जुबिली स्पेशल डेस्क
संयुक्त राष्ट्र जनसंख्या कोष (UNFPA) की हालिया रिपोर्ट के अनुसार, भारत की कुल जनसंख्या जुलाई 2025 तक 1.463 अरब (146 करोड़) तक पहुंच चुकी है। इसके साथ ही भारत दुनिया का सबसे अधिक आबादी वाला देश बना हुआ है।
हालांकि, इस रिपोर्ट में चौंकाने वाला आंकड़ा यह है कि भारत की कुल प्रजनन दर (Total Fertility Rate) घटकर 1.9 पर आ गई है, जो जनसंख्या स्थिरता स्तर (2.1) से नीचे है।
प्रजनन दर में गिरावट: क्या यह चिंताजनक है?
UNFPA की रिपोर्ट बताती है कि भारत की महिलाएं अब औसतन सिर्फ 1.9 बच्चे पैदा कर रही हैं, जो इस बात का संकेत है कि बिना प्रवास (migration) के अगली पीढ़ी में जनसंख्या स्थिर नहीं रह पाएगी। विशेषज्ञों के अनुसार, यह गिरावट एक सकारात्मक सामाजिक संकेत भी हो सकती है, जो शिक्षा, स्वास्थ्य सेवाओं और महिला सशक्तिकरण की दिशा में बढ़ती समझ को दर्शाता है।
युवा जनसंख्या अभी भी ताकत
हालांकि जन्म दर घटी है, फिर भी भारत की जनसंख्या संरचना युवा प्रधान बनी हुई है
- 0-14 वर्ष: 24%
- 15-64 वर्ष: 68%
- 65 वर्ष और उससे ऊपर: 7%
इसका मतलब है कि भारत के पास डेमोग्राफिक डिविडेंड का फायदा उठाने के लिए अभी समय है, बशर्ते सही नीतियां लागू की जाएं।
राज्यवार फर्क: यूपी-बिहार बनाम दिल्ली-केरल
रिपोर्ट के अनुसार, भारत में प्रजनन दर राज्य के अनुसार काफी भिन्न है:
- उच्च प्रजनन दर वाले राज्य:
- बिहार, झारखंड, उत्तर प्रदेश
यहां प्रजनन दर अभी भी 2.5 से ऊपर है। कारण: गर्भनिरोधक साधनों का कम उपयोग, स्वास्थ्य सेवाओं की कमी और सामाजिक मानदंड।
कम प्रजनन दर वाले राज्य
दिल्ली, केरल, तमिलनाडु
यहां प्रजनन दर 1.6 से भी कम है। खासकर शिक्षित, मध्यवर्गीय परिवार अब या तो देर से बच्चे पैदा कर रहे हैं या बिल्कुल नहीं।
महत्वपूर्ण प्रगति की है भारत ने” UNFPA की भारत प्रतिनिधि एंड्रिया एम. वोजनार ने कहा “1970 में भारत की औसत प्रजनन दर 5.0 थी, जो अब घटकर लगभग 2.0 हो गई है। यह शिक्षा, प्रजनन स्वास्थ्य सेवाओं और महिलाओं के अधिकारों में सुधार का परिणाम है। इससे मातृ मृत्यु दर में भी भारी गिरावट आई है।
जनसंख्या कब होगी स्थिर?
रिपोर्ट का अनुमान है कि भारत की जनसंख्या 2040 के दशक में लगभग 1.7 अरब पर पहुंचकर स्थिर होने लगेगी, इसके बाद यह गिरावट की ओर बढ़ सकती है। जनसंख्या दोगुनी होने का अनुमान अब 79 वर्षों में है, जबकि पहले यह आंकड़ा लगभग 40 साल होता था। UN रिपोर्ट यह साफ कहती है कि संकट जनसंख्या के आकार में नहीं, बल्कि इस अधिकार में है कि लोग स्वयं तय करें कि वे बच्चे कब और कितने चाहते हैं।प्रजनन स्वास्थ्य, शिक्षा और सामाजिक जागरूकता ही आने वाले वर्षों में भारत की जनसंख्या नीति की सबसे अहम कुंजी