जुबिली स्पेशल डेस्क
कांग्रेस के वरिष्ठ नेता दिग्विजय सिंह द्वारा आरएसएस और बीजेपी को लेकर किए गए हालिया सोशल मीडिया पोस्ट ने पार्टी के भीतर सियासी हलचल तेज कर दी है। कांग्रेस नेतृत्व ने उनके बयान और सुझावों से स्पष्ट रूप से दूरी बनाते हुए यह संकेत दिया है कि पार्टी की वैचारिक लाइन किसी एक नेता की व्यक्तिगत राय से तय नहीं होती।
कांग्रेस के मीडिया विभाग के चेयरमैन पवन खेड़ा ने दिग्विजय सिंह की टिप्पणी को सिरे से खारिज करते हुए कहा कि आरएसएस जैसे संगठन गांधी के विचारों पर चलने वाली कांग्रेस को कोई सीख देने की स्थिति में नहीं हैं। उन्होंने दो टूक कहा कि कांग्रेस एक आंदोलन से निकली पार्टी है, जिसकी जड़ें स्वतंत्रता संग्राम और गांधीवादी विचारधारा में हैं।
“गोडसे का संगठन, गांधी के संगठन को नहीं सिखा सकता”
पवन खेड़ा ने आरएसएस पर तीखा हमला करते हुए कहा, “गोडसे का संगठन गांधी के संगठन को यह नहीं सिखा सकता कि संगठन कैसे चलता है। कांग्रेस की अपनी परंपरा, संघर्ष और वैचारिक विरासत है।” उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि कांग्रेस लोकतांत्रिक मूल्यों, समावेशिता और जन आंदोलन की राजनीति में विश्वास रखती है, जबकि आरएसएस की राजनीति समाज को बांटने वाली है।
खेड़ा ने कहा कि कांग्रेस न तो आरएसएस और न ही बीजेपी की कार्यशैली से प्रभावित है और न ही वहां से सीख लेने की जरूरत महसूस करती है।
दिग्विजय सिंह के पोस्ट से शुरू हुआ विवाद
यह प्रतिक्रिया ऐसे समय आई है जब दिग्विजय सिंह ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म ‘एक्स’ पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की 1990 के दशक की एक ब्लैक एंड व्हाइट तस्वीर साझा की थी। पोस्ट में उन्होंने लिखा था कि यह तस्वीर आरएसएस और जनसंघ/बीजेपी की संगठनात्मक ताकत को दर्शाती है, जहां एक जमीनी कार्यकर्ता आगे चलकर प्रदेश का मुख्यमंत्री और फिर देश का प्रधानमंत्री बना।
दिग्विजय सिंह की इस टिप्पणी को कई लोगों ने प्रधानमंत्री मोदी और आरएसएस की प्रशंसा के रूप में देखा, जिसके बाद राजनीतिक हलकों में विवाद तेज हो गया।
दिग्विजय सिंह की सफाई
विवाद बढ़ने पर दिग्विजय सिंह ने सफाई देते हुए कहा कि वह आरएसएस और केंद्र सरकार की नीतियों के “घोर विरोधी थे, हैं और रहेंगे।” उन्होंने स्पष्ट किया कि उनकी टिप्पणी किसी विचारधारा की नहीं, बल्कि संगठनात्मक संरचना की थी।
कांग्रेस नेतृत्व का सख्त संदेश
हालांकि, कांग्रेस नेतृत्व ने दिग्विजय सिंह के बयान से दूरी बनाकर यह साफ कर दिया है कि पार्टी की वैचारिक दिशा और रणनीति सामूहिक निर्णयों से तय होती है। राजनीतिक गलियारों में अब यह सवाल भी उठने लगा है कि क्या दिग्विजय सिंह की सोच पार्टी के शीर्ष नेतृत्व और गांधी परिवार की रणनीति से मेल खा रही है या नहीं।
फिलहाल कांग्रेस ने यह स्पष्ट संदेश दे दिया है कि संगठनात्मक सुधार का रास्ता आरएसएस की तुलना या प्रशंसा से नहीं, बल्कि अपनी मूल विचारधारा और जनसंघर्ष की राजनीति से होकर ही निकलेगा।
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