्रेजुएट आईटी कंपनियों में नौकरी करने के योग्य नहीं हैं। लेकिन यह बात मायावती और प्रियंका गाँधी वाड्रा को समझ नहीं आती। और काफी हद तक मीडिया को भी कौआ कान ले गया वाली खबरे ज्यादा रास आती हैं।

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