डॉ. उत्कर्ष सिन्हा
भारत दुनिया की सबसे तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्थाओं में शुमार है, लेकिन इस विकास के पीछे छिपी संपत्ति असमानता एक गंभीर चुनौती बन चुकी है। वर्ल्ड इनइक्वलिटी रिपोर्ट के अनुसार, देश की कुल संपत्ति का 65 प्रतिशत मात्र 10 प्रतिशत सबसे अमीर लोगों के पास केंद्रित है, जबकि निचले 50 प्रतिशत आबादी के पास केवल 6.4 प्रतिशत हिस्सा है । यह असंतुलन न केवल आर्थिक विभाजन को गहरा कर रहा है, बल्कि सामाजिक स्थिरता को भी खतरे में डाल रहा है।
1990 के दशक में आर्थिक उदारीकरण के बाद भारत ने अभूतपूर्व विकास देखा, लेकिन इसकी लाभार्थी मुख्य रूप से शीर्ष वर्ग रहे। वर्ल्ड इनइक्वलिटी लैब की 2024 रिपोर्ट बताती है कि शीर्ष 1 प्रतिशत आबादी के पास 40.1 प्रतिशत संपत्ति है, जो 1961 के बाद का सबसे ऊंचा स्तर है । इसी तरह, उनकी आय हिस्सेदारी 22.6 प्रतिशत तक पहुंच गई है, जो दक्षिण अफ्रीका, ब्राजील और अमेरिका से भी अधिक है । शीर्ष 10 प्रतिशत के पास 58 प्रतिशत राष्ट्रीय आय का नियंत्रण है, जबकि निचले 50 प्रतिशत को मात्र 15 प्रतिशत मिलता है । ये आंकड़े स्पष्ट करते हैं कि विकास का डिस्ट्रीब्यूशन कितना असमान हो चुका है।

शीर्ष 40 प्रतिशत आबादी के पास लगभग संपूर्ण संपत्ति का कब्जा है, जिससे शेष 60 प्रतिशत के लिए मात्र 10 प्रतिशत से कम बचता है । ऑक्सफैम रिपोर्ट्स भी इसकी पुष्टि करती हैं, जहां शीर्ष 10 प्रतिशत के पास 72-77 प्रतिशत संपत्ति बताई गई है । यह एक ऐसा चक्र बना रहा है जहां गरीब बचत और निवेश से वंचित रह जाते हैं, जबकि अमीरों की संपत्ति तेजी से बढ़ती जाती है।
लैंगिक और जातिगत आयाम
संपत्ति असमानता का एक चौंकाने वाला पहलू महिलाओं की स्थिति है। रिपोर्ट्स के मुताबिक, महिलाओं की श्रम बल भागीदारी मात्र 15.7-23.3 प्रतिशत है, जो वैश्विक स्तर पर सबसे निम्न में से एक है । हालिया पीरियोडिक लेबर फोर्स सर्वे में ग्रामीण महिलाओं में वृद्धि दिखी (71.1 से 76.9 प्रतिशत), लेकिन यह मुख्यतः आर्थिक संकट, असंगठित और बिना भुगतान वाले कार्यों के कारण है । औपचारिक रोजगार में महिलाओं की कमी से उनकी संपत्ति हिस्सेदारी न्यूनतम रहती है।
जातिगत असमानता भी गंभीर है। वर्ल्ड इनइक्वलिटी रिपोर्ट के अनुसार, 88.4 प्रतिशत अरबपति संपत्ति ऊपरी जातियों के पास है, जबकि अनुसूचित जनजातियों का प्रतिनिधित्व शून्य है । ऊपरी जातियां राष्ट्रीय संपत्ति का 55 प्रतिशत नियंत्रित करती हैं । यह असमानता ब्रिटिश राज के बाद सबसे ऊंचे स्तर पर है, जो संरचनात्मक भेदभाव को दर्शाती है ।
आर्थिक उदारीकरण का दोहरा चेहरा
उदारीकरण ने जीडीपी वृद्धि तो दी, लेकिन कॉर्पोरेट्स, संपत्ति मालिकों और उच्च आय वालों को असमान लाभ पहुंचाया। 2014-2023 के बीच शीर्ष संपत्ति एकाग्रता में तेज वृद्धि हुई । बिलियनेयर राज की स्थापना हो चुकी है, जहां रोज 70 नए मिलियनेयर बन रहे हैं । निचले वर्ग के लिए कम आय और बचत का चक्र गरीबी को स्थायी बनाए रखता है ।
यह असमानता सामाजिक तनाव बढ़ा रही है। ऑक्सफैम के अनुसार, निचले 50 प्रतिशत (70 करोड़ लोग) के पास कुल संपत्ति का मात्र 3 प्रतिशत है । वैश्विक तुलना में भारत की स्थिति चिंताजनक है, जहां शीर्ष 1 प्रतिशत की हिस्सेदारी ऐतिहासिक उच्च पर है ।
नीतिगत समाधान और सुझाव
इस संकट से निपटने के लिए प्रगतिशील कर प्रणाली आवश्यक है। रिपोर्ट्स सुझाती हैं कि अरबपतियों पर 2 प्रतिशत अधिभार से सामाजिक व्यय बढ़ाया जा सकता है । संपत्ति पुनर्वितरण, शिक्षा-स्वास्थ्य में निवेश और महिलाओं के लिए कौशल विकास कार्यक्रम जरूरी हैं। श्रम बल भागीदारी बढ़ाने हेतु औपचारिक रोजगार सृजन पर जोर दें।
विश्व असमानता लैब के शोधकर्ता थॉमस पिकेटी जैसे अर्थशास्त्री कर सुधारों की वकालत करते हैं और इसके लिए जातिगत असमानता दूर करने के लिए आरक्षण को संपत्ति वितरण से जोड़ना चाहिए । सरकार को जीडीपी के 6 प्रतिशत शिक्षा और 3 प्रतिशत स्वास्थ्य पर खर्च करने की पहल करनी चाहिए ।
सामाजिक न्याय की दिशा में कदम
असमानता सिर्फ आंकड़ों की समस्या नहीं, बल्कि लोकतंत्र के लिए खतरा है। जब 10 प्रतिशत के पास 65 प्रतिशत संपत्ति हो, तो बहुसंख्यक की आवाज दब जाती है । सतत विकास लक्ष्यों को प्राप्त करने हेतु समावेशी नीतियां अपनाएं। राजनीतिक इच्छाशक्ति से ही ‘बिलियनेयर राज’ को ‘लोकतांत्रिक राज’ में बदला जा सकता है
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