जुबिली न्यूज डेस्क
नई दिल्ली, दिल्ली स्थित सरकारी आवास पर जला हुआ कैश मिलने के मामले में विवादों में आए इलाहाबाद हाईकोर्ट के जज जस्टिस यशवंत वर्मा को सुप्रीम कोर्ट से बड़ा झटका लगा है। गुरुवार को सुप्रीम कोर्ट ने उनकी याचिका खारिज कर दी और उनके आचरण पर गंभीर सवाल खड़े किए।
जस्टिस वर्मा ने अपनी याचिका में जांच कमेटी की रिपोर्ट को अमान्य घोषित करने और पूर्व मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना द्वारा उन्हें पद से हटाने की सिफारिश को चुनौती दी थी। लेकिन सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने इसे खारिज करते हुए साफ कहा कि याचिकाकर्ता का आचरण विश्वसनीय नहीं है।
क्या है पूरा मामला?
14 मार्च 2025 को दिल्ली में जस्टिस यशवंत वर्मा के सरकारी आवास पर आग लग गई थी। जब फायर ब्रिगेड और पुलिस मौके पर पहुंची, तो उन्हें घर में बड़ी मात्रा में जला हुआ कैश मिला। मामला तेजी से चर्चा में आ गया और न्यायपालिका की गरिमा पर भी सवाल उठने लगे।
इसके बाद 22 मार्च को तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना ने तीन जजों की इन-हाउस जांच कमेटी गठित की। कमेटी में पंजाब-हरियाणा हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस शील नागू, हिमाचल हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस जीएस संधावलिया और कर्नाटक हाईकोर्ट की जज अनु शिवरामन शामिल थे।
कमेटी ने 4 मई को रिपोर्ट सौंपते हुए जस्टिस वर्मा को ‘दुराचरण’ का दोषी ठहराया। इसके बाद 8 मई को रिपोर्ट राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री को भेज दी गई, और जस्टिस वर्मा को न्यायिक कार्य से अलग कर दिया गया।
सुप्रीम कोर्ट ने क्या कहा?
जस्टिस दीपांकर दत्ता और जस्टिस ऑगस्टिन जॉर्ज मसीह की बेंच ने कहा –“अगर याचिकाकर्ता जांच कमेटी को अवैध मानते थे, तो उस समय विरोध क्यों नहीं किया? कमेटी के सामने पेश भी हुए और जब रिपोर्ट उनके खिलाफ आई तो अब उसकी वैधता पर सवाल खड़े कर रहे हैं। यह आचरण विश्वसनीय नहीं है।”
सुप्रीम कोर्ट ने यह भी माना कि जले हुए कैश का वीडियो सार्वजनिक करना अनुचित था, लेकिन यह मुद्दा वर्मा की याचिका में नहीं उठाया गया था।
कपिल सिब्बल ने क्या कहा?
जस्टिस वर्मा की ओर से वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल ने दलील दी कि“जांच कमेटी से पहले ही माहौल जस्टिस वर्मा के खिलाफ बना दिया गया था। खुद तत्कालीन CJI ने रिपोर्ट के आधार पर राष्ट्रपति को पद से हटाने की सिफारिश भेज दी।”
सुप्रीम कोर्ट का अंतिम फैसला:
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जांच कमेटी का गठन कानूनसम्मत था।
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CJI की सिफारिश असंवैधानिक नहीं थी।
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वीडियो और फोटो अपलोड करना अनावश्यक था, लेकिन उस पर तब आपत्ति नहीं जताई गई।
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याचिका खारिज, लेकिन भविष्य में अपील का विकल्प खुला रखा गया।
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साथ ही FIR की मांग वाली वकील मैथ्यूज नेदुंपरा की याचिका भी खारिज कर दी गई।
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अब आगे क्या?
जस्टिस यशवंत वर्मा इस वक्त इलाहाबाद हाईकोर्ट में जज हैं, लेकिन किसी भी केस की सुनवाई नहीं कर सकते। इस पूरे मामले ने न केवल न्यायपालिका के अंदर की प्रक्रियाओं पर सवाल उठाए हैं, बल्कि ट्रांसपेरेंसी और जवाबदेही को लेकर भी बहस छेड़ दी है।