
डॉ. उत्कर्ष सिन्हा
जिस बात की आशंका थी वो सच साबित हो गई। भारत की अर्थव्यवस्था में कोरोना महमारी और उसके चलते तालाबंदी के बाद एक तिमाही में सबसे बड़ी गिरावट दर्ज की है। अप्रैल से जून के बीच की तिमाही में भारत की जीडीपी 23.9 फीसदी गिर गई है।
सरकार ने सोमवार को जब ये आंकड़े सार्वजनिक किए तो निराशा के बादल एक बार फिर गहरा गए। कहां हम 5 ट्रिलियन वाली अर्थव्यवस्था के सपने देख रहे थे और कहां हम निगेटिव ग्रोथ में चले गए।
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जिनता अनुमान था, नतीजे उससे भी खराब आए और ये कहा जा रहा है कि ये आंकड़े एक बार और रिवाइज हो सकते हैं। हमारी अर्थव्यवस्था का गिराव इतना ज्यादा है कि इसे रिकवर करने में दो- चार तिमाही नहीं बल्कि दो से तीन साल तक लगेंगे। अगर प्री कोरोना दौर में हमारी इकनॉमी ढ़ाई ट्रिलियन डॉलर की इकनॉमी थी, तो वहां लौटकर आने का वक्त दो से तीन साल तक का हो सकता है।
ये बदहाली सिर्फ भारत में ही है ऐसा भी नहीं है। दुनिया के तमाम बड़े देशों में भी ग्रोथ निगेटिव ही है। अमेरिका, इटली, जर्मनी सब यही देख रहे हैं, मगर भारत सबसे ज्यादा नकारात्मक स्थिति में है।
आंकड़े जब आए तो लोगों ने ये भी माना कि कोरोना महामारी में जब सब कुछ बंद था तब ये तो होना ही था, लेकिन फिर ये सवाल भी उठा कि महामारी तो पूरी दुनिया में ही थी, कम या ज्यादा लाक डाउन तो लगभग सबने किया, तो एक बार फिर सरकार की लाक डाउन नीति पर भी सवाल उठने लगे।
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वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने जीएसटी काउंसिल की मीटिंग के दौरान कोरोना वायरस संकट को ‘एक्ट ऑफ गॉड’ यानि दैवीय आपदा बता दिया था। अब बीजेपी के ही नेता सुब्रह्मण्यम स्वामी ने इस बात पर कटाक्ष करते हुए पूछा है कि कोरोना के पहले ही GDP गिरकर 3.1% पर आ चुकी थी, क्या वो भी ‘एक्ट ऑफ गॉड’ था?
फिक्र ये भी है कि आगे की तस्वीर कैसी होगी ? जो नए उपाय सरकार कर रही है- मसलन आर्थिक पैकेज- वो क्या सही दिशा है ? क्या जो सपने हम भारतीयों ने देखे थे वो महज सपने बन चुके हैं और क्या अपनी नीतियों के कारण हम इतने पीछे जा चुके हैं कि हमे उबरने में लंबा समय लगेगा ? डेढ़ करोड़ से ज्यादा रोजगार गए हैं वो जो नौकरियां कब तक वापस आएंगी? कैसे आएंगी ?
सवाल बहुत हैं जिनके जवाब तलाशने की कोशिश हम करेंगे। हमारे साथ हैं वरिष्ठ पत्रकार सिद्धार्थ कलहंस, अर्थशास्त्री डॉ. अजय प्रकाश और डॉ. योगेश बंधु …
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