Friday - 25 July 2025 - 1:52 PM

उच्च शिक्षण संस्थानों की लक्ष्मण रेखा: सुरक्षित परिसर में ही संभव है उत्कृष्ट शिक्षा

अशोक कुमार

एक कुशल कलाकार की पहचान मंच पर उसके प्रवेश और अभिनय के बाद उसकी गरिमामय वापसी से होती है।

हमारे शरीर में कोशिकाओं का विभाजन एक अनुशासित प्रक्रिया के तहत होता है; अनियंत्रित होने पर यह कैंसर का रूप ले लेता है।

ठीक इसी प्रकार, किसी भी शिक्षण संस्थान की गुणवत्ता और उसका शैक्षणिक वातावरण इस बात पर निर्भर करता है कि उसके प्रांगण में प्रवेश की प्रक्रिया कितनी अनुशासित और सुरक्षित है।

कुछ लोग विश्वविद्यालयों को “खुले सार्वजनिक स्थल” मानते हैं। उनको यह मालूम होना चाहिए कि संस्थान का प्राथमिक उद्देश्य शिक्षा और सुरक्षा है, जो सर्वोपरि है।

इस संदर्भ में दो प्रश्न उठते हैं: पहला, संस्थान के परिसर में किसे प्रवेश मिलना चाहिए? और दूसरा, अवांछित तत्वों को संस्थान में प्रवेश करने से कैसे रोका जाए?

हम सभी जानते हैं कि स्कूलों और प्राइमरी पाठशालाओं में प्रवेश को लेकर एक सख्त व्यवस्था होती है, जहाँ केवल विद्यार्थी, शिक्षक और कर्मचारी ही प्रवेश कर सकते हैं। लेकिन महाविद्यालयों और विशेषकर राज्य विश्वविद्यालयों में पहुँचते ही यह व्यवस्था समाप्त क्यों हो जाती है? इन संस्थानों के प्रांगण लगभग सभी के लिए खुले रहते हैं, जो कि एक गंभीर चिंता का विषय है। मेरा स्पष्ट मत है कि शिक्षण संस्थानों में प्रवेश का अधिकार केवल संबंधित विद्यार्थियों, शिक्षकों, अधिकारियों और कर्मचारियों तक ही सीमित होना चाहिए।

आज के समय में अभिभावक, विशेषकर छात्राओं की सुरक्षा को लेकर, अत्यधिक संवेदनशील हैं। वे अपने बच्चों को उन्हीं संस्थानों में भेजना पसंद करते हैं जहाँ सुरक्षा व्यवस्था सुदृढ़ हो।

एक सर्वेक्षण के अनुसार, 70% छात्राएँ मानती हैं कि परिसर में बाहरी लोगों की आवाजाही से वे असुरक्षित महसूस करती हैं। परिसरों में अवांछित व्यक्तियों की बेरोकटोक आवाजाही से न केवल असुरक्षा और अशांति का माहौल बनता है, बल्कि यह स्वस्थ शैक्षणिक वातावरण के लिए भी एक बड़ा खतरा है।

प्रश्न उठता है कि विश्वविद्यालय जैसे विशाल संस्थानों में यह कैसे संभव हो? आगंतुकों और प्रशासनिक कार्य से आने वाले लोगों को असुविधा भी नहीं होनी चाहिए।

इसका एक व्यावहारिक समाधान है कि विश्वविद्यालय के अकादमिक और प्रशासनिक भवनों को जहाँ तक संभव हो, अलग-अलग रखा जाए। इससे प्रशासनिक कार्य के लिए आने वाले व्यक्ति सीधे संबंधित भवन में जा सकेंगे और अकादमिक परिसर में अनावश्यक आवाजाही रुकेगी।

परिसरों में अवांछित तत्व व्यक्तिगत, राजनीतिक, सामाजिक, आपराधिक या छेड़छाड़ जैसे गलत इरादों से आते हैं। यदि हम इन पर नियंत्रण पा सकें, तो विश्वविद्यालय में शिक्षा का उच्चतम वातावरण स्थापित किया जा सकता है।

परिसर को अवांछित तत्वों से मुक्त कैसे बनाया जाए? यह कार्य केवल विश्वविद्यालय प्रशासन के बूते का नहीं है। इसके लिए शिक्षकों, कर्मचारियों और विशेष रूप से विद्यार्थियों का सक्रिय सहयोग अनिवार्य है। यह एक सामूहिक अभियान है जिसकी सबसे महत्वपूर्ण कड़ी स्वयं छात्र-छात्राएँ हैं।

यदि वे यह दृढ़ निश्चय कर लें कि उनके शिक्षण संस्थान में कोई भी बाहरी अवांछनीय व्यक्ति प्रवेश नहीं करेगा, तो यह निश्चित रूप से संभव है।

इस अभियान में सबसे बड़ी चुनौती राजनीतिक हस्तक्षेप की होगी, जिसका सामना भी केवल संगठित छात्र शक्ति ही कर सकती है, खासकर छात्र संघ चुनावों के दौरान यह चुनौती और ब जाती है। प्रवेश प्रक्रिया को नियंत्रित करने के लिए आधुनिक तकनीक का प्रयोग कर सकते हैं।

जैसे:सभी छात्रों और कर्मचारियों के लिए स्मार्ट आई.डी. कार्ड (RFID/QR कोड युक्त) अनिवार्य करना।मुख्य द्वारों पर स्वचालित गेट लगाना जो केवल आई.डी. कार्ड से खुलें।

आगंतुकों के लिए एक विजिटर मैनेजमेंट सिस्टम बनाना, जहाँ वे पहचान पत्र दिखाकर और कारण बताकर अस्थायी पास प्राप्त कर सकें। इस व्यवस्था को लागू करने के लिए विश्वविद्यालय को एक ‘परिसर सुरक्षा समिति’ का गठन करना चाहिए, जिसमें छात्र प्रतिनिधि, शिक्षक और प्रशासनिक अधिकारी शामिल हों।

मैंने स्वयं एक विश्वविद्यालय में इस व्यवस्था को लागू करने का प्रयास किया था। शुरुआत में कुछ राजनीतिक संरक्षण प्राप्त तत्वों ने राजभवन से लेकर राष्ट्रपति भवन तक शिकायतें कीं।

लेकिन मैं अपने निश्चय पर दृढ़ रहा और विश्वविद्यालय के छात्रों, शिक्षकों व कर्मचारियों के अभूतपूर्व सहयोग से मैं इस प्रयास में सफल रहा। परिणामस्वरुप, विश्वविद्यालय में एक शांतिपूर्ण शैक्षणिक वातावरण बना और लगभग एक दशक बाद छात्र संघ चुनाव भी सफलतापूर्वक संपन्न हुए।

आज भी आई.आई.टी., केंद्रीय विश्वविद्यालयों और कई प्रतिष्ठित निजी संस्थानों में प्रवेश की एक सुदृढ़ व्यवस्था है। यदि यही प्रणाली सभी राजकीय महाविद्यालयों और विश्वविद्यालयों में भी लागू कर दी जाए, तो हम अपने विद्यार्थियों को एक कुशल, ज्ञानी और राष्ट्रभक्त नागरिक बनाने के अपने लक्ष्य में अवश्य सफल होंगे।

(लेखक  पूर्व कुलपति कानपुर , गोरखपुर विश्वविद्यालय , विभागाध्यक्ष राजस्थान विश्वविद्यालय जयपुर हैं)

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