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2021 में कोरोना ने 7.7 करोड़ लोगों को गरीबी में धकेला : रिपोर्ट

जुबिली न्यूज डेस्क

कोरोना का संकट कब खत्म होगा इसका जवाब न तो वैज्ञानिकों के पास है और न ही सरकारों के पास। कोरोना की मार से सबसे ज्यादा प्रभावित गरीब देश हुए हैं।

कोरोना का संकट अब भी बना हुआ है। कोरोना की दवा, वैक्सीन सब आ गयी है फिर भी यह तांडव मचाए हुए है। गरीब देश तो बेहाल हैें।

यूएन की ताजा रिपोर्ट के मुताबिक, अमीर देश बेहद कम ब्याज पर उधार ली गई रिकॉर्ड राशि के साथ कोरोना महामारी की मंदी से उबर सकते हैं, लेकिन गरीब देश अभी भी अपना कर्ज चुकाने के लिए संघर्ष कर रहे हैं।

रिपोर्ट में कहा गया है कि इस स्थिति ने “विशाल वैश्विक वित्तीय अंतर” पैदा कर दिया है।

यूएन के अनुसार गरीब देशों ने अपना कर्ज चुकाने में अरबों डॉलर खर्च किए और उन्हें उच्च ब्याज दर पर ऋ ण मिला था, इसलिए वे शिक्षा और स्वास्थ्य सुधार, पर्यावरण और असमानता घटाने की दिशा में अधिक खर्च नहीं कर सके।

संयुक्त राष्ट्र के अनुसार, साल 2019 में 81.2 करोड़ लोग अत्यधिक गरीबी में जी रहे थे और रोजाना 1.90 डॉलर या उससे कम ही कमा रहे थे। वहीं 2021 तक कोरोना महामारी के बीच ऐसे लोगों की संख्या बढ़कर 88.9 करोड़ हो गई।

संयुक्त राष्ट्र की उप महासचिव अमीना मोहम्मद ने नई रिपोर्ट को बहुत ही “भयानक” बताया है। उन्होंने “लाखों को भूख और गरीबी से बाहर निकालने के लिए सामूहिक जिम्मेदारी” का आह्वान किया है।

अमीना ने कहा, “जलवायु परिवर्तन और कोरोना महामारी स्थिति को और बदतर बना रही है। इसके साथ ही यूक्रेन युद्ध का वैश्विक प्रभाव भी है।”

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उप महासचिव मोहम्मद ने कहा, संयुक्त राष्ट्र के एक विश्लेषण से संकेत मिलता है कि यूक्रेन में युद्ध के परिणामस्वरूप 1.7 अरब लोगों को भोजन, ऊर्जा और खाद की उच्च कीमतों का सामना करना पड़ रहा है।

यूएन की रिपोर्ट में अनुमान लगाया गया है इसकी वजह से साल 2023 के आखिर तक 20 फीसदी विकासशील देशों में प्रति व्यक्ति जीडीपी 2019 से पहले के स्तर पर नहीं लौटेगी। इसमें यूक्रेन युद्ध के कारण होने वाली अतिरिक्त लागत शामिल नहीं है।

रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि सबसे गरीब देश कर्ज चुकाने पर अरबों खर्च कर रहे हैं, जिससे उन्हें शिक्षा और बुनियादी ढांचे पर खर्च में कटौती करनी पड़ रही है।

रिपोर्ट में कहा गया है कि वहीं विकसित देश “बेहद कम ब्याज दरों” पर पैसे उधार ले सकते हैं और अपेक्षाकृत आसानी से आर्थिक संकट का सामना कर सकते हैं।

संयुक्त राष्ट्र के अनुसार, अमीर देश अपनी आय का 3.5 प्रतिशत कर्ज चुकाने पर खर्च करते हैं, जबकि कम अमीर देशों को अपनी आय का 14 फीसदी खर्च करना पड़ता है।

वहीं यूके्रन और रूस युद्ध की वजह से गरीब देशों की परेशानी और बढ़ रही है। दरअसल यूक्रेन और रूस अनाज और ईंधन के दुनिया के सबसे बड़े निर्यातकों में से हैं। इस युद्ध का विकासशील अर्थव्यवस्थाओं पर अतिरिक्त प्रभाव पडऩे लगा है।

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मालूम हो कि श्रीलंका ने पिछले हफ्ते घोषणा की थी कि वह अपना कर्ज नहीं चुका पाएगा क्योंकि उसका विदेशी मुद्रा भंडार खत्म हो गया है।

दूसरी ओर नाइजीरिया और केन्या में ईंधन की कमी ने व्यापार को प्रभावित किया है। लोगों को ईंधन के लिए लंबी कतारों में खड़े होना पड़ रहा है।

वहीं अमेरिका और अधिकांश यूरोपीय देशों समेत विकसित अर्थव्यवस्थाओं में भी मुद्रास्फीति तेजी से बढ़ी है।

यूएन की रिपोर्ट में कहा गया है कि कोरोना महामारी ने पिछले साल 7 करोड़ से ज्यादा लोगों को अत्यधिक गरीबी में डुबो दिया और कई विकासशील देश कर्ज पर दिए जाने वाले भारी ब्याज के कारण कोरोना महामारी के दुष्प्रभावों से बाहर नहीं आ पा रहे हैं।

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