Sunday - 7 January 2024 - 12:59 AM

भाजपा का इंजन चालू आहे

सुरेंद्र दुबे

लोकसभा 2019 का चुनाव प्रचण्‍ड बहुमत से जीतने के बाद भी भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) ने अपनी चलती हुई गाड़ी का इंजन बंद नहीं किया। क्‍योंकि उसे मालूम है कि उत्‍तर प्रदेश में विधानसभा के 12 उपचुनाव सिर पर हैं। इसलिए गाड़ी को खोखा लाइन में डालने के बजाए प्‍लेटफॉर्म पर ही खड़ा रखा है और इंजन चालू है।

इसके साथ ही बीजेपी उत्‍तर प्रदेश में जुलाई के प्रथम सप्‍ताह से सदस्‍यता अभियान शुरू कर रही है, जिसमें 43 लाख नए सदस्‍य बनाए जाने का लक्ष्‍य निर्धारित किया गया है। सदस्‍यता अभियान से एक तीर से दो शिकार होंगे। एक ओर जहां बीजेपी और आरएसएस के कार्यकर्ता नए सदस्‍य बनाएंगे। वहीं, दूसरी ओर विधानसभा चुनाव के लिए वोट भी मांगते जाएंगे। यह बीजेपी की तैयारी का एक दृश्‍य है जो बीजेपी के भविष्‍य की रणनीति परिलक्षित करता है।

आइए अब देखते हैं कि दूसरे राजनैतिक दल क्‍या कर रहे हैं। बहुजन समाज पार्टी (बसपा) को लोकसभा चुनाव में 10 सीटें मिलीं और वो इसके आधार पर ये मान कर बैठी है कि उसे विधानसभा उपचुनाव में ज्‍यादा कुछ करने की जरूरत नहीं है। सीटें उसकी झोली में आकर गिरेंगी ही। कोई राजनैतिक कार्यक्रम बनाने के बजाए कल बसपा ने अपनी पार्टी को पूरी तरह से परिवारवादी पार्टी बनाने का फैसला कर लिया।

मायावती ने अपने छोटे भाई आनंद को पार्टी का उपाध्‍यक्ष बना दिया, जिसे वह 2017 में भी एक बार पार्टी का उपाध्‍यक्ष बना चुकी हैं। परंतु तमाम तरह की आलोचनाओं से घबरा कर मायावती ने छह महीने बाद ही इन्‍हें इस पद से हटा दिया था। मायावती कई बार पहले कह चुकी हैं कि उनके परिवार का  कोई भी व्‍यक्ति बसपा का पदाधिकारी नहीं बनेगा। परंतु किया इसके बिलकुल विपरित। अब एक बार फिर आनंद को उपाध्‍यक्ष बना दिया गया तथा उनके बेटे यानी कि अपने भतीजे आकाश को नेशनल कोऑर्डिनेटरों बना दिया। इस तरह नंबर एक से लेकर नंबर तीन तक के सारे पद उन्‍होंने अपने पास रख लिए।

 

आकाश की इंट्री इस बार लोकसभा चुनाव के समय अचानक हुई थी। मंहगे कपड़ों के शौक़ीन आकाश के बारे में कहा जाता है कि राजनीति में उनकी गहरी दिलचस्पी है। लंदन से उन्होंने मैनेजमेंट की पढ़ाई की है। बसपा की बैठकों में वे बिना कुछ बोले मायावती को देखते और सुनते हैं। उनकी वजह से ही मायावती के कार्यक्रमों की अब फ़ोटोग्राफ़ी और वीडियोग्राफ़ी भी होने लगी है और मायावती सोशल मीडिया में काफी एक्टिव हैं। आकाश के बिना नाम और पहचान के उनकी टीम सोशल मीडिया में भी एक्टिव है।

आकाश को मायावती बसपा के भविष्य के रूप में सँवार रही हैं। लोकसभा चुनाव के प्रचार के दौरान आकाश मायावती के साथ कदम से कदम मिलाकर चलते दिखाई दिए। यानी कि मायावती को 12 उपुचनाव की कोई चिंता नहीं है। कल भी वह सपा सुप्रीमो अखिलेश यादव को यह कर कोशने में लगी रहीं कि सपा के यादवों ने बसपा को वोट नहीं दिया और अधिक मुसलमानों को टिकट न देने के कारण मुसलमान सपा-बसपा गठबंधन से दूर चले गए।

 

समाजवादी पार्टी की तो हालत ही विचित्र है। अखिलेश यादव मायावती के खिलाफ कुछ भी कहने से परहेज कर रहे हैं और मायावती उनपर लगातार प्रहार किए जा रही हैं। बसपा की ही तरह सपा ने भी सभी 12 सीटों पर उपचुनाव लड़ने की घोषणा कर रखी है। परंतु इस दिशा में उनकी पार्टी में न तो कोई चहल कदमी है और न ही पार्टी कार्यकर्ताओं को ऐसा कोई संदेश है जिससे पार्टी कार्यकर्ता उत्‍साहित होकर उपचुनाव की तैयारियों में लग जाएं।

गौरतलब है कि लोकसभा चुनाव खत्‍म होने के बाद बीजेपी के आठ विधायक सासंद बने और सपा, बसपा, और अपना दल के एक-ए‍क विधायक चुनाव जीत कर संसद पहुंचे। इसके अलावा हमीरपुर से बीजेपी विधायक की सदस्‍यता रद्द कर दी गई, जिसके बाद कुल 12 सीटों पर विधानसभा उपचुनाव होना है।

इनमें गोविंदनगर विधानसभा सीट, टूंडला विधानसभा सीट, लखनऊ कैंट विधानसभा सीट, जैदपुर विधानसभा सीट, मानिकपुर विधानसभा सीट, बलहा विधानसभा सीट, गंगोह विधानसभा सीट, इगलास विधानसभा सीट, हमीरपुर विधानसभा सीट पर बीजेपी के कब्‍जे में थी। वहीं, प्रतापगढ़ विधानसभा सीट अपना दल, रामपुर विधानसभा सीट समाजवादी पार्टी और जलालपुर विधानसभा सीट बहुजन समाज पार्टी के कब्‍जे में थी।

खास बात ये है कि योगी सरकार के तीन मंत्री सांसद बने हैं। रीता बहुगुणा जोशी इलाहाबाद से सांसद चुनी गईं हैं वे यूपी सरकार में महिला कल्‍याण, परिवार कल्‍याण, मातृ एवं शिशु कल्‍याण एव पर्यटन विभाग की कैंबिनेट मंत्री थी। इसके अलावा आगरा सीट से एसपी सिंह बघेल जोकि पशुधन, लघु सिंचाई और मत्‍स्‍य विभाग के मंत्री थे। कानपुर से सत्यदेव पचौरी योगी सरकार में खादी, ग्रामोद्योग, रेशम, वस्‍त्रोद्योग, सूक्ष्‍म, लघु एवं मध्‍यम उद्यम, निर्यात प्रोत्‍साहन विभाग के मंत्री थे।

बीजेपी अभी तक कांग्रेस पर परिवारवादी पार्टी होने के नाम पर लगातार प्रहार करती रही है। सपा में भी परिवारवाद ही है। परंतु बीजेपी सपा सरंक्षक मुलायम सिंह यादव के साथ संबंधों का ख्‍याल रखते हुए उनकी ज्‍यादा चर्चा नहीं करती। अब उपचुनाव में बीजेपी बसपा पर परिवारवाद को लेकर जमकर प्रहार करेगी और दलितों के बीच ये संदेश  देने की कोशिश करेगी कि जो मायावती दलितों के उत्‍थान की राजनीति करने का दंभ भरती हैं वह वास्‍तव में केवल अपने परिवार को ही बढ़ाना चाहती हैं। दलित मतदाता वैसे भी 2014 से ही बसपा से‍ बिदके हुए हैं और यदि बीजेपी अपने प्रचार मे सफल रही तो बसपा के लिए और मुसिबत खड़ी हो सकती है।

कांग्रेस जिसपर गांधी परिवार का कब्‍जा होने का आरोप लगता रहा है उसके अध्‍यक्ष राहुल गांधी अब अध्‍यक्ष पद छोड़ चुके हैं। प्रियंका गांधी भी अध्‍यक्ष नहीं बनना चाहती हैं। अगर मणिशंकर अय्यर की बातों को गंभीरता से लिया जाए तो कोई गैर गांधी अब कांग्रेस का अध्‍यक्ष बन सकता है तो चलिए कांग्रेस परिवारवाद के आरोप ब‍री होने के दिशा में तेजी से बढ़ रही है।

ये एक विचित्र एवं दुखद परिस्थित है कि जितनी भी क्षेत्रिय पार्टियां इन दिनों मैदान में हैं उनमें से अधिकांश परिवारवाद के दलदल में धंसी हुई हैं। समाजवादी पार्टी के परिवार के कम से कम 50 लोग विभिन्‍न पदों को सुशोभित कर रहें हैं या कर चुके हैं। उत्‍तर प्रदेश में हाल ही में उभरे दो राजनैतिक दल सुहेलदेव राजभर पार्टी व अपना दल भी फैमीली पार्टी ही हैं।

राजभर पार्टी के अध्‍यक्ष ओमप्रकाश राजभर व उनके बेटे अरविंद राजभर दिन-रात पिछड़ों के सम्‍मान की लड़ाई का बखान करते नहीं थकते हैं। परंतु सारी ताकत बाप-बेटे के पास ही है। अपना दल में अनुप्रिया पटेल व उनके पति आशीष कुमार सिंह ही पार्टी पर काबिज हैं। यहीं कारण है कि इस तरह की पार्टियां कुकुरमुत्‍ते की तरह उगती हैं और राजनैतिक परिस्थितियां बदलते ही गधे के‍ सिर से सींग की तरह गायब हो जाती हैं।

 

विधानसभा उपचुनाव में अगर बीजेपी इन सभी दलों को परिवारवाद में फंसी व निजी स्‍वार्थ में डूबी पार्टियां बता कर जनहित में जनता से बीजेपी को वोट देने की अपील करे तो उसका असर क्‍यों नहीं होगा। ये पार्टियां जनता को क्‍या जवाब देंगी। बीजेपी इस स्थिति को भलिभांति समझती है इसलिए वह विश्राम करने के बजाए अभी से उपचुनाव की तैयारियों में जुट गई है।

कल राजधानी में शीर्ष नेताओं की घंटों चली मैराथन बैठक में उपचुनाव जीतने की रणनीति बनाने पर विचार और मंथन हुआ। तय पाया गया कि हर सीट के लिए एक मंत्री को प्रभारी बनाया जाएगा, जो बीजेपी को जीताने के लिए एड़ी चोटी का पसीना एक कर देगा। इस काम में मुख्‍यमंत्री योगी आदित्‍यनाथ सहित पूरी कैबिनेट लग गई है। बीजेपी ये नहीं चाहती कि गोरखपुर, फुलपूर और कैराना उपचुनाव में हुई हार फिर से दोहराई जाए, जिसपर मुख्‍यमंत्री और उप मुख्‍यमंत्री केशव प्रसाद मौर्या की बड़ी किरकिरी हुई थी।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं, लेख उनके निजी विचार हैं)

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