Saturday - 13 January 2024 - 12:35 PM

सरकार से बाहर रहकर भी असरदार रहेंगे कांडा

शबाहत हुसैन विजेता

सियासत का जरायम से रिश्ता नया नहीं है। शातिर क्रिमनल सियासत का दामन थामकर गंगा नहा लेते हैं। मुकदमों की लम्बी फेहरिस्त वाला बायोडाटा भी उन्हें माननीय का खिताब दिलवा देता है और तमाम मुकदमों के बावजूद पुलिस उनकी सेक्योरिटी में मुस्तैद नज़र आती है। कोई भी सियासी पार्टी इससे अछूती नहीं है।

आंकड़ों की गवाही में सिर्फ यह बताया जा सकता है कि किस पार्टी के पास कितने क्रिमनल हैं। हरियाणा इलेक्शन के रिजल्ट ने अचानक नज़रों के साथ ज़ेहन से भी ओझल हो चुके गोपाल कांडा को फिर सामने लाकर खड़ा कर दिया। वही गोपाल कांडा जिनके शोषण से परेशान होकर एयर होस्टेस गीतिका शर्मा और उनकी माँ ने सुसाइड कर लिया था। गीतिका शर्मा के सुसाइड नोट ने गोपाल कांडा को तिहाड़ जेल पहुंचा दिया था।

गोपाल कांडा कभी हरियाणा में सब्ज़ी बेचने का काम किया करते थे। तौलने वाले बांट को हरियाणा में कांडा बोलते हैं। यही बांट उनके साथ ऐसा चस्पा हुआ कि गोपाल गोयल गोपाल कांडा बन गए। घाटे और फायदे के बीच झूलते गोपाल कांडा सब्ज़ी छोड़कर जूतों के बिजनेस से होते हुए रियल इस्टेट तक आ गए। ज़मीन-मकान बेचते-बेचते कांडा के सियासी रसूख बन गए और उन्होंने खुद भी सियासत का दामन थामने का फैसला किया।
गोपाल कांडा ने निर्दलीय चुनाव जीतकर सियासत की दुनिया में कदम रखा लेकिन सरकार बनाने के लिए सीटों के अंकगणित ने गोपाल कांडा को गृहमंत्री की कुर्सी तक पहुंचा दिया। सियासत के साथ बिजनेस भी चमका और गोपाल कांडा ने अपनी एयरलाइंस शुरू कर दी। इस एयरलाइंस के जहाज की एयर होस्टेस गीतिका शर्मा के साथ कांडा के ऐसे रिश्ते बने कि गीतिका को सुसाइड करना पड़ा।
गीतिका ने सुसाइड नोट में गोपाल कांडा को ज़िम्मेदार ठहराया। गीतिका का कांडा ने ज़बरदस्ती एबॉर्शन भी कराया था। गीतिका की मां ने बेटी की पैरवी की तो उन पर इतना दबाव पड़ा कि उन्होंने भी सुसाइड कर लिया। दो जानें जाने के बाद गोपाल कांडा को दो साल तिहाड़ जेल में बिताने पड़े और फर्श से अर्श तक पहुंच जाने वाले कांडा फिर फर्श पर आ गए।
हरियाणा में इस बार चुनाव हुए तो गोपाल कांडा सिरसा से फिर जीत गए और किस्मत इतनी बुलंद कि इस बार फिर बीजेपी को सरकार बनाने के लिए छह विधायकों की दरकार नज़र आई। एक बार फिर अच्छे दिनों की चाह रखने वाले कांडा ने बीजेपी के सामने सपोर्ट का कांटा फेंक दिया और बीजेपी उस कांटे में फंस गई।
उमा भारती ने हालांकि कांडा को लेकर नाराज़गी जताई लेकिन हरियाणा के बीजेपी लीडर कांडा को गले लगाए घूमते रहे। सोशल मीडिया पर कांडा का पुराना कांड गूंजने लगा तो कांडा ने अपने परिवार के आरएसएस के साथ 1926 से रिश्ते बताते हुए बीजेपी को अपना घर बता दिया। कांडा ने कहा कि वह सरकार को सपोर्ट कर रहे हैं, सरकार में हिस्सेदारी नहीं मांग रहे हैं, लेकिन इसी बीच चौधरी देवीलाल के वारिस ने बीजेपी को सपोर्ट देकर गोपाल कांडा के फिर से सरकार में शामिल होने के ख्वाब को तोड़ दिया।
जरायम की दुनिया से सियासत के कालीन पर कदम रखने वाले गोपाल कांडा पहले शख्स नहीं हैं। एक बहुत बड़ी फेहरिस्त है। पंद्रहवीं लोकसभा में 543 सांसदों में से 162 के खिलाफ गंभीर धाराओं में मुकदमे दर्ज हैं। झारखण्ड में 74 में से 55 विधायकों के खिलाफ आपराधिक मामलों के मुकदमे चल रहे हैं। बिहार में 58 फीसदी और यूपी में 47 फीसदी माननीय दागी हैं। झारखंड मुक्ति मोर्चा के 82 फीसदी सदस्य आपराधिक गतिविधियों में संलग्न रहे हैं या हैं। राष्ट्रीय जनता दल के 64 फीसदी, समाजवादी पार्टी के 48 फीसदी, बीजेपी के 31 फीसदी और कांग्रेस के 21 फीसदी निर्वाचित माननीय आपराधिक गतिविधियों में शामिल पाए गए हैं।
क्रिमनल सियासत का दामन थाम लेता है तो उसके अच्छे-बुरे पर कोई बोलने वाला नहीं होता, पुलिस के हाथ भी बंध जाते हैं। उत्तर प्रदेश के एक बाहुबली विधायक हमेशा निर्दलीय जीतते हैं, हालांकि वह कई सरकारों में मंत्री भी रहे लेकिन किसी पार्टी में शामिल नहीं हुए। मायावती मुख्यमंत्री बनीं तो उन्होंने नाराज़ होकर इस बाहुबली को जेल भेज दिया। उन दिनों मोबाइल फोन का चलन नया-नया शुरू हुआ था।
अपराधियों को जेल से गैंग संचालन रोकने के लिए जेलों में जैमर लगवाए जा रहे थे, तब इस बाहुबली नेता के पास जेल में सैटेलाइट फोन था। सियासत में आने के बाद आमतौर पर क्रिमनल बाहुबली तो कहलाता है लेकिन पुलिस की सख्ती से वह बचा रहता है। पानी सर से गुजरता है तो भले ही ऐसे लोगों को जेल जाना पड़ जाए वर्ना आमतौर पर वह फ्री बर्ड ही रहता है। गायत्री प्रजापति और कुलदीप सेंगर की तरह अगर कोई गलती पर गलती नहीं करता है तो पुलिस उसे छूट मुहैया कराए रखती है।
दो साल की जेल काटकर गोपाल कांडा तिहाड़ के सीखचों से आज़ाद हो चुके हैं। चुनावी वैतरणी भी उन्होंने पर कर ली है और अपनी खुद की सियासी पार्टी भी बना ली है। हरियाणा में बीजेपी को सरकार बनाने के लिए छह एमएलए की ज़रूरत न पड़ी होती और गोपाल कांडा ने सरकार बनाने के लिए मददगार बनने का चारा न फेंका होता तो किसी की निगाह भी गोपाल कांडा की तरफ न उठी होती।
इत्तफाकन चौधरी देवीलाल के पौत्र की जननायक जनता पार्टी ने भी 10 सीटें जीत लीं और सरकार में शामिल होने के लिए आगे बढ़ गए तो बीजेपी ने गोपाल कांडा को बदनामी से बचने के लिए किनारे लगा दिया। गोपाल कांडा फिलहाल हरियाणा की सियासत में हाशिये पर नज़र आ रहे हैं लेकिन बीजेपी जानती है कि गठबंधन का धर्म इस दौर में आसानी से निभता नहीं है। ऐसे में कांडा की ज़रूरत कब सर चढ़कर बोलने लगेगी कहा नहीं जा सकता। ऐसे में सरकार से बाहर रहकर भी गोपाल कांडा अगले पांच साल तक असरदार रहने वाले हैं।

 

Radio_Prabhat
English

Powered by themekiller.com anime4online.com animextoon.com apk4phone.com tengag.com moviekillers.com