ओम दत्त 
वरिष्ठ पत्रकार और लेखक डॉ. उत्कर्ष सिन्हा की पुस्तक “खजुराहो डायरीज़” इन दिनों पाठकों के बीच आकर्षण का केंद्र बनी हुई है। यह पुस्तक केवल अपने शीर्षक से जिज्ञासा नहीं जगाती, बल्कि भीतर उतरते ही मन के गहरे सरोकारों को स्पर्श करती है।
“खजुराहो डायरीज़” पढ़ते हुए अनुभव होता है कि ‘खजुराहो’ को भले ही प्राचीन मंदिरों की विलक्षण कामुक मूर्तियों ने विश्व के पर्यटन मानचित्र पर विशिष्ट पहचान दी हो, परंतु डॉ. उत्कर्ष सिन्हा ने अपनी भाषा में पत्रकार की दृष्टि की तीक्ष्णता और लेखन की कोमलता से खजुराहो को केवल दर्शनीय स्थलों की सीमा से निकालकर मानवीय रिश्तों और संवेदनाओं की गहन पड़ताल का केंद्र बना दिया है।
यहाँ की मूर्तियाँ मात्र काम का रूपक नहीं रह जातीं, बल्कि प्रेम के विविध आयामों को आध्यात्मिक गहराइयों से जोड़कर जीवन की सार्थकता का नया बोध कराती हैं।

इस उपन्यास का कथानक लेखक रणजीत कुमार के इर्द-गिर्द घूमता है -एक ऐसा लेखक जो दिल्ली की उन्मादी भागदौड़ से मुक्ति पाकर अपनी नई कहानी की तलाश में खजुराहो पहुंचता है। वहाँ उसके जीवन में वासंती, कैथरीन, सुनंदा, जूही, मालती, एवेलिन और राम प्रसाद जैसे पात्र प्रवेश करते हैं — विविध पृष्ठभूमियों, संघर्षों और इच्छाओं से भरे हुए। ये सभी पात्र किसी मूर्ति की तरह जीवंत और संवेदनशील प्रतीत होते हैं। उनकी इच्छाएँ, पीड़ाएँ और अधूरापन पाठक के भीतर उतरते चले जाते हैं।
विविध सामाजिक और सांस्कृतिक पृष्ठभूमि वाले समानांतर पात्रों के बावजूद कथा में कहीं भी ठहराव नहीं आता। कभी यह नदी के प्रवाह की तरह बहती है, तो कभी ठहरकर पाठक को चिंतन का अवसर देती है।
लेखक की भाषा पर सधा हुआ नियंत्रण है, और कथा पाठक को सोचने पर मजबूर करती है कि — आख़िर प्रेम क्या है?
चंदेल राजाओं द्वारा निर्मित खजुराहो के अद्भुत मंदिरों की दीवारों पर उकेरी गई कामकला, जीवन और आध्यात्म की मूर्तियाँ इस उपन्यास में शब्दों के रूप में जीवंत हो उठती हैं। पाठक इन्हें केवल पढ़ता नहीं, बल्कि देखता, सुनता और महसूस करता है। यही इस उपन्यास की लेखन-शक्ति है।

पढ़ते समय पाठक स्वयं को खजुराहो की सँकरी गलियों में विचरता हुआ महसूस करता है। वह प्रसंग, जहाँ तमिलनाडु की वासंती ब्याह कर खजुराहो आती है और अपने छोटे-से कॉर्नर में फ़िल्टर कॉफ़ी परोसती है — इतना जीवंत है कि मानो शब्दों के बीच से कॉफ़ी की भाप और उसकी सोधी खुशबू नासिका तक पहुँचने लगे। यह केवल कॉफ़ी का प्रसंग नहीं, बल्कि उस स्त्री के नए जीवन में घुलती-बिखरती आत्मीयता का प्रतीक है।
इसी तरह मंदिरों की नक्काशियाँ प्रेम की विविध मुद्राओं का प्रतीक बनती हैं — वासंती की स्मृतियों का सुकून, कैथरीन का द्वंद्व, या राम प्रसाद का समर्पण — सब मिलकर प्रेम को एक दर्शन के रूप में प्रस्तुत करते हैं, जो आधुनिक पाठक के मन को छू जाता है।
महादेव मंदिर की पथरीली डगरों पर फूल बेचती जूही जैसी सरल आत्मा जब दिखाई देती है, तो वह दृश्य पाठक को सीधे मंदिर के आँगन में पहुँचा देता है। आरती की घंटियाँ, धूप की सुगंध और उस भोली लड़की की मुस्कान – सब कुछ शब्दों से परे सजीव हो उठता है।
“खजुराहो डायरीज़” खजुराहो की मूर्तियों की तरह ही है — सुंदर भी और जटिल भी, जो हर कोण से नया अर्थ देती है। सहज और मोहक भाषा पाठक को अंत तक बाँधे रखती है।
अगर आप प्यार, रिश्तों और भारतीय संस्कृति को गहराई से महसूस करना चाहते हैं, तो ‘खजुराहो डायरीज़’ पढ़ना एक अद्भुत और आत्मीय अनुभव होगा।
Jubilee Post | जुबिली पोस्ट News & Information Portal
				