जुबिली पोस्ट ब्यूरो
नई दिल्ली। वो ज़माने अब गए जब आपके चुनावी खर्चो पर निगरानी रखने वाला कोई नहीं होता था। इस आम चुनाव में जीएसटी की भूमिका भी काफी महत्वपूर्ण मानी जा रही है। प्रत्याशियों को अपने चुनावी खर्चे के भुगतान से प्राप्त होने बिल पर जीएसटी नंबर का भी ध्यान देना होगा। अगर ध्यान नहीं दिया और चूक गए तो आपकी मुसीबत बढ़ सकती है।
चुनाव आयोग की माने तो प्रत्याशियों को अपने चुनावी खर्च दर्शाने में जीएसटी आधारित बिल लगाने पड़ेंगे। बिना जीएसटी नंबर वाले बिल को मान्यता नहीं दी जाएगी। जिस बिल पर जीएसटी नंबर नहीं होगा उसे कच्चा बिल माना जाएगा। ऐसी स्थिति में प्रत्याशी और बिल देने वाला डीलर दोनों ही परेशानी में आ सकते हैं। स्टेट जीएसटी विभाग इसी को आधार बनाकर डीलर की फर्म पर सर्वे कर सकते हैं।

दरअसल चुनाव आयोग ने प्रत्येक प्रत्याशी को चुनावी खर्च के लिए 70 लाख रुपये की सीमा निर्धारित कर रखी है। किसी भी तरह की सेवा या खरीदारी में यह रकम कहीं न कहीं खर्च होगी। ऐसे में महत्वपूर्ण यह है कि जहां रकम खर्च की गई उसका बिल विधिवत हो।हालांकि यह हिदायत प्रत्याशियों को पहले ही दी जा चुकी है, लेकिन स्टेट जीएसटी के अफसरों को भी सचेत रहने को कहा गया है कि वे प्रत्याशी की ओर से लगाए गए बिलों का अध्ययन करते रहें। जहां जैसी जरूरत पड़े, वैसे कदम उठाए जाएं।
प्रदेश के मुख्य निर्वाचन अधिकारी ने स्टेट जीएसटी की सचल दल और विशेष अनुसंधान शाखा के अधिकारियों, कर्मचारियों और वाहनों को निर्वाचन कार्यों से मुक्त रखा है। सहायक मुख्य निर्वाचन अधिकारी अरबिंद कुमार पांडेय ने इस आशय का आदेश जारी किया। निर्वाचन अधिकारी कार्यालय के सूत्र बताते हैं कि विभाग की सचल दल इकाइयोें को चुनाव संबंधी जांच में इस्तेमाल किया जाएगा।
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