जुबिली न्यूज डेस्क
केरल के कृषि मंत्री पी. प्रसाद के एक बयान ने राज्य में नया विवाद खड़ा कर दिया है। उन्होंने कहा कि अगर लोगों को जंगली सूअर का मांस खाने की अनुमति दे दी जाए, तो फसलों को बर्बाद करने वाले जंगली सूअरों की समस्या जड़ से खत्म हो सकती है। मंत्री का यह बयान सोशल मीडिया पर तेजी से वायरल हो गया है और राजनीतिक हलकों में बहस छेड़ दी है।

क्या कहा कृषि मंत्री ने?
अलापुझा जिले में फसलों को जंगली जानवरों से बचाने के लिए शुरू की गई एक परियोजना के उद्घाटन के दौरान पी. प्रसाद ने कहा —“जंगली सूअरों का संकट इस हद तक पहुंच गया है कि ये कई इलाकों में लोगों पर हमला कर रहे हैं। अगर मारे गए सूअरों को खाने की अनुमति दे दी जाए, तो यह समस्या जल्द ही खत्म हो जाएगी। लेकिन कानून की वजह से ऐसा करना फिलहाल संभव नहीं है।”
उन्होंने आगे कहा कि जंगली सूअरों की बढ़ती संख्या से किसानों को भारी नुकसान झेलना पड़ रहा है, इसलिए सरकार को इस मुद्दे पर व्यावहारिक निर्णय लेने की जरूरत है।
वन मंत्री की प्रतिक्रिया
मंत्री के बयान पर वन एवं वन्य जीव संरक्षण मंत्री ए.के. ससीन्द्रन ने प्रतिक्रिया दी है। उन्होंने कहा कि कृषि मंत्री का बयान गंभीरता से लिया गया है और इस पर विस्तृत रिपोर्ट मंगवाई जाएगी।“अगर इस बयान का वन विभाग से कोई संबंध है, तो हम उस मुद्दे की विस्तृत रिपोर्ट मंगवाएंगे और उसे हल करने का प्रयास करेंगे। रिपोर्ट मिलने के बाद आगे की कार्रवाई की जाएगी।”
कानून क्या कहता है?
भारत में वन्यजीव संरक्षण अधिनियम, 1972 के तहत जंगली सूअर (Wild Boar) को संरक्षित प्रजाति के रूप में दर्ज किया गया है। इनका शिकार या इनके मांस का सेवन कानूनन दंडनीय अपराध है।
हालांकि, कई राज्यों में इनकी आबादी बढ़ने के कारण फसल सुरक्षा के लिए सीमित नियंत्रण की अनुमति समय-समय पर दी जाती रही है।
किसानों की परेशानी
केरल के ग्रामीण इलाकों में जंगली सूअर फसलों को बर्बाद करने और लोगों पर हमले की घटनाओं के लिए बदनाम हैं।
कृषि मंत्री के मुताबिक,
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कई किसान लगातार फसल नुकसान की शिकायत कर रहे हैं।
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कुछ मामलों में किसानों की जीविका पर संकट खड़ा हो गया है।
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मंत्री ने वन विभाग को फटकार लगाते हुए कहा कि
“एक व्यक्ति, जिसकी मौत जंगली सूअर के हमले में हुई थी, उसके परिवार को पांच साल बाद भी मुआवजा नहीं मिला — यह विभाग की लापरवाही दर्शाता है।”
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कृषि मंत्री पी. प्रसाद के बयान ने जहां एक तरफ किसानों की पीड़ा को सामने रखा, वहीं दूसरी तरफ यह कानूनी और नैतिक बहस भी छेड़ दी है कि क्या जंगली जानवरों की समस्या का समाधान उनके शिकार और उपभोग में है?
अब देखना यह होगा कि वन विभाग की रिपोर्ट के बाद सरकार क्या रुख अपनाती है — बयान पर कार्रवाई या नीति में बदलाव?
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