जुबिली न्यूज डेस्क
बांग्लादेश की पूर्व प्रधानमंत्री शेख़ हसीना और पूर्व गृह मंत्री असदुज्जमां ख़ान कमाल को अनुपस्थिति में मौत की सज़ा सुनाए जाने के बाद अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार संगठनों ने गंभीर चिंता व्यक्त की है। यह फ़ैसला सोमवार को आया, जिसके तुरंत बाद बांग्लादेश सरकार ने भारत से हसीना के प्रत्यर्पण की औपचारिक मांग कर दी। हसीना पिछले साल 5 अगस्त को सरकार विरोधी प्रदर्शनों की पृष्ठभूमि में भारत आई थीं।

HRW: वकील की पहुँच नहीं मिली, निष्पक्षता पर सवाल
ह्यूमन राइट्स वॉच ने कहा कि दोनों आरोपियों का ट्रायल उनकी अनुपस्थिति में हुआ और उन्हें अपनी पसंद के वकील तक पहुंच नहीं दी गई। संगठन के मुताबिक यह प्रक्रिया मानवाधिकारों के बुनियादी मानकों का उल्लंघन है, जिससे फैसले की विश्वसनीयता पर गंभीर सवाल खड़े होते हैं।
‘तेज़ी से सुनवाई’ और अनुपस्थिति में फैसला चिंताजनक
एमनेस्टी इंटरनेशनल ने भी इस फैसले की निष्पक्षता पर सवाल उठाते हुए कहा कि तेज़ी से मुकदमा चलाया जाना और ट्रायल के दौरान दोनों की गैर-मौजूदगी न्याय प्रक्रिया को संदिग्ध बनाती है। संगठन ने साफ कहा—“मौत की सज़ा सबसे क्रूर, अपमानजनक और अमानवीय है, इसकी किसी न्याय प्रणाली में कोई जगह नहीं।”
संयुक्त राष्ट्र ने भी उठाया विरोध
संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार कार्यालय ने मौत की सज़ा के खिलाफ बयान दिया, क्योंकि UN लंबे समय से सभी देशों से ऐसी सजाओं को समाप्त करने की मांग करता रहा है।
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हालांकि, UN के नेतृत्व वाली जांच में यह भी सामने आया कि जुलाई–अगस्त 2023 में हसीना सरकार के खिलाफ हुए प्रदर्शनों में 1,400 लोग मारे गए, जिनमें ज़्यादातर प्रदर्शनकारी सुरक्षा बलों की कार्रवाई में मारे गए थे।
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