Sunday - 14 December 2025 - 10:02 AM

केरल चुनाव नतीजे: 54% हिंदू आबादी के बावजूद भाजपा सत्ता से क्यों दूर?

  • केरल स्थानीय निकाय चुनाव
  • यूडीएफ की शानदार जीत
  • भाजपा की बढ़ी मौजूदगी, एलडीएफ को झटका

जुबिली स्पेशल डेस्क

केरल में हुए स्थानीय निकाय चुनावों में कांग्रेस के नेतृत्व वाले यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट (यूडीएफ) ने बड़ी और निर्णायक जीत दर्ज की है। अगले साल अप्रैल–मई में होने वाले विधानसभा चुनाव से पहले इस चुनाव को सेमीफाइनल के तौर पर देखा जा रहा था, जिसमें यूडीएफ ने दमदार प्रदर्शन करते हुए स्पष्ट बढ़त हासिल की है।

यूडीएफ ने राज्य के छह नगर निगमों में से चार और 87 नगरपालिकाओं में से 54 पर जीत दर्ज की। इसके अलावा ग्राम पंचायतों, ब्लॉक पंचायतों और जिला पंचायतों में भी यूडीएफ को शानदार सफलता मिली है। इस प्रदर्शन ने सत्तारूढ़ वामपंथी गठबंधन एलडीएफ को बड़ा झटका दिया है।

हालांकि, तिरुवनंतपुरम नगर निगम में भाजपा के नेतृत्व वाले एनडीए ने जीत दर्ज कर सबका ध्यान अपनी ओर खींचा है। इसके बावजूद इस निगम में भी यूडीएफ ने अपनी सीटों की संख्या बढ़ाई है। एलडीएफ को सबसे बड़ा नुकसान तिरुवनंतपुरम में हुआ है, जहां उसका 45 वर्षों से चला आ रहा वर्चस्व खत्म हो गया।

पहली बार भाजपा की प्रभावी एंट्री

इस चुनाव की सबसे बड़ी खासियत यह रही कि भाजपा पहली बार केरल की राजनीति में अपनी प्रभावी उपस्थिति दर्ज कराने में सफल रही है। पार्टी ने तिरुवनंतपुरम नगर निगम की 101 में से 50 सीटें जीत लीं, जो बहुमत से महज एक सीट कम हैं। इससे भाजपा के लिए केरल में पहली बार महापौर पद हासिल करने की संभावना बन गई है।

महापौर पद के लिए 64 वर्षीय सेवानिवृत्त डीजीपी और राज्य की महिला आईपीएस अधिकारी आर श्रीलेखा को मजबूत दावेदार माना जा रहा है। उन्होंने शश्थमंगलम वार्ड से जीत दर्ज की है।

भाजपा को अब तक बड़ी सफलता क्यों नहीं?

इन नतीजों के बीच सबसे बड़ा सवाल यह उठता है कि देश के करीब 20 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में सरकार बना चुकी भाजपा पिछले 75 वर्षों में केरल में बड़ी राजनीतिक सफलता क्यों नहीं हासिल कर पाई।

केरल की जनसंख्या संरचना पर नजर डालें तो राज्य में लगभग 54 फीसदी हिंदू आबादी है। इसके अलावा 26.6 फीसदी मुस्लिम और 18.4 फीसदी ईसाई समुदाय के लोग रहते हैं। देश के सबसे विकसित राज्यों में गिने जाने वाले केरल की साक्षरता दर 96 फीसदी से अधिक है।

इसके बावजूद विधानसभा और लोकसभा चुनावों में भाजपा की मौजूदगी सीमित रही है। 2021 के विधानसभा चुनाव में 140 सीटों में से एलडीएफ ने 99 सीटों पर जीत दर्ज की थी, जबकि यूडीएफ को 41 सीटें मिली थीं। भाजपा के नेतृत्व वाले एनडीए को 12.41 फीसदी वोट मिले थे, लेकिन वह खाता खोलने में असफल रही।

2024 के लोकसभा चुनावों में भी केरल की 20 में से 18 सीटों पर यूडीएफ को जीत मिली। एलडीएफ और भाजपा को एक-एक सीट मिली। भाजपा के नेता सुरेश गोपी त्रिशूर लोकसभा सीट से निर्वाचित हुए। हालांकि, इस चुनाव में भाजपा के वोट प्रतिशत में बढ़ोतरी देखी गई और एनडीए का वोट शेयर बढ़कर 19.24 फीसदी तक पहुंच गया।

क्यों अलग है केरल की राजनीति?

राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि केरल की सामाजिक और राजनीतिक संरचना उत्तर भारत से काफी अलग है। यहां की जनता अपेक्षाकृत अधिक शिक्षित है, सरकारी व्यवस्था बेहतर मानी जाती है और स्वास्थ्य व शिक्षा के क्षेत्र में राज्य ने उल्लेखनीय प्रगति की है।

इसके अलावा केरल में इस्लाम का आगमन व्यापार के माध्यम से अरब देशों से हुआ, जबकि उत्तर भारत में इस्लाम पर मुगलकाल का प्रभाव ज्यादा रहा। इसी कारण यहां हिंदू, मुस्लिम और ईसाई समुदायों के बीच वह गहरी राजनीतिक या सामाजिक खाई नजर नहीं आती, जैसी उत्तर भारत के कई हिस्सों में देखने को मिलती है।

यही वजह है कि केरल का राष्ट्रवाद और राजनीतिक विमर्श अलग स्वरूप का है। भाजपा का वोट प्रतिशत भले ही लगातार बढ़ रहा हो, लेकिन फिलहाल वह राज्य में सरकार बनाने की स्थिति से अभी दूर नजर आती है।

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