डा. उत्कर्ष सिन्हा
नेपाल की राजनीति इस वक्त एक असाधारण नाटकीय मोड़ पर पहुँच चुकी है। जेन Z आंदोलन ने जो मुद्दे उठाए हैं—भ्रष्टाचार मुक्त नेपाल, न्यायिक सुधार, युवाओं की राजनीतिक भागीदारी, पारदर्शी शासन और आर्थिक समानता—उन्होंने सड़क से संसद तक हलचल मचा दी थी । लेकिन अब यह आंदोलन केवल युवाओं का नहीं रहा; इसमें विभिन्न राजनीतिक धड़ों की रणनीति, बाह्य शक्तियों का हस्तक्षेप और पुराने नेतृत्व की जद्दोजहद सब कुछ समाहित हो गया है। हामी नेपाल के सुदन गुरुंग का नया दांव, प्रचंड की कमजोर होती पकड़, ओली की चतुर चाल और रामकुमारी झाक्री की धमाकेदार वापसी—ये सब मिलकर नेपाल के राजनीतिक क्षितिज को पूरी तरह बदल रहे हैं।
सुदन गुरुंग धड़े का नया अवतार: प्रेशर ग्रुप की रणनीति
जेन Z आंदोलन में उभरने वाले सुदन गुरुंग ने नयी मांग उछल दी है कि आंदोलन की सभी मांगें पूरी होने तक नए चुनाव नहीं होने चाहिए। उन्होंने घोषणा की है कि वे अब कोई नई राजनीतिक पार्टी नहीं बनाएंगे, बल्कि एक शक्तिशाली “प्रेशर ग्रुप” बनाएंगे। यह कदम रणनीतिक है। पार्टी बनाने का मतलब होता चुनावी प्रक्रिया में जाना , जवाबदेही और कानूनी बंधन। प्रेशर ग्रुप बनाकर वे बिना जवाबदेही के सड़क से संसद तक दबाव बनाए रखने की कोशिश में हैं। वे मौजूदा सभी दलों पर मनोवैज्ञानिक दबाव बना रहे हैं कि “हम चुनाव नहीं लड़ेंगे, लेकिन तुम्हें लड़ने नहीं देंगे।” यह नेपाल की राजनीति में एक नया प्रयोग है—न पार्टी, न सरकार, सिर्फ दबाव।
लेकिन इसी बीच काठमांडू के मेयर बालेंद्र शाह (बालेन) की छवि को गहरा झटका लगा है। पहले जेन Z के नायक माने जाने वाले बालेन को अब आम नेपाली “अमेरिका-परस्त” और “एनजीओ का एजेंट” कहे जाने लगे हैं। उनकी चुप्पी और विदेशी दौरे ने संदेह को और गहरा किया है।

प्रचंड का पतन: युवाओं से कटा नेतृत्व
पुष्पकमल दाहाल ‘प्रचंड’ का नेतृत्व आज अपने सबसे कमजोर दौर में है। माओवादी आंदोलन के नायक रहे प्रचंड अब जेन Z की नजर में “पुराने, थके और समझौता करने वाले” नेता बन गए हैं। उनकी पार्टी में युवा नेताओं का पलायन तेज हो गया है। जो युवा कभी माओवादी आंदोलन का चेहरा थे, वे अब या तो जेन Z में चले गए हैं या एमाले की ओर खिंचे चले आ रहे हैं।
प्रचंड की सबसे बड़ी विफलता यह है कि वे युवाओं की भाषा नहीं बोल पा रहे। जब जेन Z सोशल मीडिया पर ट्रेंड चला रही है, प्रचंड अभी भी पुरानी सभाओं और भाषणों में उलझे हैं। उनकी सरकारें बार-बार भ्रष्टाचार के आरोपों में घिरीं, और न्यायिक सुधार की बातें कागजों तक सीमित रहीं। नतीजा यह हुआ कि माओवादी खेमा अब दो हिस्सों में बंट गया है—एक प्रचंड के साथ, दूसरा खुलकर जेन Z के पक्ष में।
ओली का मास्टरस्ट्रोक: रामकुमारी झाक्री की वापसी
इसी बीच केपी शर्मा ओली ने राजनीति का सबसे चतुर दांव चला । रामकुमारी झांकरी—जो नेपाली क्रांति के दिनों में युवाओं की आइकन थीं और अब प्रचंड से नाराज होकर अलग हो गई थीं—को उन्होंने एमाले में वापस लाया गया । नेपाल की राजनीती के विशेषज्ञों का मानना है कि झाक्री की वापसी कोई साधारण घटना नहीं है। वे न सिर्फ युवाओं के बीच लोकप्रिय हैं, बल्कि महिलाओं, दलितों और जनजातियों में भी गहरी पैठ रखती हैं। उनकी वापसी ने एमाले को एक साथ तीन लाभ दिए, पहला ,एक ऐसा युवा चेहरा जिसके आने से जेन Z को लगा कि एमाले भी उनकी भाषा समझता है। दूसरा , महिला वोट बैंक पर बड़ा असर क्यूंकि झाक्री ने लैंगिक समानता और महिला सशक्तिकरण को पार्टी का मुख्य एजेंडा बना दिया है और तीसरा, वैचारिक नयापन । उन्होंने एमाले के पुराने वामपंथी चेहरे को प्रगतिशील और आधुनिक रंग दे दिया।
इसके साथ ही महाराज गुरुंग, विनय शाह जैसे युवा नेताओं ने एमाले की युवा शाखा को ताकत दी है। पिछले कुछ महीनों में एमाले में 20 हजार से अधिक नए युवा सदस्य जुड़े हैं—यह आंकड़ा किसी भी दल के लिए रिकॉर्ड है।
जेन Z आंदोलन में बाहरी तत्वों का घुसपैठ?
एमाले इस बात को स्थापित करने में सफल हो रही है कि जेन Z आंदोलन को बाहरी तत्वों ने “हाइजैक” कर हिंसक बना दिया था । जबकि जेन Z के अधिकांश नेता अब भी शांतिपूर्ण आंदोलन की बात करते हैं। कुछ स्वतंत्र विश्लेषकों का भी मानना है कि आंदोलन में सचमुच कुछ बाहरी तत्व सक्रिय हैं—खासकर राजशाही समर्थक दुर्गा प्रसाई का ग्रुप, जो पूर्व राजा ज्ञानेंद्र के साथ गठजोड़ कर रहा है। प्रसाई ने भारत के कुछ हिंदुत्ववादी संगठनों से समर्थन भी जुटाया है, पूर्व माओवादी नेता रहे प्रसाई अब खुलेआम राजशाही और हिंदू राष्ट्र की वकालत कर रहे हैं। लेकिन सर्वे बताते हैं कि 70% से अधिक नेपाली अभी भी गणतंत्र के पक्ष में हैं और नेपाली जनता ने अभी तक राजशाही की बहाली को पूरी तरह खारिज कर दिया है।
निष्कर्ष: युवा शक्ति ही भविष्य तय करेगी
नेपाल की राजनीति आज तीन ध्रुवों पर खड़ी है:
- जेन Z और प्रेशर ग्रुप — जो सत्ता से बाहर रहकर दबाव बनाना चाहते हैं।
- प्रचंड और पुराना वामपंथ — जो तेजी से अप्रासंगिक हो रहा है।
- नया एमाले — जो युवाओं, महिलाओं और प्रगतिशील विचारों के साथ नया गठजोड़ बना रहा है।
आने वाले महीने तय करेंगे कि नेपाल किस दिशा में जाएगा। लेकिन एक बात स्पष्ट है—जेन Z आंदोलन ने नेपाल की राजनीति को हमेशा के लिए बदल दिया है। अब कोई भी दल युवाओं को नजरअंदाज नहीं कर सकता। सुदन गुरुंग प्रेशर ग्रुप बनाकर दबाव बनाने की कोशिश कर सकते हैं, प्रचंड समझौता करके सत्ता बचाने की कोशिश कर सकते हैं, लेकिन असली ताकत अब रामकुमारी झांकरी जैसे युवा नेताओं और लाखों जेन Z युवाओं के हाथ में है।
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