विवेक कुमार श्रीवास्तव राफेल, कांग्रेस की सियासी मजबूरी है ये बात सुनने में थोड़ी अजीब भले ही लगे पर ये सच है। लोकसभा चुनाव के दो चरण खत्म हो चुके हैं। तीसरे चरण के लिए सभी दलों के नेता ताबड़तोड़ रैलियां कर रहे हैं। इसी क्रम में कांग्रेस के राष्ट्रीय …
Read More »जुबिली डिबेट
पैराशूट प्रत्याशी ही क्षेत्र के विकास को लगाते हैं ग्रहण
डा. रवीन्द्र अरजरिया लोकसभा चुनावों की बयार तेज होती जा रही है। प्रचार के हथकण्डे नये-नये रूपों में सामने आ रहे हैं। वक्तव्यों की धार तेज होने के साथ-साथ बेलगाम भी होने लगी है। राजनैतिक दलों के टिकिट वितरण में अपनाई जाने वाली नीतियों को आलोचनाओं के उपहार मिलने लगे …
Read More »मायावती का बहुत सम्मान करना, राजनीति के पंडित मुलायम सिंह के वसीयत के निहितार्थ बांचने में लगे
के.पी. सिंह शुक्रवार को मैनपुरी में मुलायम सिंह और मायावती का संयुक्त संबोधन ऐतिहासिक रहा। दोनों पार्टियों के गठबंधन को लेकर जो संदेह प्रकट किये जा रहे थे उनका अंत एकजुट रैली से हो गया है। किसी को आशा नही थी कि मुलायम सिंह बसपा सुप्रीमों के प्रति अपनी कटु …
Read More »सूबे का मुस्लिम अवाम बना वोट बैंक
राजेन्द्र कुमार लखनऊ चुनाव और मुसलमान उत्तर प्रदेश की राजनीति का यथार्थ भी है और मिथ भी। चुनाव आते ही इस वोटबैंक की परवाह शुरू हो जाती है। सभी दलों की राजनीति के केंद्र में मुसलमान होता है पर उसके मुददे पीछे रहते हैं। इस बार फिर सूबे का मुस्लिम …
Read More »स्मृति ईरानी: लीक तोड़ने की वजह होनी चाहिए
राजनीति में पैंतरेबाजी का अभिन्न महत्व है। इस मामले में कोई दूध का धुला नही है। रणनीतिक जरूरतों के लिए कई बार पार्टिया और नेता पटरी से उतर जाते हैं। राजतंत्र में तो यह होता ही था, लोकतंत्र में भी होता है। दिशा सूचक बिंदुओं की आम सहमति राजनीति साम-दाम-दण्ड-भेद …
Read More »लखनऊ में भाजपा की घेराबंदी के नाम पर ये क्या?
रतन मणि लाल उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ राजनीतिक गतिविधियों का केंद्र होने की वजह से सभी दलों और नेताओं के लिए महत्वपूर्ण है। लेकिन इस बार के लोक सभा चुनाव में ऐसा लगता है कि प्रमुख विपक्षी दल ने केवल लखनऊ को गंभीरता से नहीं ले रहे, बल्कि यहाँ …
Read More »आप चुन रहे या चुने जा रहे?
डॉ. श्रीश पाठक अमेरिका के स्वतन्त्रता संग्राम का प्रमुख नारा था- ‘बिना प्रतिनिधित्व के कर नहीं!’ अपने प्रतिनिधियों को चुनने का हक़, लोकतंत्र में एक बुनियादी हक़ है। शक्ति का केन्द्रीकरण न हो, लोकतंत्र के लिहाफ में कहीं कोई तानाशाह न तनकर खड़ा हो जाए, फिर विकास की बनावट में …
Read More »‘भीष्म पितामह’ से सुषमा स्वराज की गुहार
के.पी. सिंह भीष्म पितामह महाभारत में कौरव पक्ष की ओर से लड़े थे लेकिन वे पांडवों और यहां तक कि भगवान श्रीकृष्ण के लिए भी अंत तक वंदनीय रहे। हस्तिनापुर साम्राज्य के वे सहज उत्तराधिकारी थे, लेकिन उन्होंने इस अधिकार का परित्याग कर दिया। उनके त्याग के कई उदाहरण हैं। …
Read More »जर्मनी में मरीजों की मुश्किलें अब होगी कम
अंकित प्रकाश अगर आप ये सोचते हैं कि आप जर्मनी में जब चाहे तब डाक्टर से मिल सकते हैं और इलाज करा सकते हैं तो आप बिलकुल गलत सोच रहे हैं। डॉक्टर से मिलना यहाँ पर एक बड़ा काम है। पहले आपको अपॉइंटमेंट लेना होता है और मिलने की तारीख …
Read More »भारत की गौरव पताका बन गया है बाबा साहब का नाम
के.पी. सिंह समूची दुनियां में आज बाबा साहब अंबेडकर के नाम से भारत का गौरव बढ़ रहा है। भेदभाव के खिलाफ दुनियां के किसी भी कोने में सम्मेलन हो बाबा साहब के विचारों की चर्चा उनका अनिवार्य हिस्सा होता है। अमेरिका की कोलम्बिया यूनीवर्सिटी के ढाई सौ वर्ष के इतिहास …
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