न्यूज डेस्क
अंतरराष्ट्रीय जगत में भारत के बढ़ते प्रभाव का असर यूरोपीय संसद में देखने को मिला। भारत के भारी विरोध और उसके मित्रों के दबाव के चलते नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) के खिलाफ यूरोपीय संसद (ईपी) में पेश पांच विभिन्न संकल्पों से संबंधित प्रस्ताव पर मतदान मार्च तक टाल दिया गया।
पाकिस्तान ने अपने कुछ देशों की मदद से प्रस्ताव पर मतदान कराने की कोशिश की थी, लेकिन उसे यहां मात खानी पड़ी। पहले प्रस्ताव पर बुधवार को बहस और गुरुवार को मतदान होना था। लेकिन यूरोपियन संसद में सीएए विरोधी प्रस्ताव पर वोटिंग फिलहाल के लिए मार्च तक टल गई है। भारत के लिए यह बड़ी कूटनीतिक सफलता बताई जा रही है।

751 सदस्यों के समूह में सेंटर-राइट से लेकर अति वामपंथी विचारधारा के 500 से अधिक सदस्य थे। जिस वक्त यह प्रस्ताव आया उस वक्त कुल 483 प्रतिनिधि मौजूद थे। मतदान के वक्त 13 सदस्य अनुपस्थि रहे और 483 सदस्यों में से 271 ने वोटिंग बढ़ाने के लिए मतदान किया जबकि 199 ने इसके विरोध में मतदान किया।
एक आधिकारिक सूत्र ने बताया कि पिछले कुछ दिनों से भारत ने कूटनीतिक तौर पर ब्रसल्ज में अपनी सक्रियता बढ़ाई थी। ब्रसल्ज के साथ ही यूरोपियन राजदूतों के साथ भारत की सक्रियता के कारण ही यह कूटनीतिक जीत दर्ज हो सकी। वोटिंग तिथि आगे बढ़ाने को भारत की वैश्विक कूटनीतिक सफलता के तौर पर देखा जा रहा है। भारत का कूटनीतिक मिशन वैश्विक जगत में नागरिकता कानून को लागू करने को लेकर जारी भ्रमों को दूर करने की रही है।
वोटिंग पोस्टपोन करने का प्रस्ताव मिशल गैहलर के द्वारा लाया गया। सेंटर-राइट यूरोपियन पीपुल्स पार्टी के सदस्य हैं। यूरोपियन संसद में इस वक्त 182 सदस्यों के साथ यही सबसे बड़ी पार्टी है। अब जब वोटिंग तिथि आगे टल गई है तो भारत के पास मौका है कि कूटनीतिक स्तर पर सीएए को लेकर अपनी स्थिति स्पष्ट कर रहे। भारत ने इसके साथ ही पाकिस्तान में पैदा हुए यूरोपियन संसद के सदस्य शफाक मोहम्मद को प्रस्ताव के लिए जिम्मेदार ठहराया है।
दूसरी ओर समाजवादी पार्टी (सपा) के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव ने कहा कि केंद्र में दोबारा भाजपा की सरकार बनने के बाद नेतृत्व में दिखने वाले अहंकार से जहां संघीय व्यवस्था को आघात पहुंच रहा है, वहीं विदेशों तक में भारत की छवि धूमिल हो रही है। भाजपा संविधान से अलग हटकर विचारों की अपनी खिचड़ी पका रही है। इससे देश की एकता और सौहार्द को खतरा पैदा हो गया है।
अखिलेश ने बुधवार को जारी एक बयान में कहा कि भाजपा और आरएसएस दोनों अपने सांप्रदायिक एजेंडा के लिए जाने जाते हैं। उनकी धर्म की राजनीति ने देश में सामाजिक सद्भाव को बहुत क्षति पहुंचाई है। समाज को बांटने का काम किया है। भाजपा की केंद्र सरकार ने सीएए के बाद एनपीआर और एनआरसी कानून लाने का इरादा घोषित कर रखा है। इसके खिलाफ लोगों में गहरा आक्रोश है।
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