जुबिली न्यूज डेस्क
नई दिल्ली: लोकसभा में बुधवार को पेश हुए एक नए विधेयक ने देश की सियासत में हलचल मचा दी है। प्रस्तावित बिल में प्रावधान है कि अगर कोई मुख्यमंत्री या प्रधानमंत्री 30 दिन तक लगातार हिरासत में रहता है, तो उसे अपने पद से हटना पड़ेगा। बिल पेश होते ही विपक्षी दलों ने जोरदार हंगामा किया और विधेयक की प्रतियां फाड़ दीं।
क्या है बिल का प्रावधान?
सूत्रों के मुताबिक, इस बिल में साफ कहा गया है कि अगर कोई शीर्ष पद पर बैठे नेता – चाहे प्रधानमंत्री हो या मुख्यमंत्री – किसी भी मामले में लगातार 30 दिन हिरासत में रहता है, तो वह पद पर बने रहने के योग्य नहीं रहेगा। इस दौरान उसकी जगह कार्यवाहक नियुक्त किया जाएगा।
सरकार का कहना है कि यह कदम “राजनीतिक नैतिकता और जवाबदेही सुनिश्चित करने” के लिए उठाया गया है।
संसद में क्यों मचा बवाल?
जैसे ही यह विधेयक पेश हुआ, विपक्षी सांसदों ने हंगामा शुरू कर दिया। कई विपक्षी नेताओं ने बिल की प्रतियां फाड़कर सदन में लहराईं। उनका आरोप है कि सरकार यह बिल विपक्षी नेताओं को निशाना बनाने और सत्ता पर पकड़ मजबूत करने के लिए लाई है।
कांग्रेस सांसद ने कहा, “यह बिल लोकतंत्र की हत्या है। सरकार जांच एजेंसियों का दुरुपयोग कर विपक्षी नेताओं को हिरासत में रखेगी और उन्हें पद से हटाने का हथियार बनाएगी।”
सरकार का तर्क क्या है?
केंद्रीय कानून मंत्री ने सदन में कहा कि यह बिल किसी को टारगेट करने के लिए नहीं, बल्कि गवर्नेंस में पारदर्शिता और जवाबदेही के लिए लाया गया है। उन्होंने कहा, “अगर कोई नेता गंभीर आरोपों में हिरासत में है और 30 दिन तक बाहर नहीं आ पाता, तो शासन कैसे चलेगा? यह कानून जनता के हित में है।”
वर्तमान कानून में क्या है प्रावधान?
अभी तक मौजूदा कानून के तहत सांसद या विधायक अगर दो साल या उससे अधिक की सजा पाता है, तभी उसकी सदस्यता खत्म होती है। लेकिन यह नया प्रस्ताव उस प्रावधान से बिल्कुल अलग है। इसमें सिर्फ 30 दिन हिरासत की शर्त रखी गई है, चाहे केस का फैसला न हुआ हो।
राजनीतिक मायने
यह विधेयक ऐसे समय में आया है जब कई विपक्षी नेता विभिन्न मामलों में जांच एजेंसियों के रडार पर हैं। ऐसे में विपक्ष का आरोप है कि यह कानून सिर्फ राजनीतिक बदले की भावना से लाया गया है।
विशेषज्ञों का मानना है कि अगर यह कानून पास हो गया तो केंद्र और राज्यों की राजनीति में बड़ा बदलाव देखने को मिल सकता है। कई राज्यों में मुख्यमंत्री विपक्षी दलों से हैं और अगर उन पर जांच का शिकंजा कसता है, तो यह प्रावधान उनकी कुर्सी खतरे में डाल सकता है।
यह बिल फिलहाल लोकसभा में पेश हुआ है और अब इस पर बहस होगी। अगर यह दोनों सदनों से पास हो गया और राष्ट्रपति की मंजूरी मिल गई, तो यह कानून बन जाएगा।