Saturday - 27 December 2025 - 1:39 PM

CWC की अहम बैठक, खरगे बोले– लोकतंत्र कमजोर, मनरेगा खत्म करना गरीबों पर सीधा वार

जुबिली न्यूज डेस्क

कांग्रेस कार्यसमिति (CWC) की अहम बैठक में पार्टी अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने केंद्र की मोदी सरकार के खिलाफ आक्रामक रुख अपनाया। उन्होंने कहा कि देश इस समय ऐसे दौर से गुजर रहा है, जहां

  • लोकतांत्रिक संस्थाएं कमजोर की जा रही हैं,

  • संविधान की भावना को चोट पहुंच रही है,

  • और आम नागरिकों के अधिकार लगातार सिमटते जा रहे हैं

खरगे ने साफ कहा कि यह सिर्फ हालात की समीक्षा का समय नहीं, बल्कि आने वाले संघर्ष की दिशा तय करने का निर्णायक मोड़ है।

मनरेगा पर वार को बताया गरीबों की रोजी-रोटी पर हमला

संसद के शीतकालीन सत्र का जिक्र करते हुए खरगे ने कहा कि मोदी सरकार ने मनरेगा जैसी ऐतिहासिक योजना को कमजोर कर करोड़ों गरीबों, मजदूरों और ग्रामीण परिवारों की रोजी-रोटी पर सीधा प्रहार किया है।
उन्होंने इसे“गरीबों के पेट पर लात और पीठ में छुरा घोंपने जैसा”

बताते हुए कहा कि मनरेगा को खत्म करना केवल एक योजना का अंत नहीं, बल्कि महात्मा गांधी के विचारों और सम्मान पर हमला है।

सोनिया गांधी के लेख का हवाला

खरगे ने सोनिया गांधी के हालिया लेख का उल्लेख करते हुए कहा कि मनरेगा ने गांधी जी के सर्वोदय के सपने को जमीन पर उतारने का काम किया।
उनके अनुसार,

  • इस योजना का अंत सामूहिक नैतिक विफलता को दर्शाता है,

  • जिसके सामाजिक और आर्थिक दुष्परिणाम लंबे समय तक दिखाई देंगे।

उन्होंने यह भी याद दिलाया कि काम करने का अधिकार संविधान के नीति निर्देशक तत्वों की आत्मा है, जिसे यूपीए सरकार ने शिक्षा, भोजन, स्वास्थ्य और रोजगार के अधिकार के रूप में मजबूत किया था।

‘सरकार गरीबों से ज्यादा पूंजीपतियों की चिंता कर रही’

कांग्रेस अध्यक्ष ने आरोप लगाया कि मौजूदा सरकार की नीतियां

  • आम जनता के हित में नहीं,

  • बल्कि कुछ चुनिंदा बड़े उद्योगपतियों को फायदा पहुंचाने के लिए बनाई जा रही हैं।

उन्होंने महात्मा गांधी के उस विचार को दोहराया जिसमेंविशेषाधिकार और एकाधिकार का विरोध किया गया था।खरगे ने कहा कि जो व्यवस्था समाज के साथ साझा नहीं हो सकती, वह नैतिक रूप से स्वीकार्य नहीं है।

मनरेगा की शुरुआत और वैश्विक पहचान

अपने श्रम मंत्री कार्यकाल को याद करते हुए खरगे ने कहा कि मनरेगा की

  • अंतरराष्ट्रीय मंचों पर सराहना होती थी।

उन्होंने बताया कि

  • 2006 में आंध्र प्रदेश के एक गांव से

  • सोनिया गांधी और डॉ. मनमोहन सिंह ने इस योजना की शुरुआत की थी।

समय के साथ यह

  • दुनिया की सबसे बड़ी रोजगार गारंटी योजना बनी,

  • जिसने ग्रामीण भारत को संबल दिया,

  • पलायन रोका

  • और दलितों, आदिवासियों, महिलाओं व भूमिहीन मजदूरों के लिए सुरक्षा कवच बनी।

बिना चर्चा कानून थोपने का आरोप

खरगे ने आरोप लगाया कि मोदी सरकार ने

  • बिना गंभीर अध्ययन,

  • राज्यों और विपक्ष से चर्चा किए
    मनरेगा को खत्म कर नया कानून थोप दिया

उन्होंने इसकी तुलना कृषि कानूनों से की, जिन्हें बिना सलाह के लागू किया गया और बाद में जनता के दबाव में वापस लेना पड़ा।

देशव्यापी आंदोलन का संकेत

कांग्रेस अध्यक्ष ने साफ कहा कि

मनरेगा को बचाने के लिए राष्ट्रव्यापी जन आंदोलन जरूरी है।

उन्होंने भरोसा जताया कि

  • जैसे किसानों के आंदोलन से सरकार को पीछे हटना पड़ा,

  • वैसे ही इस मुद्दे पर भी जनता की ताकत सरकार को झुकने पर मजबूर करेगी

संगठन मजबूत करने और चुनावी तैयारी

CWC बैठक में संगठन सृजन अभियान की प्रगति पर भी चर्चा हुई।
खरगे ने बताया कि

  • सैकड़ों जिलों में जिला अध्यक्षों की नियुक्ति हो चुकी है,

  • जल्द ही बाकी जिलों में प्रक्रिया पूरी होगी।

उन्होंने 2026 में होने वाले असम, पश्चिम बंगाल, तमिलनाडु, केरल और पुडुचेरी चुनावों की तैयारियों पर भी फोकस करने को कहा।

वोटर लिस्ट, SIR और एजेंसियों के दुरुपयोग का मुद्दा

खरगे ने SIR प्रक्रिया को लोकतांत्रिक अधिकारों पर हमला बताते हुए आरोप लगाया कि

  • दलितों, आदिवासियों, पिछड़ों और अल्पसंख्यकों के नाम

  • मतदाता सूची से हटाने की साजिश रची जा रही है।

उन्होंने कार्यकर्ताओं से घर-घर जाकर वोटर लिस्ट जांचने का आह्वान किया। साथ ही ED, CBI और IT के कथित दुरुपयोग पर कहा कि कांग्रेस यह लड़ाईसड़क और अदालत, दोनों जगह लड़ेगी।

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सामाजिक सौहार्द और बांग्लादेश का मुद्दा

खरगे ने बांग्लादेश में हिंदू अल्पसंख्यकों पर हमलों की निंदा की और देश के भीतर भी सांप्रदायिक सौहार्द बिगाड़ने की घटनाओं पर चिंता जताई।उन्होंने कहा कि इससे भारत की अंतरराष्ट्रीय छवि को नुकसान पहुंचता है।

दिग्विजय सिंह का बयान

CWC बैठक में कांग्रेस नेता दिग्विजय सिंह ने संगठन के केंद्रीकरण पर सवाल उठाए।
उन्होंने कहा कि

  • संगठन में विकेंद्रीकरण जरूरी है,

  • कई राज्यों में अध्यक्ष तो होते हैं,

  • लेकिन कमेटियों का गठन नहीं किया जाता, जिससे संगठन कमजोर पड़ता है।

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