जुबिली न्यूज डेस्क
दुनिया भर में बदलते पर्यावरण और सिकुड़ते वनों को लेकर चिंता बढ़ रही है। भारत में भी पर्यावरणीय बदलाव के असर दिखाई दे रहे हैं और वनों की कटाई रोकने के लिए कानून सख्त किए जा रहे हैं। इसके बावजूद वनों की कटाई पूरी तरह नहीं रुक पाई है।

इसी क्रम में, उत्तराखंड के जिम कॉर्बेट टाइगर रिजर्व में संरक्षण उपायों को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने खास निर्देश जारी किए हैं। मुख्य न्यायाधीश बीआर गवई की अध्यक्षता वाली तीन न्यायाधीशों की पीठ ने कहा कि यदि पर्यटन को बढ़ावा देना है, तो उसे इको-टूरिज्म के रूप में ही किया जाना चाहिए।
पीठ के अन्य सदस्य थे न्यायमूर्ति के. विनोद चंद्रन और न्यायमूर्ति एनवी अंजारिया। सुप्रीम कोर्ट ने उन गतिविधियों की सूची बनाई है जिन पर बफर जोन और जलग्रहण क्षेत्रों में प्रतिबंध लगाया जाएगा।
कर्मचारियों और वन शिविर के लिए विशेष निर्देश
CJI बीआर गवई ने कहा, “कोर क्षेत्र में काम करने वाले कर्मचारियों के लिए विशेष व्यवस्था की जाए। वन शिविर के बुनियादी ढांचे में स्वच्छ पानी और अन्य जरूरी सुविधाएं उपलब्ध कराई जाएं।”
सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा कि उत्तराखंड सरकार द्वारा तैयार पारिस्थितिकी बहाली योजना की निगरानी एक न्यायालय द्वारा नियुक्त पैनल करेगा।
उत्तराखंड सरकार की आलोचना
न्यायालय ने पार्क को हुए नुकसान के लिए पूर्व वन मंत्री हरक सिंह रावत और प्रभागीय वनाधिकारी किशन चंद की आलोचना की।
साथ ही कोर्ट ने निर्देश दिया कि किसी भी बाघ सफारी गतिविधि में राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण 2019 के नियमों का पालन अनिवार्य होगा। इसमें बचाव केंद्रों की स्थापना और वाहनों की संख्या को नियंत्रित करना शामिल है।
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पर्यावरण और पर्यटन में संतुलन
सुप्रीम कोर्ट ने यह स्पष्ट किया कि पर्यटन और वन संरक्षण दोनों को संतुलित करना जरूरी है। इससे न केवल जंगली जीवन की सुरक्षा होगी, बल्कि स्थानीय इको-टूरिज्म को भी बढ़ावा मिलेगा।
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