
पॉलिटिकल डेस्क।
प्रधानमंत्री ने बुधवार को ‘वन नेशन-वन इलेक्शन’ पर विचार के लिए विपक्षी दलों के प्रमुखों की बैठक बुलाई है। भारतीय जनता पार्टी और पीएम मोदी एक देश एक चुनाव के मुद्दे को लगातार उठाते रहे हैं।
वहीं इस मुद्दे पर कई दलों और नेताओं ने असहमति भी जताई है। लोकसभा चुनाव में बहुमत मिलने के बाद से पीएम मोदी ने एकबार फिर देश एक चुनाव के मुद्दे को लेकर मुहीम छेड़ दी है। हालांकि उनकी इस बैठक में विपक्ष के विरोध करने की संभावना भी बताई जा रही है।
सोनिया-राहुल की अगुवाई में हुई विपक्ष की बैठक
संसद में सरकार को घेरने के लिए विपक्ष ने मंगलवार को विपक्षी दलों की बैठक हुई। इस बैठक में यूपीए चेयरपर्सन सोनिया गांधी, कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी, सीपीआई नेता डी राजा, फारूक अब्दुल्ला, कनिमोझी, एनसीपी सांसद सुप्रिया सुले शामिल हुए।
मीडिया रिपोर्ट्स की माने तो इस बैठक में सभी विपक्षी दल इस बात पर सहमत दिखे कि वन नेशन वन इलेक्शन ना तो संभव है और ना ही ठीक है। हालांकि प्रधानमंत्री मोदी की बैठक में पार्टी के अध्यक्ष या उनके प्रतिनिधि जाएंगे या नहीं इस बात पर कोई निर्णय नहीं हो सका।
ममता बनर्जी ने बैठक में शामिल होने से इनकार किया
पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री और तृणमूल कांग्रेस अध्यक्ष ममता बनर्जी ने इस बैठक में शामिल होने से इनकार कर दिया है। उन्होंने पत्र में लिखा कि वह पीएम मोदी की बुधवार को बुलाई सर्वदलीय बैठक में शामिल नहीं हो सकेंगी।
इसी के साथ ममता बनर्जी ने उन्हें सलाह देते हुए लिखा कि वह एक देश एक चुनाव पर जल्दबाजी में फैसला करने की जगह इस पर एक श्र्वेत पत्र तैयार करें।
‘वन नेशन-वन इलेक्शन’ को ऐसे समझे
‘वन नेशन-वन इलेक्शन’ का समर्थन करने वाले कहते हैं कि देश में अलग-अलग होने वाले चुनावों की वजह से विकास बाधित होता है और करदाताओं का रुपया खर्च होता है। अगर चुनाव एक ही साथ कराए जाते हैं तो उससे देश और जनता का भला होगा।
वहीं जो लोग इसका विरोध कर रहे हैं उनका कहना है कि राज्यों के विधानसभा चुनाव स्थानीय मुद्दों पर चुनाव लड़े जाते हैं। अगर लोकसभा और विधानसभा के चुनाव एक साथ होंगे तो स्थानीय मुद्दे पीछे छूट जाएंगे। साथ ही मतदाताओं में राष्ट्रीय और स्थानीय मुद्दों को लेकर भ्रम पैदा होगा।
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