न्यूज डेस्क
कर्नाटक की उठापटक के बीच कांग्रेस-जेडीएस गठबंधन के लिए उम्मीदों के टूटने का सिलसिला जारी है। सियासत का नाटक अब देश की सर्वोच्च अदालत तक पहुंच गया है। सुप्रीम कोर्ट आज विधायकों के इस्तीफे के मुद्दे पर सुनवाई करेगा। जिन 10 विधायकों ने इस्तीफा दिया है उन्होंने सुप्रीम कोर्ट में अर्जी लगाई है कि स्पीकर उनका इस्तीफा मंजूर नहीं कर रहे हैं।
अब सुप्रीम कोर्ट इसपर क्या फैसला देते है, उसपर निगाहें हैं। सुप्रीम कोर्ट में चीफ जस्टिस रंजन गोगोई, दीपक गुप्ता और अनिरुद्ध बोस की बेंच इस मामले की सुनवाई करेगी। कांग्रेस की तरफ से अदालत में अभिषेक मनु सिंघवी, कर्नाटक के बागी विधायकों की तरफ से मुकुल रोहतगी पेश होंगे।
शुक्रवार को कर्नाटक विधानसभा का सत्र शुरू होना है, बीजेपी इस सेशन को अवैध बता रही है। इस बीच कर्नाटक विधानसभा के आसपास धारा 144 लगा दी गई है। वहीं, स्पीकर रमेश कुमार का कहना है कि अभी तक उन्होंने कोई इस्तीफा मंजूर नहीं किया है।
इस सारी उठापठक के बीच मुख्यमंत्री एचडी कुमारस्वामी ने कैबिनेट की बैठक बुलाई है। अभी तक कुल 16 विधायक इस्तीफा दे चुके हैं, जिसकी वजह से कांग्रेस-जेडीएस सरकार पर संकट बना हुआ है।
कर्नाटक में सियासी संकट के बाद गोवा में राजनीतिक घमासान शुरू हो गया है। गोवा में कांग्रेस के कुल 15 विधायकों में से 10 विधायक भारतीय जनता पार्टी(बीजेपी) में शामिल हो गए हैं। हैरान करने वाली बात यह है कि नेता विपक्ष भी बीजेपी में शामिल हो गए हैं।
गौरतलब है कि इससे पहले विधायकों ने स्पीकर को अलग ग्रुप बनाने की चिट्ठी दी थी। इसके बाद सभी 10 विधायक भारतीय जनता पार्टी(बीजेपी) में शामिल हो गए हैं। 2 तिहाई से ज्यादा संख्या होने की वजह से इन विधायकों पर दल-बदल कानून नहीं लागू होगा। ये सभी विधायक आज दिल्ली में अमित शाह से मिलेंगे।
बता दें कि जब गोवा की 40 विधानसभा सीटों के नतीजे आए तो स्थिति बिल्कुल कर्नाटक जैसी ही थी। कांग्रेस 15 सीटों के साथ सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी, लेकिन बहुमत से दूर रही थी। बीजेपी ने 14 सीटों पर कब्जा जमाया था और अन्य दलों के साथ मिलकर सरकार बना ली थी।
बीजेपी की जोड़-तोड़ की राजनीति यहां कामयाब हुई और कांग्रेस को सत्ता से दूर रहना पड़ा। अगर कांग्रेस के 10 विधायकों के इस्तीफे मंजूर हो जाते हैं, तो कांग्रेस महज 5 सीटों पर गोवा में सिमट जाएगी।
इससे पहले गोवा के उप-मुख्यमंत्री विजय सरदेसाई ने कांग्रेस विधायकों की तुलना उन बंदरों की थी जो एक जगह से दूसरी जगह कूदते रहते हैं। सरदेसाई का इशारा उन खबरों की तरफ था जिसमें यह कहा गया था कि कांग्रेस के 10 विधायक पार्टी छोडकर बीजेपी में आने के इच्छुक हैं।
गोवा और कर्नाटक के सियासी समीकरण में अंतर बस इतना ही है कि कर्नाटक में सत्तारूढ़ सरकार पर संकट है और कांग्रेस-जनता दल(सेक्युलर) गठबंधन सरकार बचाने की कोशिश में है लेकिन गोवा में पड़ला बीजेपी का भारी है, और संगठन के स्तर पर बीजेपी मजबूत होने वाली है।
ऐसे में सियासी गलियारों में चर्चा होने लगी है कि कर्नाटक और गोवा के बाद मध्य प्रदेश का नंबर हो सकता है। मोदी और शाह की जोड़ी ऐसे ही जोड़-तोड़ की राजनीति करते रहे तो मध्य प्रदेश की कमलनाथ सरकार भी गिर खतरे में आ सकती है।

दरअसल, मध्य प्रदेश में सरकार बनाने के लिए कांग्रेस के पास जरूरत के लायक खुद के विधायक नहीं हैं लेकिन कांग्रेस को बसपा 2, सपा के 1 और 4 निर्दलीय विधायकों का समर्थन प्राप्त है। ऐसे में सबकी नजर उन 7 विधायकों पर टिकी हुई है जिनके समर्थन से मध्य प्रदेश में कांग्रेस की सरकार बनी है।
मध्य प्रदेश में जिन 7 विधायकों के समर्थन से कांग्रेस की सरकार बनी है वह इस तरह से हैं, भगवानपुरा से निर्दलीय विधायक केदार चिदाभाई दावर, बुरहानपुर से निर्दलीय विधायक ठाकुर सुरेंद्र सिंह नवल, सुसनेर से निर्दलीय विधायक विक्रम सिंह राणा, वारासियोनी से निर्दलीय विधायक प्रदीप अमृतलाल जायसवाल, भिंड से बसपा विधायक संजीव सिंह, पथरिया से बसपा विधायक रामबाई गोविंद सिंह और बीजापुर से समाजवादी पार्टी विधायक राजेश कुमार।
मध्य प्रदेश में कुल 230 विधानसभा सीटों में से 114 कांग्रेस की जीत हुई है, 109 पर भाजपा के उम्मीदवार जीते हैं, 4 पर निर्दलीय उम्मीदवारों की जीत हुई है, 2 पर बसपा और 1 पर समाजवादी पार्टी का उम्मीदवार जीता है। अगर कर्नाटक की तरह बीजेपी मध्य प्रदेश में निर्दलीय और कांग्रेस विधायकों को तोड़ने में कामयाब रही तो कमलनाथ सरकार भी खतरें में पड़ सकती है।
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