Wednesday - 10 January 2024 - 3:42 AM

देवेन्द्र आर्य की कविता : ज़मीन पक रही है

 

हिन्दी गजल के सशक्त हस्ताक्षर देवेन्द्र आर्य की गज़लों और कविताओं में हमेशा से ही सर्वहारा समाज का स्वर रहा है । लाक डाउन के दौरान सड़कों पर चलते मजदूरों की व्यथा को भी उन्होंने स्वर दिया था और वर्तमान  किसान आंदोलन पर उन्होंने कई गजलें और कविताएं लिखी है।

बारिश में भीगी

ठंढ में ठिठुरी

धूप पी कर सख़्त हुई

ओस में नम पड़ी

ज़मीन पक रही है

छितराई

तनहा पड़ी

हिली मिली

उंगलियों सी फैली

मुट्ठी सी तनी

ज़मीन पक रही है

ज़मीन पका रहे हैं किसान

किसानों की आत्मा को पका रही ज़मीन

ज़मीन पक रही है

कोंपल सी फूट पड़ने को

होंठों सी मुलायम

ठुड्डी सी कठोर

सपनों की भोर में ज़मीन पक रही है

किसानों के कंधों पर

ज़मीन पक रही है

ज़मीन का पकना एक सियासत है

और ज़मीन पलटना किसान की आदत

पृथ्वी को पालने के लिए ज़मीन पक रही है

यह भी पढ़ें : किसानों के बहाने सत्ता की हकीकत बता रही है देवेन्द्र आर्य की गज़ल

यह भी पढ़ें :“चाय सिर्फ़ चाय ही नहीं होती” – देवेन्द्र आर्य की कविता

Radio_Prabhat
English

Powered by themekiller.com anime4online.com animextoon.com apk4phone.com tengag.com moviekillers.com