जुबिली स्पेशल डेस्क
कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने आरोप लगाया है कि कर्नाटक, महाराष्ट्र और हरियाणा में वोटर लिस्ट में बड़े पैमाने पर गड़बड़ी की गई है। उनके मुताबिक, लाखों फर्जी नाम जोड़े गए और वास्तविक वोटरों के नाम जबरन हटाए गए। उन्होंने इस संबंध में कुछ दस्तावेज़ भी सार्वजनिक किए हैं।
इन दावों पर प्रतिक्रिया देते हुए कर्नाटक और महाराष्ट्र के राज्य चुनाव आयोगों ने राहुल गांधी को पत्र लिखकर स्पष्ट किया है कि यदि वे अपने आरोपों को सही मानते हैं, तो उन्हें रूल 20(3)(b) के तहत शपथ पत्र देना होगा। आयोग ने इसके लिए उन्हें समय-सीमा भी दी है।
क्या है रूल 20(3)(b)?
“पीपुल्स रिप्रेजेंटेशन एक्ट, 1950” के अंतर्गत यह नियम कहता है कि यदि कोई व्यक्ति यह दावा करता है कि वोटर लिस्ट में किसी व्यक्ति का नाम गलत तरीके से शामिल किया गया है, तो उसे एक शपथ पत्र देना अनिवार्य है। इस शपथ पत्र में यह स्पष्ट करना होता है कि उसके पास जो जानकारी है, वह सही और प्रमाणिक है।

आयोग खुद जांच क्यों नहीं करता?
बिना शपथ पत्र के किसी शिकायत की जांच करने पर आयोग को गैर-जिम्मेदार या झूठे आरोपों से दो-चार होना पड़ सकता है, जिससे न केवल समय की बर्बादी होती है बल्कि चुनावी प्रक्रिया की निष्पक्षता पर भी प्रश्न उठ सकते हैं। इसी कारण, आयोग कानूनी शपथ को आवश्यक मानता है।
नियम का उद्देश्य क्या है?
यह नियम 1960 में बनाया गया था ताकि लोकतांत्रिक प्रणाली में पारदर्शिता बनी रहे और झूठे या बिना आधार के आरोपों से बचा जा सके। नियम का उद्देश्य फर्जी दावों की रोकथाम और विश्वसनीय चुनावी प्रक्रिया को सुनिश्चित करना है।
क्या यह नियम आम नागरिकों पर भी लागू होता है?
हां। चाहे कोई राजनेता हो या आम नागरिक—अगर कोई वोटर लिस्ट की वैधता पर सवाल उठाता है, तो उसे रूल 20(3)(b) के अंतर्गत शपथपत्र देना होगा। बिना शपथ के शिकायत को केवल आरोप मानकर खारिज किया जा सकता है।
अगर राहुल गांधी का दावा झूठा निकला तो?
यदि राहुल गांधी शपथ पत्र जमा करते हैं और बाद में उनके द्वारा दिए गए तथ्यों को झूठा या भ्रामक पाया जाता है, तो धारा 31 के तहत उनके खिलाफ कार्रवाई हो सकती है। इसमें छह महीने तक की जेल या जुर्माना, या दोनों का प्रावधान है। हालांकि, किसी भी दंड से पहले यह साबित करना जरूरी होगा कि उन्होंने जानबूझकर गलत जानकारी दी।
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