
डा.सीमा जावेद
COP28 के समापन पर सम्मेलन के अध्यक्ष की और से नया ग्लोबल स्टॉकटेक (जीएसटी) दस्तावेज़ जारी किया है। इसमें फोस्सिल फ्यूल यानी कोयला, तेल और गैस तीनों ही को लेकर “फ़ेज़ आउट” या “फ़ेज़ डाउन”, दोनों ही बातें नहीं हैं।
हालाँकि पैरिस समझौते पर दस्तखत हुए, सात साल गुजरने के बाद और ‘नेट जीरो संकल्पों’ की अभिव्यक्ति में आयी तेजी के तीन साल गुजरने के बाद यह साफ़ हो चुका है कि अब स्वैच्छिक कार्यवाही पर्याप्त नहीं है।
ऐसे में इस वक्त जलवायु परिवर्तन के मंडरा रहे संकट से बचने के लिए सख्त नियम कायदों की जरूरत महसूस की जा रही है।
इस दस्तावेज़ में जहां कोयले पर गर्म रवैया अपनाया गया है, वहीं तेल और गैस पर तुलनात्मक रूप से कुछ नरम रुख दिखाया गया है।
आगे बढ्ने से पहले पहले समझ लेना चाहिए कि ग्लोबल स्टॉकटेक होता क्या है। दरअसल यह 2015 के पेरिस समझौते में स्थापित एक 5-वार्षिक समीक्षा है। जिसमें जलवायु कार्रवाई पर मिटिगेशन (शमन), एडेप्टेशन (अनुकूलन) और फाइनेंस (वित्त) के संदर्भ में प्रगति की निगरानी और आकलन किया जाता है। साफ़ शब्दों में कहीं तो यह बताता है कि पेरिस समझौते पर दस्तख़त के बाद से अब तक दुनिया ने उत्सर्जन पर लगाम कसने में कितनी प्रगति की है और क्या यह प्रगति ग्लोबल वार्मिंग को पूर्व आद्योगिक स्तर के असौत तापमान से 2C तक सीमित रखने के लिए काफ़ी है।
इसका उनतीसवां पैराग्राफ ग्रीनहाउस गैस एमिशन( उत्सर्जन) में पर्याप्त, तेज और निरंतर कटौती की आवश्यकता को रेखांकित करते हुए सभी पक्षों से कार्रवाई करने का आग्रह करता है। लेकिन इसमें एनडीसी यानी हर देश द्वारा स्वेक्षा से उत्सर्जन में कटौती को लेकर को लेकर कोई मांग या अपेक्षा नहीं है।
आगे दस्तावेज़ में कोयले के प्रयोग को तेजी और चरणबद्ध तरीके से समाप्त करने की और साथ ही कोयला बिजली उत्पादन पर प्रतिबंध लगाने की बात की गयी है। इसलिए विकासशील दुनिया इस भाषा को “चयनात्मक” और “भेदभावपूर्ण” बता रही है।
इस दस्तावेज़ में टेल और गैस यानी एनी फॉसिल फ्यूल के बारे में, साल 2050 या उसेक आस पास, नेट ज़ीरो हासिल करने के लिए उचित, व्यवस्थित और न्यायसंगत तरीके से खपत और उत्पादन दोनों को कम करने का आग्रह किया गया है।
ग़ौरतलब है कि अब तक नेट जीरो प्रतिबद्धताओं की झड़ी लगने के बाद उनके क्रियान्वयन का दौरा बेहद फीका रहा है। अनेक देश और कंपनियां नेट जीरो के पीछे छुप कर विश्वसनीय कदम उठाने के बजाय कागजी लेखे-जोखे का इस्तेमाल कर रही हैं।
जलवायु परिवर्तन के गंभीर और भीषण होते जा रहे संकट के बीच ऐसे में कोई भी जलवायु योजना जिसमें नेट जीरो का कोई मंसूबा ना हो और जिससे जीवाश्म ईंधन के इस्तेमाल को स्थाई रूप से धीरे-धीरे खत्म करने तथा प्रसार को रोकने की प्रक्रिया में मदद ना मिले, वह दरअसल कोई योजना ही नहीं है।
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