Tuesday - 30 December 2025 - 4:16 PM

डिजिटल मीडिया को लेकर कितना सतर्क है नेपाल का चुनाव आयोग

डा. उत्कर्ष सिन्हा​

नेपाल के आगामी चुनावों पर दुनिया की तमाम बड़ी ताकतों की नज़र टिकी हुई है। जेन जी आंदोलन के बाद से ही नेपाल की राजनीति में अमेरिका और चीन की दिलचस्पी तेज़ी से बढ़ी है, और दोनों ही देश वहाँ अपने लिए अनुकूल सरकार देखना चाहते हैं।​

भारत सहित दुनिया के कई देशों में चुनावों के दौरान डिजिटल मीडिया निर्णायक भूमिका निभाने लगा है। राजनीतिक दल और उम्मीदवार सोशल मीडिया, डिजिटल विज्ञापन और ऑनलाइन कैंपेन के ज़रिए मतदाताओं तक पहुँचने की पूरी कोशिश करते हैं, लेकिन इसके साथ ही भ्रामक और उत्तेजक प्रचार का खतरा भी बहुत बढ़ गया है, जिसका स्पष्ट उदाहरण भारत में आईटी सेल–निर्देशित फेक न्यूज़ और वीडियो बूस्टिंग के रूप में देखा जा सकता है।​

यहीं पर नेपाल का चुनाव आयोग अलग और कहीं अधिक सतर्क नज़र आता है। आयोग ने आगामी चुनाव में स्पॉन्सर्ड या बूस्ट किए गए सोशल मीडिया प्रचार पर सीधी रोक लगा दी है और ‘निर्वाचन आचारसंहिता, 2082’ जारी कर सोशल मीडिया के इस्तेमाल के लिए कड़े दिशा–निर्देश तय किए हैं।​

विदेशी प्लेटफॉर्मों पर सशुल्क प्रचार पर रोक

नई आचारसंहिता के तहत विदेशी संचार माध्यमों से चुनाव–संबंधी प्रचार सामग्री के प्रकाशन और प्रसारण को पूरी तरह प्रतिबंधित कर दिया गया है। Facebook, TikTok, Instagram, YouTube और X (Twitter) जैसे सभी प्रमुख सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म विदेशी होने के कारण इन पर सशुल्क राजनीतिक विज्ञापन नहीं चलाए जा सकेंगे।​

हालाँकि, इसका अर्थ यह नहीं है कि राजनीतिक दल या उम्मीदवार पूरी तरह डिजिटल उपस्थिति से वंचित हो जाएँगे। उन्हें अपने निजी और आधिकारिक वेबपेज पर चुनाव–संबंधी सामग्री रखने की अनुमति है, और वे अपने आधिकारिक सोशल मीडिया अकाउंट से बिना पैसे देकर विज्ञापन बढ़ाए सामान्य तरीके से सूचना और संदेश साझा कर सकते हैं।​

ऑनलाइन न्यूज़ पोर्टल और पारदर्शी विज्ञापन

आयोग ने यह प्रावधान भी किया है कि केवल वही ऑनलाइन न्यूज़ पोर्टल चुनाव–संबंधी विज्ञापन प्रकाशित कर सकेंगे जो सूचना और प्रसारण विभाग में पंजीकृत हों और प्रेस काउंसिल में विधिवत सूचीबद्ध हों। ऐसे पोर्टल जब रोडब्लॉक, कंटेंट ब्लॉक या बैनर के रूप में विज्ञापन दिखाएँगे, तो उन्हें स्पष्ट रूप से “सशुल्क विज्ञापन” के रूप में चिह्नित करना अनिवार्य होगा।​

दूसरी ओर, आम वेबपेज, टीवी चैनलों पर चलने वाली स्क्रोलिंग, शॉपिंग मॉल के डिजिटल डिस्प्ले और बैंक के एटीएम काउंटर जैसे माध्यमों पर किसी भी प्रकार का चुनाव प्रचार करने की अनुमति नहीं दी गई है। इस तरह आयोग ने प्रचार के दायरे को नियंत्रित करते हुए सिर्फ मानकीकृत और उत्तरदायी प्लेटफॉर्मों को ही अधिकृत किया है।​

एआई, डीपफेक और हेट स्पीच पर कड़ा नियंत्रण

नई आचारसंहिता की एक अहम विशेषता यह है कि यह केवल पारंपरिक और डिजिटल प्रचार तक सीमित नहीं, बल्कि आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस (एआई) और उभरती तकनीकों को भी सीधे संबोधित करती है। आयोग मानता है कि डिजिटल दुनिया में फैलने वाली एक छोटी–सी गलत सूचना भी लोकतांत्रिक प्रक्रिया को गहरे स्तर पर प्रभावित कर सकती है, इसलिए तकनीक के इस्तेमाल में सावधानी और जिम्मेदारी दोनों अनिवार्य हैं।​

इसी सोच से प्रेरित होकर आयोग ने एआई–आधारित दुरुपयोगों पर सख्त प्रतिबंध लगाया है। कोई भी व्यक्ति एआई की मदद से सोशल मीडिया पर भ्रामक सूचना नहीं फैला सकता, न वीडियो या ऑडियो से छेड़छाड़ करके डीपफेक तैयार कर सकता है और न ही हेट स्पीच यानी द्वेषपूर्ण अभिव्यक्ति प्रसारित कर सकता है; ऐसा किया जाना आचारसंहिता का गंभीर उल्लंघन माना जाएगा।​

फेक अकाउंट, लाइव स्ट्रीम और मतदाताओं की जिम्मेदारी

चुनाव को प्रभावित करने के इरादे से सोशल मीडिया पर फेक अकाउंट या फर्जी वेबसाइट बनाना भी प्रतिबंधित कर दिया गया है। किसी उम्मीदवार या दल के पक्ष या विरोध में पोस्ट डालना, शेयर करना, कमेंट या कमेंट–रिप्लाई करना, टैग करना और लाइव स्ट्रीमिंग जैसी गतिविधियाँ भी अब आचारसंहिता के दायरे में मानी जाएँगी।​

दिलचस्प बात यह है कि आयोग केवल उम्मीदवारों और दलों को ही नहीं, मतदाताओं को भी जिम्मेदारी के दायरे में लाता है। मतदाता सोशल मीडिया के माध्यम से किसी के पक्ष या विपक्ष में तथ्यहीन या भ्रामक सामग्री प्रसारित नहीं कर सकेंगे, यानी गलत सूचना की श्रृंखला को तोड़ने की जिम्मेदारी समाज के हर स्तर पर बाँटी गई है।​

मॉनिटरिंग में तकनीक का इस्तेमाल

डिजिटल अनुशासन लागू करने के लिए आयोग ने अपने अनुवीक्षण तंत्र को भी तकनीक–मित्र और आधुनिक बनाया है। आचारसंहिता के उल्लंघन की निगरानी के लिए आयोग इलेक्ट्रॉनिक माध्यमों और सूचना प्रौद्योगिकी का उपयोग करेगा और एक समर्पित निगरानी टीम सोशल मीडिया व अन्य डिजिटल प्लेटफॉर्मों पर गतिविधियों पर नज़र रखेगी।​

यह टीम आचारसंहिता उल्लंघन की घटनाओं की वीडियो रिकॉर्डिंग कर सकेगी और इन रिकॉर्डिंग्स को आगे चलकर कानूनी कार्यवाही के दौरान साक्ष्य के रूप में प्रस्तुत किया जा सकेगा। इस तरह तकनीक सिर्फ प्रचार का माध्यम नहीं, बल्कि चुनावी निष्पक्षता की निगरानी का औज़ार भी बनती दिख रही है।​

मतदान प्रक्रिया, गोपनीयता और हरित निर्वाचन

चुनाव प्रबंधन के स्तर पर भी नेपाल का निर्वाचन आयोग तकनीक का नियंत्रित और संस्थागत उपयोग बढ़ा रहा है। मतदान प्रक्रिया में इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन का इस्तेमाल संभव बनाया गया है, और उन मशीनों में दर्ज डिजिटल मतपत्रों को पूर्ण कानूनी मान्यता दी गई है।​

साथ ही मतदान केंद्रों में बिना अनुमति मोबाइल फोन, कैमरा या ड्रोन के उपयोग पर रोक लगाई गई है, जिससे मतदाता की गोपनीयता और मतदान की पवित्रता सुरक्षित रह सके। यह व्यवस्था मतदान केंद्रों को किसी भी तरह की लाइव रिकॉर्डिंग या रियल–टाइम प्रचार से बचाने में मदद करेगी।​

पर्यावरणीय दृष्टि से आयोग ने “हरित निर्वाचन” की अवधारणा को आगे बढ़ाते हुए कागज़ और प्लास्टिक–आधारित प्रचार सामग्री के स्थान पर डिजिटल प्रचार–प्रसार को प्राथमिकता देने की अपील की है। उम्मीदवारों से अपेक्षा की गई है कि वे अपने आधिकारिक वेबसाइट और आधिकारिक सोशल मीडिया पेज के माध्यम से डिजिटल कंटेंट जारी करने को प्राथमिकता दें।​

दंड, निवारण और व्यापक संदेश

यदि कोई व्यक्ति सोशल मीडिया या अन्य डिजिटल तकनीक का उपयोग कर आचारसंहिता का उल्लंघन करता है, तो निर्वाचन आयोग अधिनियम, 2073 के प्रावधानों के तहत उस पर एक लाख रुपए तक का जुर्माना लगाया जा सकता है और गंभीर मामलों में उम्मीदवार की उम्मीदवारी रद्द किए जाने तक की सख्त कार्रवाई भी संभव है।​

इन सभी प्रावधानों को एक साथ देखें तो स्पष्ट होता है कि नेपाल का चुनाव आयोग डिजिटल मीडिया को केवल एक अवसर के रूप में नहीं, बल्कि लोकतांत्रिक प्रक्रिया के लिए संभावित चुनौती और जोखिम के रूप में भी गंभीरता से ले रहा है। कड़े नियम, तकनीक–सक्षम निगरानी और स्पष्ट दंडात्मक प्रावधानों के ज़रिए आयोग यह संदेश दे रहा है कि चुनावी लोकतंत्र को बचाने के लिए डिजिटल संसार को अनुशासित करना अब अनिवार्य हो चुका है।

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