Saturday - 6 January 2024 - 10:16 AM

गिरता हुआ भू-जलस्तर देश के सामने बड़ी समस्या

दिव्‍या राय

गिरता हुआ भू-जलस्‍तर भारत में ही नहीं विश्व के कई देशों में आम जन को प्रभावित कर रहा है। भारत में ये समस्‍या बहुत गंभीर विषय है। इस पर आम जन को जागरुक होने और सरकार को गंभीरता से विचार करन चाहिए। साथ ही एक वास्‍तविक जल नीति लागू करने की नितान्त आवश्‍यकता है।

वैसे तो पूरे भारत में भू-जलस्‍तर गिर रहा है, और भारत निर्जल होने के कगार पर जा रहा है। भारत में भू-जल का वितरण सर्वत्र समान नहीं है। भारत के पठारी भाग हमेशा से भू-जल के मामले में कमजोर रहे हैं। यहां भू-जल कुछ खास भूगिभर्क संरचनाओं में पाया जाता है।

उत्तरी भारत के जलोढ़ मैदान हमेशा से भू-जल से सम्पन्न रहे हैं। लेकिन अब उत्तरी पश्चिमी भागों में सिंचाई हेतु तेजी से दोहन के कारण इसमें भी कमी दर्ज की गई है।  ज्ञातव्य है कि भारत में अभी भी सिंचाई और पेयजल का स्रोत अधिकांश मात्रा में भूजल ही है।

ऐसे में भू-जल का तेजी से गिरता स्‍तर एक बड़ी चुनौती के रुप में उभर रहा है। उदारहण के तौर पर भारत देश की राजधानी दिल्ली और सटे हुए क्षेत्र NCR की थोड़ी विस्‍तृत चर्चा की जाये तो यहां पर लगातार गिरता हुआ भू-जलस्‍तर भविष्‍य में आने वाली गंभीर समस्‍या का संकेत है।

जबिक दिल्ली में अत्यन्त पढ़े लिखे और जागरुक लोग भी है और केंद्र सरकार के सरकारी तंत्र का जाल भी वहीं से बिछना शुरु होता है। केंद्रीय भू-जल बोर्ड द्वारा माननीय न्यायालय में दायर रिपोर्ट मई 2000 से मई 2017 के दौरान दिल्‍ली में भू-जलस्‍तर की स्थिति को व्यक्त करती है।

प्राप्‍त सूचनाओं के अनुसार रिपोर्ट (विवरण) में उल्लिखित है कि दक्षिणी दिल्ली, उत्तर पूर्वी दिल्ली, उत्तर पश्चिमी दिल्ली, पूर्वी दिल्ली मे हालत खतरनाक हो चुके हैं, जिस पर माननीय अदालत भी चिन्ता जता चुकी है।

माननीय उच्चतम न्यायालय ने कहा है कि हालत इतनी खराब हो चुकी है कि राष्‍ट्रपति भवन के आसपास का भू-जलस्‍तर काफी नीचे चला गया है।  राष्‍ट्रीय राजधानी के नवीनतम सवर्क्षेण, जो 19 मार्च 2018 को जारी किया था, के अनुसार दक्षिण और पश्चिमी दिल्ली में कुछ स्‍थानों पर जलस्‍तर बहुत नीचे चला गया है।

यह समझने की जरुरत है कि भू-जलस्‍तर के रिचार्ज की प्रकिया क्या है। भू-गर्भ जल को पुर्नसंरक्षित करने के लिए वर्षा का पानी तालाबों, कुओं, नालों के जरिए धरती के भीतर संचित होता है। लेकिन दिल्ली NCR के अधिकतर तालाब अवैध कब्जों के कारण नष्ट हो गयें है, और कुओं का अस्तित्‍व अब नहीं रह गया है।

आजकल देश में बोरवेल और सबमर्सिबल का चलन भी काफी तेजी से बढ़ता जा रहा है। जबिक N.G.T. और न्यायालय पहले ही बोरबेल के बढ़ते चलन के लिए चिंता जता चुके हैं।

देश की राजधानी समेत भारत के कई अन्य राज्यों में ये एक तरह से प्रतिबंधित है। लेकिन फिर भी शासन और सरकार के कमजोरी के वजह से हर जगह बिना किसी रोक टोक के भूजल का दोहन हो रहा है और अधिकतर घरों में सबमर्सिबल का प्रयोग हो रहा है।

वास्‍तव में ऐसे किसी कार्य पर आंशिक प्रतिबंध लगना और फिर प्रशासन से इसकी अनुमति लेकर उसको कराना एक ही सिक्‍के के दो पहलू जैसा है। प्रतिबंधित काम तो रुकता नहीं है। लेकिन अधिकांश जगहों पर प्रशासन की कमाई का एक अतिरिक्‍त जरिया बन जाता है।

थोड़ा अगर औरविस्‍तृत रूप से दिल्‍ली एनसीआर को देखा जाए तो यहां पर नालों में बारिश के पानी की बजाए शहरों और कारखानों का जहरीला पानी बहता है। तेजी से बढ़ती जनसंख्‍या, फैलते शहरीकरण के अलावा ग्‍लोबलवार्मिंग से उत्‍पन्‍न जलवायु परिवर्तन भी गिरते भू-जलस्‍तर के लिए जिम्‍मेदार है।

दिल्‍ली का ज्‍यादातर हिस्‍सा कंक्रीट से ढ़क गया है। यही कारण है कि वर्षा का पानी धरती के भीतर स्रवित होकर जा नहीं सकता है और इस पानी के धरती के अंदर स्राव न होने से भू जलस्‍तर बढ़ने के बाजए लगातार गिरता जा रहा है।

दिल्‍ली समेत भारत के अनेक भाग में भू जलस्‍तर गिरने का एक बहुत बड़ा कारण समुचित पेय जल की व्‍यवस्‍था का ना होना भी है। इसी कारण आम लोगों के द्वारा जल पूर्ति के वैकल्‍पिक साधनों जैसे सबमर्सिबल और हैंडपंप का इस्‍तेमाल तेजी से बढ़ा है।

दूसरा कारण भवन निमार्ण मे तेजी से वृद्धि का होना भी है। जिसमें बड़े पैमाने पर पानी की खपत और बर्बादी तेजी से होती है। बड़ी-बड़ी निमार्ण कम्पिनयां, मॉल, काम्प्लेक्स, सोसाइटी आदि के निमार्ण मे अवैध तरीके से भू-जल का उपयोग कर रही है।

इसके साथ ही भूजल बोर्ड के रिपोर्ट को अनदेखी करके तेजी से स्‍वीमिंग पूल का निमार्ण भी जारी है। भू-जल के दोहन को रोकने, जन जागरुकता फैलाने और समुचित जलापूर्ति की जिम्मेदारी सरकार की है। जिसमें सभी सरकारी योजनाओं करीब-करीब नाकाम रही है। निजी निर्माण कम्पिनयों द्वारा किया जाने वाला भू-जल का दोहन, गांवो में पानी की टंकी का न होना आदि पर सरकारी अंकुश नहीं है और यदि नियमों में अंकुश लगाने का कानून है तो उसका धरातल पर कोई मतलब नहीं है।

पर्यावरण कायर्कतार्ओं और पर्यावरणविदों का कहना है कि ये समस्‍या बहुत गंभीर है और इसपर सरकार को विचार करने और वास्‍तविक नीति लाकर धरातल तक लागू करने की त्‍वरित आवश्‍यकता है। दिल्ली सहित भारत में जहां पानी सप्लाई की समुचित व्यवस्‍था नहीं है,सरकार का सबसे पहला और जरुरी कदम पानी की सप्लाई की समुचित व्यवस्‍था करे कि बरसात का पानी अधिक से अधिक मात्रा में जमीन के अंदर जाये।

(लेखिका के ये निजी विचार हैं)

Radio_Prabhat
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