डा. उत्कर्ष सिन्हा भारत की चुनावी राजनीति एक खतरनाक मोड़ पर खड़ी दिख रही है, जहां मतदाता सूची की “सफाई” और SIR की कवायद को लेकर सत्ता और विपक्ष के बीच भरोसे का संकट गहराता जा रहा है। बिहार के हालिया चुनाव नतीजे इसी पृष्ठभूमि में पढ़े जाने चाहिए, जहां …
Read More »जुबिली डिबेट
एक भारत, दो विचार : उन्मादी राजनीति में फंसा है संविधान
डा. उत्कर्ष सिन्हा संविधान दिवस पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और राहुल गांधी ने देशवासियों को बधाई दी है और संविधान की महत्ता पर जोर दिया है। हालांकि, बीते वर्षों में जब से भाजपा सरकार सत्ता में आई है, हिंदू राष्ट्र बनाने की मांग और विचारधाराएं तेज हुई हैं, जिससे देश …
Read More »माडवी हिडमा: एक चेहरा, दो कथाएँ
डा. उत्कर्ष सिन्हा माडवी हिडमा राज्य के लिए करोड़ों का इनामी, कई घातक हमलों का मास्टरमाइंड और सशस्त्र उग्रवाद का प्रतीक रहा है, जिसकी मौत को सुरक्षा एजेंसियाँ “निर्णायक सफलता” के तौर पर देख रही हैं। वहीं बस्तर बेल्ट के भीतर और बाहर, आदिवासी समाज और उससे जुड़े कुछ बुद्धिजीवी …
Read More »उच्च शिक्षा में विरोधाभास: “प्रोफेसर ऑफ प्रैक्टिस” और स्थायी शिक्षकों की आपूर्ति
प्रो. अशोक कुमार (पूर्व कुलपति कानपुर , गोरखपुर विश्वविद्यालय , विभागाध्यक्ष राजस्थान विश्वविद्यालय जयपुर) भारत की उच्च शिक्षा प्रणाली एक अभूतपूर्व चौराहे पर खड़ी है। एक ओर, सरकार और विश्वविद्यालय अनुदान आयोग राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 के अनुरूप शिक्षा की गुणवत्ता और प्रासंगिकता को बढ़ाने पर जोर दे रहे हैं। …
Read More »272 पूर्व अधिकारियों और जजों के पत्र के बाद उठा राजनीतिक तूफान
डा. उत्कर्ष सिन्हा भारतीय लोकतंत्र की नींव संवैधानिक संस्थाओं पर टिकी है। ये संस्थाएं—चाहे वह चुनाव आयोग हो, न्यायपालिका हो या कार्यपालिका—निष्पक्षता, पारदर्शिता और जवाबदेही के स्तंभ हैं। लेकिन हाल के वर्षों में इन संस्थाओं पर सवाल उठाने का सिलसिला तेज हो गया है। विपक्षी दलों की ओर से ‘वोट …
Read More »बिहार चुनाव 2025: जीत के तर्क और शोर में दबे सवाल
डा. उत्कर्ष सिन्हा “सफलता के लिए पचास तर्क होते हैं, लेकिन आलोचना के लिए हजार”। यह पुरानी कहावत बिहार विधानसभा चुनाव 2025 के नतीजों पर चल रही बहसों को पूरी तरह चरितार्थ करती है। अप्रत्याशित परिणामों के बाद विश्लेषणों का सिलसिला थमने का नाम नहीं ले रहा—हर कोई NDA की …
Read More »बीजेपी की राजनीति गलत है तो मजलिस की सही कैसे हो सकती है ?
उबैद उल्लाह नासिर हिन्दू मुस्लिम धर्म आधारित राजनीति देश और समाज के लिए जहर हलाहल है मुसलमानों की अपनी पार्टी हिन्दुओं की अपनी पार्टी सिखों की अपनी पार्टी जंग आज़ादी के दौरान यह सोच उभरी थी लेकिन महात्मा गांधी पंडित नेहरु सरदार पटेल मौलाना आज़ाद सुभाशचन्द्र बोस यहाँ तक की …
Read More »औपनिवेशिक शोषण के विरुद्ध आदिवासी चेतना के प्रतीक हैं बिरसा मुंडा
प्रो. शोभा गौड़ भारत के स्वतंत्रता संग्राम का इतिहास जब लिखा जाता है, तब उसमें केवल दिल्ली, कलकत्ता या लखनऊ की क्रांतियाँ ही नहीं, बल्कि जंगलों, पहाड़ों और गाँवों में पनपी वह आदिवासी चेतना भी शामिल होती है जिसने औपनिवेशिक शासन के विरुद्ध जन-आक्रोश को जन्म दिया। यह चेतना धरती …
Read More »नेपाल में उभर रहा नया शक्ति समीकरण बदलेगा राजनीतिक परिदृश्य
डा. उत्कर्ष सिन्हा नेपाल की राजनीति इस वक्त एक असाधारण नाटकीय मोड़ पर पहुँच चुकी है। जेन Z आंदोलन ने जो मुद्दे उठाए हैं—भ्रष्टाचार मुक्त नेपाल, न्यायिक सुधार, युवाओं की राजनीतिक भागीदारी, पारदर्शी शासन और आर्थिक समानता—उन्होंने सड़क से संसद तक हलचल मचा दी थी । लेकिन अब यह …
Read More »भारत में एग्जिट पोल्स: सत्य का आवरण ओढे प्रोपेगैंडा का हथियार
डा. उत्कर्ष सिन्हा क्या भारत में एग्जिट पोल्स की सत्यता और सटीकता अब एक मजाक बन चुकी है? ये सवाल इस समय देश के जनमानस के बीच काफी चर्चा में है , खासकर तब बीते मंगलवार को बिहार जैसे महत्वपूर्ण राज्य के चुनावों के सिलसिले में कई सारे एग्जिट पोल्स …
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