जुबिली न्यूज डेस्क
पटना | बिहार की सियासत इन दिनों रिश्तों की रार को लेकर गरमाई हुई है। विधानसभा चुनाव 2025 की तैयारी के बीच राजद नेता और पूर्व उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव ने मुख्यमंत्री नीतीश कुमार पर तीखा हमला बोलते हुए ‘परिवारवाद’ का मुद्दा उठा दिया है। तेजस्वी ने तंज कसते हुए कहा, “नीतीश जी अब तो जमाई आयोग भी बना दीजिए ताकि सभी रिश्तेदारों का ध्यान रखा जा सके।”
तेजस्वी के इस बयान के बाद एनडीए खेमे में हलचल मच गई है। सत्ताधारी गठबंधन के कई नेता बौखलाए नजर आ रहे हैं और उन्होंने तेजस्वी पर पलटवार शुरू कर दिया है।
विवाद की वजह: आयोगों में रिश्तेदारों की नियुक्ति?
तेजस्वी यादव ने हाल ही में गठित आयोगों में की गई नियुक्तियों पर सवाल खड़े किए। उन्होंने कहा कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के करीबी नेताओं ने अपने बेटे, दामाद और पत्नियों को सरकार से जुड़े पदों पर बैठा दिया है। तेजस्वी ने आरोप लगाया कि ये नियुक्तियां पारदर्शिता और योग्यता को दरकिनार कर सिर्फ रिश्तेदारी के आधार पर की गई हैं।
NDA का पलटवार: “तेजस्वी खुद परिवारवाद की उपज हैं”
तेजस्वी के इस हमले पर एनडीए के नेता भी आक्रामक हो गए हैं।
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डिप्टी सीएम विजय सिन्हा ने कहा कि तेजस्वी खुद उसी राजनीति से आते हैं जिसमें पूरा परिवार सत्ता में शामिल रहा है।
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मंत्री अशोक चौधरी ने आरोप लगाया कि तेजस्वी जब मुद्दों पर हारते हैं, तब निजी हमलों पर उतर आते हैं।
तेजस्वी की तरफ से सीधे आरोप
तेजस्वी ने प्रेस वार्ता में कहा कि:
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मांझी के दामाद देवेंद्र मांझी को एक अहम आयोग में नियुक्त किया गया।
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चिराग पासवान के बहनोई मृणाल को अनुसूचित जाति जनजाति आयोग का सदस्य बनाया गया।
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जेडीयू नेता संजय झा की बेटियों को एक ही दिन सुप्रीम कोर्ट में ग्रुप-A के पैनल में शामिल कर लिया गया।
तेजस्वी ने कहा कि “ये पारदर्शी प्रशासन नहीं बल्कि पारिवारिक एजेंडे का विस्तार है।”
जानकार क्या कहते हैं?
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि तेजस्वी ने इस बयान के ज़रिए परिवारवाद का रुख मोड़ कर एनडीए के खिलाफ इस्तेमाल करने की कोशिश की है। लंबे समय तक खुद परिवारवाद के आरोप झेलने वाले तेजस्वी के इस नए रुख ने सियासी समीकरणों को एक बार फिर उलझा दिया है।
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चुनावी असर?
बिहार में सियासी समीकरण पहले से ही जटिल हैं। तेजस्वी यादव का यह हमला क्या वाकई वोटों को प्रभावित करेगा, यह तो चुनावी परिणाम तय करेंगे, लेकिन इतना तय है कि तेजस्वी ने NDA नेताओं की मुश्किलें जरूर बढ़ा दी हैं।