Thursday - 11 January 2024 - 3:38 AM

सफलता हेतु कथनी और करनी में समानता आवश्‍यक

डा. रवीन्‍द्र अरजरिया

समाज में सुव्‍यवस्‍था कायम रखने के लिए अनुशासनात्‍मक तंत्र की महती आवश्‍यकता होती है। ऐसी व्‍यवस्‍था के लिए सभ्‍यता के बाद से प्रयास किए जा रहे। कभी कबीलों के कायदे, तो कभी रियासतों के कानून। कभी राज्‍यों के संविधान तो कभी गणराज्‍य के स्‍वरूप की परिकल्‍पना का मूतरूप।

भारत गणराज्‍य में भी विभिन्न राज्यों की अधिकार सीमा निर्धारित करते हुए केंद्र और राज्‍यों के दायित्‍यों और कर्तव्‍यों को रेखांकित किया गया है। बड़े ढांचे को संभालने से लेकर उसके विकास की संभावनाएं, छोटे राज्‍यों के सापेक्ष काफी कम होती है। यही कारण है कि देश में छोटे- छोटे राज्‍यों का गठन किया गया।

स्‍वाधीनता के बाद विंध्‍य प्रदेश के रूप में स्‍थापित रहने वाले इस क्षेत्र को उत्‍तर प्रदेश और मध्‍य प्रदेश की सीमाओं में विभाजित कर दिया गया और इसी के साथ बुंदेलखंड की गौरवशाली सांस्‍कृतिक विरासत का महत्‍वपूर्ण अध्‍याय समाप्‍त हो गया।

तभी से इस भू भाग को गरीबी, लाचारी, पिछड़ापन, अभाव जैसी स्थितियों से दो-दो हाथ करना पड़ रहा है। अगर यूं कहे कि देश में गण का तंत्र स्‍थापित होने के कुछ समय बाद ही विंध्‍य प्रदेश के नाम से गणराज्‍य के राजनैतिक मानचित्र बुंदेलखंड को भी कश्‍मीर की तरह विभक्‍त करके समस्‍याओं के सुसुप्‍त ज्‍वालामुखी पर बैठा दिया गया।

अंतर केवल इतना रहा कि कश्‍मीर की समस्‍या दो देशों से लेकर वहां के अतिविशिष्‍ठ अधिकारों के विकराल रूप में हैं। वहीं, बुंदेलखंड की स्थिति दो राज्‍यों के नियम कानूनों के दायरे में है। यहां की समस्‍याओं को चुनावी काल में समाधान देने की घोषणा वाले लालीपॉप के रूप में हमेशा और हर पार्टी द्वारा दिया जाता रहा है। समाधान की कौन कहे,  सभी राजनैतिक दलों और स्‍वार्थपरिता में लिप्‍त प्रभावशाली लोगों ने इस क्षेत्र को बंजर, अनुपयोगी और संभावनारहित क्षेत्र के रूप में प्रचारित करके इंवेस्‍टरर्स की नजरों में भी अछूत साबित कर दिया।

चौपालों की चर्चाओं में तो स्‍वतंत्रता संग्राम के आखिरी दौर में जवाहर लाल नेहरू की कार का झंडा एक खास रियासत में प्रवेश के दौरान उतरवा लिया था, जिसका खामियाजा आज तक यहां के लोगों को भुगतना पड़ रहा है। ऐसा ही कुछ कश्‍मीर समस्‍या के लिए तुष्‍टीकरण की व्‍यक्तिगत महत्‍वकांक्षाओं को भी उत्‍तरदायी ठहराने वाले कहते हैं।

कारण चाहे जो भी रहें हों परंतु निर्वाचन काल में मंचों की घोषणाएं आज तक मूर्त रूप नहीं ले सकी। भाजपा का छोटे राज्‍यों का पक्षधर होना, उमा भारती सहित विभिन्‍न कद्दावर नेताओं का बुंदेलखंड को पृथक राज्‍य बनना में सहयोग करने की घोषणा करना, कांग्रेस का बुंदेलखंड प्रेम का दर्शन, राहुल गांधी का बुंदेलखंड की समीक्षा हेतु गरीब के घर ठहरना और फिर राज्‍य बनने में सहयोग करने की बात करना, बसपा द्वारा उत्‍तर प्रदेश में शासन के दौरान बुंदेलखंड राज्‍य की वकालत करना, सपा का इस क्षेत्र विशेष को महत्‍व देने जैसे कारक भी बरसाती मेंढ़क ही साबित हुए।

एक समय ऐसा था जब उत्‍तर प्रदेश, मध्‍य प्रदेश और केंद्र में भाजपा सरकारें थी, परंतु बुंदेलखंड राज्‍य के लिए प्रयास न किए जाने थे और न किए गए। विचार चल ही रहा था कि हमारे सहयोगी ने चैंबर में आकर सूचित किया कि बुंदेलखंड इंसाफ सेना के संयोजक और उत्‍तर प्रदेश सरकार के पूर्व मंत्री बादशाह सिंह मिलने आए हैं। हम अपने को रोक न सके। कई दशक बीत गए पुराने संबंधो की पुनरावृत्ति हुए। जैसी ही हम आमने-सामने पहुंचे। उन्‍होंने बांहें फैला दी। अपनत्‍व का पर्याय, भावनाओं का ज्‍वार और अतीत की स्‍मृतियां एक साथ छलक उठी। गले मिलते ही मौन भाषा में अनुभूतियों ने कुशलक्षेम पूछ भी लिया और बता भी दिया। हमने उन्‍हें अपने मन में चले रहे विचारों से अवगत करया।

बुंदलेखंड क्षेत्र के विकास से लेकर पृथक राज्‍य तक के लिए उन्‍होंने अपने जीवन का एक बड़ा भाग समर्पित कर दिया है। राजनैतिक परिवेश को रेखांकित करते हुए उन्‍होंने कहा कि क्षेत्र विशेष का आम आदमी जब तक उठकर खड़ा नहीं हो जाता, तब तक परिणामों की कसौटी पर प्रयासों को तौलना संभव नहीं होता। बुंदेलखंड इंसाफ सेना धरती से जुडकर काम कर रही है। लोगों के साथ मिलकर नई ऊर्जा जगाने का काम कर रही। गांव की चौपालों से लेकर शहरों के चौराहों तक जागरूकता कार्यक्रम चला रही है।

भावनात्‍मक संप्रेषण की गति बढ़ाई जा रही है।  उत्‍तरदायी लोगों के साथ निरंतर बैठकें की जा रही हैं। उनका व्‍याख्‍यान लंबा होते देख हमने उन्‍हें बीच में ही टोकते हुए बुंदेलखंड के समग्र विकास और राज्‍य निर्माण की संभावनाओं पर ही केंद्रित रहने के लिए कहा।  एक रहस्‍यमयी मुस्‍कुराहट उनके चेहरे पर फैल गई। वक्‍तव्‍य की अनावश्‍यक भूमिका पर पूर्णविराम लगाने की हमारी पुरानी आदत का उल्‍लेख करते हुए उनहोंने कहा कि जब छत्‍तीसगढ़, उत्‍तराखंड, झारखंड बन सकते हैं। तेलंगाना अस्तित्‍व में आ सकता है, तो फिर बुंदेलखंड क्‍यों नहीं।

बुंदेलखंड में राज्‍य को संचालित करने वाले संसाधनों का भंडार है। उत्‍तर प्रदेश और मध्‍यप्रदेश दोनों राज्‍यों को बुंदेलखंड से सर्वाधिक आय हो रही है। उनके लिए यह क्षेत्र किसी कामधेनु से कम नहीं है। यही कारण है कि दोनों राज्‍य और केंद्र इस क्षेत्र विशेष को संभावनाओं के बाद भी पृथक राज्‍य के रूप में स्‍थापित होने नहीं दे रहा है। राज्‍यों की इस मंशा को हमारे बीच के जयचंद अपने व्‍यक्तिगत स्‍वार्थ की पूर्ति हेतु विशेष समय-समय पर पुष्‍ट करते रहते हैं। हमने उनसे राज्‍य निर्माण के लक्ष्‍य भेदन के लिए बनाई गई रणनीति उजागर करने को कहा तो उन्‍होंने कि सफलता हेतु कथनी और करनी में समानता आवश्‍यक है।

राजनैतिक दलों ने अब क्षेत्रों के मुद्दों को गौढ़ करते हुए राष्‍ट्रीय और अंतर्राष्‍ट्रीय मुद्दों की ओर लोगों का आकर्षित कर रखा है। क्षेत्रिय विकास की कीमत पर राष्‍ट्रीय परिदृश्‍य संवारने का संकल्‍प लिया जा रहा है और हम किसी तिलिस्‍म में फंसी स्थिति से गुजर रहे हैं। पूरे देश का धन कश्‍मीर के विकास में झौंकने के पहले बुंदेलखंड जैसे शांत, सरल और अभावग्रस्‍त गूंगे क्षेत्रों की वास्‍तविकता से भी आंखे चार कर लेना चाहिए। उनका स्‍वर भर्रा गया। भावनाएं उमडने लगी। आंखों में खारा पानी तैरने लगा।

आखिर हो भी क्‍यों न, अपनी भूखी मां की सूनी आंखों का सामना करने वाला व्‍यक्ति, पड़ोसी की पुकार निश्चित ही बाद में ही सुनेगा। उन्‍होंने आंखे बंद कर ली। लग रहा था कि वो शायद अब स्‍वयं से संघर्ष कर रहे थे। कुछ समय बाद उन्‍होंने आंखे खोली। हमने टेबिल पर रखा पानी का गिलास उनकी ओर बढ़ाया। एक ही सांस में उन्‍होंने पूरा गिलास खाली कर दिया। हमें अपने चल रहे विचारों को दिशा देने का पर्याप्‍त साधन मिल गया था। इस बार बस इतना ही। अगले सप्‍ताह एक नए मुद्दे के साथ फिर मुलाकात होगी। जय हिंद।

(लेखक वरिष्‍ठ पत्रकार हैं, लेख उनके निजी विचार हैं।)

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