Saturday - 6 January 2024 - 11:01 PM

दिल्ली हिंसा : दंगाई भीड़ से कैसे बचा पत्रकार, पढ़िए आपबीती

न्यूज डेस्क

पिछले दो दिनों से उत्तर पूर्वी दिल्ली का कई इलाका सुलग रहा है। अभी भी हालात नियंत्रण में नहीं है। अब तक की हुई हिंसा में 20 लोगों की मौत हो चुकी है और 100 से ज्यादा लोग घायल हुए हैं। इस हिंसा की रिपोर्टिंग कर रहे कई पत्रकार भी उपद्रवियों की हिंसा के शिकार हुए हैं। इनमें ‘Indian Express’ के एक पत्रकार शिवनारायण राजपुरोहित भी शामिल है।

राजपुरोहित मॉब का शिकार होने से बाल-बाल बच गए। राजपुरोहित ने अपनी आपबीती बताई है कि किस तरह उन्होंने भीड़ का सामना किया और भीड़ ने उनसे पूछा, ‘हिंदू हो? बच गए।’

पत्रकार ने इस पूरे वाकये के बारे में बताया, ‘उस समय दोपहर के करीब 1 बजे थे। उत्तर पूर्वी दिल्ली के करावल नगर के पास बीच सड़क पर एक बेकरी शॉप के कुछ सामान और फर्नीचर अधजली अवस्था में पड़े थे और मैं इस शॉप का फोन नंबर लिखते वक्त अचानक रुक गया। 40 साल का एक आदमी मेरे पास आया और उसने मुझसे पूछा…’कौन हो तुम? यहां क्या कर रहे हो?

मैंने उसे बताया कि मैं एक पत्रकार हूं। इसके बाद उसने मुझसे कहा कि ‘मुझे अपना नोटबुक दो’ ..उसने नोटबुक को उलट-पलट कर देखा और उसे उसमें कुछ भी संदिग्ध नहीं मिला। उसमें सिर्फ कुछ फोन नंबर थे और उस स्थान के बारे में मेरे द्वारा आंखों देखी हालत लिखी हुई थी। उसने मुझे धमकी दी कि तुम यहां से रिपोर्टिंग नहीं कर सकते…ज्उसने मेरे नोटबुक को जले हुए बेकरी के सामानों के बीच फेंक दिया।

इसके बाद करीब 50 लोगों के समूह ने मुझे घेर लिया। उन्हें शक था कि मैंने वहां हुई हिंसा की कुछ तस्वीरें अपने मोबाइल फोन से खींची हैं। उन्होंने मेरे फोन की जांच की और कोई भी वीडियो या फोटो मेरे मोबाइल से नहीं मिला, लेकिन उन्होंने मेरा मोबाइल फोन लौटाने से पहले उसमें पड़े सारे फोटो और वीडियो डिलीट कर दिये। फिर उन लोगों ने पूछा कि ‘तुम यहां क्यों आए हो? ज्क्या तुम जेएनयू से हो? जान बचाने के लिए मुझे वहां से भागने के लिए कहा गया और मुझसे ऐसे सवाल पूछे गए।

घटनास्थल से करीब 200 मीटर की दूरी पर मैंने अपनी बाइक पार्क की थी। मैं उस तरफ जाने लगा। जैसे ही मैं पार्किंग के पास पहुंचा लाठी और रॉड से लैस दूसरा ग्रुप मेरे पास आ गया। इस ग्रुप में शामिल एक शख्स ने अपना चेहरा छिपा रखा था और उसने मुझसे फिर कहा कि अपना मोबाइल दिखाओ…मैंने उनसे कहा कि मेरे मोबाइल से सभी फोटो और वीडियो डिलीट हो चुके हैं। वो दोबारा चिल्लाया, ‘फोन दो’.. वो मेरे पीछे खड़ा हो गया और उसने मेरी जांघों पर 2 डंडे मारे..जिससे मैं कुछ देर के लिए अस्थिर हो गया।

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इस भीड़ से कुछ आवाजें भी आईं…तुम्हारे लिए क्या कीमती है तुम्हारी जिंदगी या फोन? मैंने अपना फोन लड़के को दे दिया… वो लड़का शोर मचाता हुआ भीड़ में गुम हो गया।

कुछ ही क्षणों बाद दूसरी भीड़ मेरा पीछा करने लगी। करीब 50 साल का एक शख्स मेरे पास आया और उसने मेरा चश्मा जमीन पर फेंका और उसे कुचल दिया। हिंदू बाहुल इलाके से रिपोर्टिंग करने की वजह से उसने मुझे दो थप्पड़ मारे। उन लोगों ने मेरा प्रेस कार्ड चेक किया और बोले ‘शिवनारायण राजपूत, हां, हिंदू हो  ? बच गए’  लेकिन वो संतुष्ट नहीं हुए वो अच्छी तरह से दुरुस्त कर लेना चाहते थे कि मैं असल में हिंदू ही हूं। उन्होंने मुझसे कहा – बोलो जय श्रीराम…मैं खामोश था।

उन्होंने मुझे आदेश दिया कि जिंदगी बचाने चाहते हो तो जल्दी भागों यहां से। इनमें से एक ने कहा कि ‘एक और भीड़ आ रही है आपके लिए’। मैं बाइक की चाबी निकालने के लिए अपना बैग चेक कर रहा था। हर एक मिनट कीमती था। तब ही इनमें से एक ने कहा कि ‘जल्दी करो वो लोग छोड़ेंगे नहीं।’ आखिरकार मुझे अपनी बाइक की चाबी मिल गई और मैं पुश्ता रोड की तरफ चल पड़ा।

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