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ब्यूबोनिक प्लेग: मानव इतिहास में सबसे खतरनाक संक्रामक महामारी

प्रो. रवि कांत उपाध्याय

प्लेग (Plague) संसार की सबसे पुरानी महामारी है। इसको ताऊन, ब्लैक डेथ, पेस्ट आदि नाम से भी जाना जाता है। विश्व स्वास्थ्य संगठन की (डब्लूएचओ) के अनुसार कि प्लेग धरती से खत्म नहीं हुआ है। आज भी प्लेग रह-रहकर दुनिया के अलग-अलग हिस्सों में अपना प्रकोप दिखाता रहता है। और इससे मौतें होती रहती हैं।

चीन से फैला कोरोनावायरस का प्रकोप अभी भी पूरी दुनिया में तबाही मचा रहा है। अब तक इस वायरस के संक्रमण से लगभग आठ लाख की मौत हो चुकी हैं। इसके रोकथाम और नियंत्रण के समुचित उपाय नहीं होने के कारण संपूर्ण विश्व में कोरोना का कहर जारी है। और इससे चहुऔर भय का वातावरण बना हुआ है।

कुछ दिनों पहले हंता वायरस और G-4 स्वाईन फ्लू वायरस के फैलने की खबर आई थी। हाल ही 7 जुलाई को उत्तरी चीन के क्षेत्र इनर मंगोलिया के बयून नूर (Bayun Nur) शहर में एक बार फिर एक प्राचीन ब्यूबोनिक प्लेग (Bubonic Plague) नामक जानलेवा बीमारी फैलने की खबर आ रही है। तथा इस महामारी के कुछ मामले सामने आए हैं। इसके बाद पूरे चीन में थर्ड लेवल का अलर्ट जारी किया गया है।

पीपुल्स डेली के माध्यम से चीन की सरकार ने बुबोनिक प्लेग की रोकथाम और नियंत्रण के लिए चेतावनी जारी की है। यही नहीं मंगोलिया खोवद (Khovd) क्षेत्र से भी 1 जुलाई को इस महामारी से जुड़े कुछ मामले सामने आ आए हैं। जहाँ एक ही परिवार के दो सदस्यों की ब्यूबोनिक प्लेग के कारण मौत हो चुकी है।

सामान्यतया अति वर्षा के कारण बाढ़ का पानी जंगली कृंतकों/प्राणियों बिलों में भर जाता है जिससे उनकी लाखों की संख्या में उनकी मृत्यु हो जाती है और उनके शव सड़ने लगते हैं जिससे भयंकर संक्रमण फैल सकता है। अक्सर यह देखा गया है कि भूकंप अथवा अति वर्षा के कारण बाद ब्यूबोनिक प्लेग तेजी से फैलता है। लेकिन यदि लापरवाही बरती गई और समय रहते इस पर नियंत्रण नहीं किया गया तो ब्यूबोनिक प्लेग का संक्रमण चीन के बाहर संसार के किसी भी देश में फैल सकता है। और दुनिया एक महामारी का अंजाम भुगतने के लिए तैयार रहे।

बिलकुल साफ़ है चीन सारी दुनिया को बर्बाद करने पर तुला हुआ है क्या कारण है चीन से एक के बाद एक महामारी आ रही है हैरान करने वाली बात है। क्यों बार-बार चीन संक्रामक बीमारियों का केंद्र बना हुआ है यह विश्व स्वास्थ्य संगठन के लिए एक व्यापक एवं विशेष जाँच का विषय है। प्लेग भूमध्य रेखा के अत्यंत उष्ण प्रदेश को छोड़कर संसार के किसी भी देश में हो सकता है।

ब्यूबोनिक प्लेग अर्थात ‘काली मौत’ क्या है

यह महामारी ब्यूबोनिक प्लेग; एक प्रकार के जीवाणु “येरसीनिया पेस्टिस” नामक एक बैक्टीरिया के संक्रमण से होती है। इस महामारी को ब्लैक डेथ नाम (Black Death/Bubonic Plague) से भी जाना जाता है। प्लेग का सटीक कारण कई वर्षों तक अज्ञात रहा। यह मुख्यत: जंगली कृंतकों/प्राणियों (wild rodents) जैसे मार्मट (Marmots), चूहों, खरगोशों, गिलहरियों पर भोजन के लिए निर्भर रहने वाले पिस्सू (Fleas) के जरिए फैलता है। आदमी में यह रोग प्रत्यक्ष संसर्ग अथवा पूर्वी मूषक पिस्सू के दंश से होता है । पहले इस रोग के संक्रमण से चूहे मरते हैं तब आदमी को रोग लगता है। इस कारण इस रोग के जीवाणु को जोनोटिक बैक्टीरिया (Zoonotic Bacteria) भी कहते हैं।

बैक्टीरिया येरसीनिया पेस्टिस है संक्रमण का कारण

ब्यूबॉनिक प्लेग मुख्यतया चूहों के शरीर पर पलने वाले पिस्सुओं के काटने की वजह से फैलता है। सबसे पहले 1894 में फ्राँसीसी जीवाणु-विज्ञानी आलॆक्सान्द्रे यरसन एव हांगकांग के किटा साटो ने प्लेग फैलाने वाले बैक्टीरिया येरसीनिया पेस्टिस का पता लगाया। इसके बाद 1898 में फ्राँसीसी पॉल-लुई सीमॉन ने बताया कि प्लेग चूहे और गिलहरी जैसे छोटे-छोटे जानवरों में पाए वाले पिस्सू से फैलता है।

व्यापक अनुसंधान से अब यह ज्ञात हो चुका है कि लगभग 180 जाति के कृंतकों/प्राणियों, जिनमें मारमोट, गिलहरी, जरबीले, मूस, चूहे, आदि शामिल हैं, प्लेग से संक्रमित/आक्रांत होते हैं। इनमें 70 जातियों के पिस्सू प्लेग संवाहक पाये जाते हैं। पिस्सू (जिनापसेल्ला चियोपिस) इन कृंतकों का रक्तपान करता है।

पहले मूस (Rattus norvegicus) प्लेग से संक्रमित होते हैं। इनसे चूहों (Rattus rattus) को संक्रमण लगता है। जब चूहे मरने लगते हैं तो प्लेग के जीवाणुओं से भरे पिस्सू चूहों को छोड़कर आदमी की ओर दौड़ते हैं। जब आदमी को पिस्सू काटते हैं, तो दंश में अपने अंदर भरा संक्रामक द्रव्य जिसमें येरसीनिया पेस्टिस होता है रक्त में मिला देते हैं। चूहों का मरना आरंभ होने के दो तीन सप्ताह बाद मनुष्यों में प्लेग फैलता है। यदि इसका इलाज सही समय पर नहीं करवाया गया, तो इससे एक वयस्क की 24 घंटे के अंदर मौत हो सकती है।

प्लेग का जीवाणु सरलता से संवर्धनीय है और गिनीपिग (guinea pig) तथा अन्य प्रायोगिक पशुओं में रोग उत्पन्न कर सकते हैं। ऐसे में कच्चे मार्मट के मांस के सेवन से बचना चाहिए। ध्यान देने की जरुरत प्लेग एक संक्रमित व्यक्ति से दूसरे स्वस्थ्य व्यक्ति में फैलता है। शव के अंतिम संस्कार से भी संक्रमण फैल सकता है। संक्रमण फैलने के अन्य मुख्य कारण हैं अंतरराष्ट्रीय व्यापार, संक्रमित पर्यटक, एवं संक्रमित भोज्य पदार्थ उत्पाद इत्यादि।

पूर्व में भी यूरोप, एशिया और अफ्रीका में अपना कहर बरपा चका है

ब्यूबोनिक प्लेग महामारी ने १४वीं शतब्दी में यूरोप (Europe) की आधी आबादी को खत्म कर दिया था। यूरोप में इसका कहर करीब 3 साल 1347 से 1350 तक बरपा। 1346 में यूरोप के जहाज चीन पहुंचे थे। यहां प्लेग से प्रभावित काले चूहे जहाज में सामानों के साथ सवार हो गए। यूरोपीय व्यापारी नहीं जानते थे कि वे चूहों के साथ प्लेग के संक्रमण को भी साथ ले जा रहे हैं। जानकारी के अनुसार सबसे पहले प्लेग से प्रभावित चूहों ने यूक्रेन के क्रीमिया में जहाजों में प्रवेश किया। जहाज वापिस अपने देश जाने के लिए निकल पड़े। व्यापारिक जहाजों से प्लेग इटली, स्पेन, इंग्लैंड, फ्रांस, आस्ट्रिया, हंगरी, स्विट्‌ज़रलैंड, जर्मनी, स्कैन्डिनेविया और बॉल्टिक श्रेत्र में फैल गया। सिल्क रोड’ से आने वाले व्यापारिक जहाजों से संपर्क मार्ग से प्लेग एशिया, दक्षिणएशिया, मध्य एशिया और अफ्रीका में फैल गया। इससे अनुमानतः 1350 तक प्लेग के कहर एशिया और अफ्रीका में भी साढ़े सात करोड़ से लेकर २० करोड़ लोगों की मृत्यु हुई थी।

भारत में भी हुआ था प्लेग का आक्रमण

19वीं शताब्दी में प्लेग ने भारत पर भी आक्रमण किया। सन् 1815 में तीन वर्ष के अकाल के बाद गुजरात के कच्छ और काठियावाड़ में इसने डेरा डाला, अगले वर्ष हैदराबाद (सिंध) और अहमदाबाद को अपनी चपेट में ले लिया और सन् 1836 में पाली (मारवाड़) से चलकर यह मेवाड़ पहुँचा गया, पर वहां. रेगिस्तान की बालू के बेहद अधिक तापमान में बैक्टीरिया अधिक समय तक सक्रिय/जीवित नहीं रह पाया। इसके बाद सन् 1823 में केदारनाथ (गढ़वाल) में, सन् 1834 से 1836 तक उत्तरी भारत के अन्य स्थलों पर प्लेग फैल गया और सन् 1849 में यह संक्रमण दक्षिण भारत में जा पंहुचा। सन् 1876 में प्लेग का एक और प्रकोप/आक्रमण हुआ तथा इसने सन् 1898 से अगले 1918 तक 20 वर्षों तक इसने बंबई और बंगाल को हिला कर रख दिया था।

ब्यूबोनिक प्लेग के लक्ष्ण

संक्रमण होने के कारण जाड़ा देकर तेज बुखार आता है और अनियमित ढंग से घटता-बढ़ता है। इस बीमारी के शुरुआती लक्षण हैं जैसे अचानक बुखार आना, ठंड लगना, सिर दर्द, शरीर में दर्द, कमजोरी महसूस होना, मांसपेशियों और सिर में दर्द, कफ, खून की उल्टी और मितली आना, हृदय की दौर्बल्यता तथा अवसन्नता, तिल्ली बढ़ना और रक्तस्त्रावी दाने निकलना, तेज बुखार के साथ, अंगपीड़ा और लसीका ग्रंथियाँ स्पर्शासह्य एवं सूजन आ जाती है।

रक्तपुतिता की प्रवृत्ति के साथ शरीर काला पड़ जाता है और इसी कारण से इस रोग को काली मौत नाम दिया गया है। इसके अन्य अंतर्निहित लक्षण हैं जैसे खूनी उल्टी, पेट में गैस की समस्या पाचनतंत्र की बीमारी, शरीर के अंगों होना, स्नायु तंत्र में दर्द/पीड़ा और सूजन के कारण मानव शरीर अंग के फूलने लगते हैं । साथ ही अन्य लक्षणों की बात करें तो त्वचा का रंग बदल जाता है, और त्वचा के उपर काले धब्बों की भी शिकायत होती है तेज बुखार के साथ उनमें मवाद भर आता यह तीव्र गति से बढ़ता है।

कुछ ही दिनों में संक्रमित की मौत हो जाती है। मगर न्यूमॉनिक प्लेग ज़्यादा संक्रामक है। ये बीमारी रोगी के सीध संपर्क में आने से उसकी सांसों या खांसी से निकले बैक्टीरिया के संक्रमण से हो सकता है। न्यूमॉनिक प्लेग की वारदातें अपेक्षाकृत कम होती हैं। लेकिन इस बीमारी में सांस लेने में कठिनाई पैदा होती है और खांसी आती है।

डब्लूएचओ के अनुसार, ब्यूबोनिक प्लेग के लक्षणों (symptoms of bubonic plague) का उद्भवकाल 1 से 12 दिन है। लेकिन प्लेग को सामान्यतया पनपने में एक से सात दिन लग सकते हैं। ये बीमारी केवल मरीज़ के संपर्क में आने से तो नहीं लगती लेकिन मरीज़ की ग्रंथियों से निकले द्रव्यों के सीधे संपर्क में आने से ब्यूबॉनिक प्लेग हो सकता है।

पिस्सू (जिनापसेल्ला चियोपिस) मनुष्यों का रक्तपान करता है काटने पर इसमें प्लेग बेसिलस, येरसीनिया पेस्टिस होता है, शरीर में प्रवेश करता है और लसीका प्रणाली के माध्यम से निकटतम लिम्फ नोड तक पहुंचता है। हमारे संपूर्ण शरीर में छोटी लसीका ग्रंथियाँ होती हैं जो एक दूसरे के पास समूह या चेन में होती हैं मुख्यतया गर्दन, काँख और श्रोणि के किनारे इनमें सूजन आ जाती है।

लिम्फ नोड्स में जहां यह बेसिलस येरसीनिया पेस्टिस रेप्लिकेट करता है। अपना पुनरुत्पादन/ प्रतिलिपि बनाता है इससे लिम्फ नोड में फिर सूजन आ जाती है। लसीका ग्रंथियों समूहों में संक्रमण के उन्नत चरणों में लिम्फ नोड्स मवाद से भर जाते हैं खुले घावों में टूट सकते हैं। तनाव और दर्दनाक हो जाता है, और इसे ‘बुबो’ कहा जाता है।

प्लेग एक जैविक हथियार

पूर्व में प्लेग जैविक हथियार के रूप में मंगोल सेना ने उपयोग किया। 1346 में मंगोल सेना ने प्लेग से मरने वाले मंगोल योद्धाओं की लाशों को क्रीमिया के घेराबंद काफा (वर्तमान में थियोडोसिया) शहर की दीवारों के अंदर वहां के निवासियों को संक्रमित करने के उद्देश्य से फेंक दिया था।। ऐसा अनुमान है कि यूरोप में ब्लैक डेथ के आगमन के पीछे भी शायद उनके इसी करतूत का हाथ था।

रोगाणु युद्ध का उपयोग फ़्रांसिसी सेना ने भारतीय फौज के खिलाप से हार के डर से युद्ध के अंतिम दौर में पिट किले की घेराबंदी (1763) के दौरान होने वाले पोंटियक विद्रोह के बाद किया। भारतीयों योद्धाओं को चेचक-संक्रमित कम्बल देने की घटना का उल्लेख एक सन्दर्भ में ब्रिटिश कमांडर जेफ्री एमहर्स्ट और स्विस-ब्रिटिश अधिकारी कर्नल हेनरी बूके के पत्र-व्यव्हार में मिलता है। इस प्रलेखित ब्रिटिश प्रयास ने सफलतापूर्वक भारतीयों को संक्रमित किया था। आज भी दुनिया के कई ताकतवर देशों के पास जैविक हथियारों का संग्रह है जो युद्ध में इनका उपयोग कर सकते हैं। अचानक जैविक आक्रामण होने के कारण प्लेग संक्रमण से पूरी दुनिया में भारी तबाही की आशका है। यह एक अति अमानवीय कृत्य होगा।

एंटीबायोटिक दवाओं से इलाज संभव

प्लेग जानलेवा बीमारी है लेकिन ब्यूबोनिक प्लेग का इलाज एंटीबायोटिक दवाओं के जरिए संभव है। लेकिन संक्रमित व्यक्ति का इलाज समय पर शुरू होना बेहद जरूरी है। नई औषधियों स्ट्रेप्टोमाइसिन, टेट्रासायक्लाइन, सिफालोस्पोरिन Gentamicin, Doxycycline और Ciprofloxacin तथा सल्फा औषधियों में सल्फाडाज़ीन और सल्फामेराज़ीन इनके विरुद्ध प्रभावी एवं कारगर पायी गयी हैं प्लेग से बचने के लिए टीका विकसित करने के लिए शोधकार्य जारी हैं। लेकिन अभी तक कोई प्रभावी टीका उपलब्ध नहीं सका है। अगर प्लेग का प्रभावी ढंग से इलाज ना किया जाए तो बीमारी से पीड़ित लोगों की मृत्यु दर 90 प्रतिशत तक हो सकती है।

प्लेग की रोकथाम के उपाय

प्लेग के मरीज़ की सांस और थूक के ज़रिए उनके संपर्क में आने वाले लोगों में भी प्लेग के बैक्टीरिया का संक्रमण हो सकता है। इसलिए प्लेग के मरीज़ों का इलाज करते समय या उनके संपर्क में रहते समय एहतियात बरतने की आवश्यकता होती है। प्लेग की सवारी जीवाणु, पिस्सू और चूहे के त्रिकोण पर बैठकर चलती है और जीवावसादक से जीवाणु, कीटनाशक (10ऽ डी.डी.टी.) से पिस्सू और चूहा विनाशक उपायों से चूहों को मारकर प्लेग का उन्मूलन संभव है। प्लेग से बचने के लिए प्लेग के आगमन से पूर्व टीकाकरण एक सक्षम उपाय है। रोडेंट्स (Rodents) के संपर्क में आने से बचना चाहिए। कच्चे मार्मट के मांस के सेवन से बचना चाहिए। संक्रमित पर्यटन, अंतरराष्ट्रीय व्यापार, संक्रमित भोज्य पदार्थ उत्पादों का निषेध संक्रमण रुकने तक होना चाहिए। जब तक लोग साफ सफाई का ध्यान नहीं रखेंगे वे प्लेग का शिकार होते रहेंगे। कोई भी जाति, या आयु का नरनारी इससे बचा नहीं है।

(लेखक जंतु विज्ञान विभाग, दीनदयाल उपाध्याय गोरखपुर विश्वविद्यालय के प्रोफ़ेसर हैं)

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