जुबिली न्यूज डेस्क
नई दिल्ली— कांग्रेस के वरिष्ठ नेता मनीष तिवारी और शशि थरूर एक बार फिर राजनीतिक चर्चाओं के केंद्र में हैं। कारण है — ऑपरेशन सिंदूर पर संसद में हुई बहस, जिसमें इन दोनों को बोलने का मौका नहीं दिया गया, जबकि वे विदेश में इस ऑपरेशन पर भारत का पक्ष मजबूती से रख चुके थे।
अब जब पार्टी ने उन्हें लोकसभा में बोलने से रोका, तो अंदरूनी असंतोष और नाराजगी की खबरें सामने आने लगीं। लेकिन इस पूरे घटनाक्रम के बीच प्रियंका गांधी की सक्रिय भूमिका ने सियासी गलियारों में नई अटकलें शुरू कर दी हैं।
प्रियंका गांधी का Damage Control मिशन
केरल के वायनाड से सांसद बनने के बाद प्रियंका गांधी ने न केवल संसद में आक्रामक भूमिका निभाई है, बल्कि संगठन के भीतर नाराज नेताओं को मनाने की जिम्मेदारी भी अपने हाथ में ले ली है।
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29 जुलाई को संसद परिसर में प्रियंका गांधी और मनीष तिवारी के बीच बातचीत का वीडियो सामने आया।
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इसके बाद शशि थरूर के साथ एक तस्वीर वायरल हुई, जिसमें वे संसद भवन में उनसे मिलती नजर आ रही हैं।
इन मुलाकातों को कांग्रेस के भीतर एक “संवाद और संतुलन” की कोशिश के तौर पर देखा जा रहा है।
क्यों नाराज हैं तिवारी और थरूर?
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मनीष तिवारी ने पार्टी को पत्र लिखकर ऑपरेशन सिंदूर पर बोलने की इच्छा जताई थी, लेकिन उन्हें नजरअंदाज कर दिया गया।
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थरूर से भी कांग्रेस ने संपर्क किया, लेकिन उन्होंने संसद में इस विषय पर न बोलने और ‘भारतीय बंदरगाह विधेयक, 2025’ पर चर्चा करने की इच्छा जताई।
इन दोनों नेताओं को उनकी विदेश नीति और रक्षा मामलों की विशेषज्ञता के लिए जाना जाता है, ऐसे में उन्हें दरकिनार किया जाना कई सवाल खड़े करता है।
प्रधानमंत्री मोदी का तंज
पीएम नरेंद्र मोदी ने संसद में कांग्रेस की आंतरिक राजनीति पर तंज कसते हुए कहा था:“कुछ कांग्रेस नेता विदेशों में भारत की वकालत कर रहे थे, लेकिन उन्हें सदन में बोलने तक नहीं दिया गया।”हालांकि मोदी ने किसी का नाम नहीं लिया, लेकिन शशि थरूर की मुस्कान ने इशारा साफ कर दिया।
क्या प्रियंका ने नाराजगी दूर कर दी?
इस सवाल का फिलहाल कोई आधिकारिक जवाब नहीं है, लेकिन पार्टी सूत्रों के मुताबिक:
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प्रियंका गांधी ने व्यक्तिगत संवाद से स्थिति को संभालने की कोशिश की है।
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मनीष तिवारी और शशि थरूर दोनों अब तक पार्टी के साथ बने हुए हैं, लेकिन ये घटनाएं भविष्य में कांग्रेस के भीतर निर्णय लेने की प्रक्रिया पर बहस छेड़ सकती हैं।
मनीष तिवारी और शशि थरूर जैसे नेता कांग्रेस के विचारशील और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सम्मानित चेहरे हैं। उन्हें संसद में नजरअंदाज करना कांग्रेस की रणनीति पर सवाल खड़े करता है। प्रियंका गांधी की सक्रियता और बातचीत ने अस्थायी तौर पर स्थिति को संभालने की कोशिश की है, लेकिन भविष्य में नेतृत्व और संवाद की पारदर्शिता को लेकर कांग्रेस को सतर्क रहना होगा — वरना असंतोष खुलकर सामने आ सकता है।