सीमा चतुर्वेदी
भोजपुरी फिल्मों का हर एक हिट हीरो राजनीति में फिट हो गया पर हिरोइन एक भी सियासत को नहीं भा सकी। भोजपुरी फिल्मों के हर हिट नायक को राजनीति में अवसर और जनसमर्थन मिला।
हर हीरो को सफलता मिलती रही पर एक भी नायिका को अवसर ही नहीं मिला। ऐसा क्यों ? इसका जवाब यही है कि देश की राजनीति, भोजपुरी फिल्म इंडस्ट्री और पूरा समाज आज भी पुरुष प्रधान है।
अश्लील और फूहड़ तरीके से महिलाओं को नचवा कर कुछ फिल्में बेची जाती हैं, समाज ऐसी फिल्में मजा ले लेकर देखता है। नायिका यानी लीड रोल करने वाली महिला कलाकार नचनिया और आइटम कहलाती है।
भोजपुरी फिल्मों में हिट तो सियासत में फिट
भोजपुरी फिल्मी स्टार्स पर्दे पर चमकने के बाद सियासत में भी स्वीकारे जाते हैं। हम-आप लोकप्रिय भोजपुरी सिनेमा के सुपरहिट अभिनेताओं को वोट देते हैं, उनसे ये सवाल नहीं पूछते कि भोजपुरी फिल्मों में नारी की इतनी दुर्दशा क्यों ? हिरोइन का अंग-प्रदर्शन और अश्लीलता बेच कर पैसा कमाया क्या महिला अपमान नहीं ?
ऐसे फिल्मों के नायक ही फिल्म के फिफ्टी पर्सेंट के निर्माता होते हैं। सुपरहिट हो चुके हीरो के इशारे पर ही फिल्म का शिल्प तैयार होता है। फूहड़ता और अश्लीलता भी हीरो ही तय करता है।

भोजपुरी फिल्म नायिकाएं स्वीकार नहीं
ऐसी फिल्मों में अश्लील दृश्य देने वाली नायिकाओं को समाज अपना नेता नहीं स्वीकारेगा, इसलिए इन्हें राजनीतिक दल चुनाव नहीं लड़वाते।
पर वो फिल्मी हीरो स्वीकार कर लिया जाता है जो अश्लीलता को जन्म देने का मुख्य दोषी होता है। इस अंधेरगर्दी में फिल्म इंडस्ट्री से लेकर सियासत और जनता सबका रोल है, सबके सब पुरुष प्रधानता के पैरोकार प्रतीत होते हैं।
कांग्रेस में हारे, भाजपा ने जिताया
भोजपुरी फिल्म इंडस्ट्री ने अपनी माटी की सुगंध को सम्मान दिया या अश्लीलता,फूहड़ता का बाजार खड़ा किया ! ये अलग विषय है,पर ये सत्य है कि यहां जो पुरुष कलाकार हिट हुआ वो सियासत में फिट हो गया।
बिहार और यूपी के पूर्वांचल जिलों की क्षेत्रीय भाषा, लोकसंगीत, लोकशैली, परम्पराओं और रीति-रिवाजों से सजी भोजपुरी फिल्मों ने अपनी माटी का मान भी बढ़ाया है, पर कुछ ने क्षेत्रीय भाषा और लोकसंगीत के साथ अन्याय किया है।
भोजपुरी फिल्म इंडस्ट्री का इतिहास बहुत पुराना नहीं है। करीब तीन दशकों में भोजपुरी फिल्म उद्योग ने जितनी धूम मचाई फिल्मों में हिट हर हीरो सियासत में फिट होता गया।

रविकिशन हों मनोज तिवारी, निरहुआ, पवन सिंह या खेसारी लाल सब के लिए यूपी-बिहार की सियासत ने रेड कार्पेट बिछा दिए। ये बात अलग है कि इन कलाकारों को भाजपा की सियासत खूब रास आई।
रविकिशन कांग्रेस से और मनोज सपा से लड़ें थे चुनाव
यूपी में कलाकारों को राजनीति में लाने की शुरुआत कांग्रेस और समाजवादी पार्टी ने की थी। लेकिन इन कलाकारों को चुनावी जीत की सफलता भाजपा में मिली। भाजपा के उभार के दौर में ही भोजपुरी फिल्म इंडस्ट्री के अलावा टीवी सीरियल कलाकार स्मृति ईरानी और हास्य कलाकार राजू श्रीवास्तव ने भाजपा परिवार में कलाकारों का कुनबा बढ़ाया।
जो भी सफल कलाकार सियासत की दुनिया में आया, कामयाब हुआ। सबको सबकुछ हासिल हुआ,सत्ता और सम्मान भी।
दरअसल भोजपुरी फिल्म इंडस्ट्री का गोल्डेन टाइम 2000 का दशक रहा। रविकिशन पहले से ही स्थापित थे और मनोज तिवारी की ख्याति बढ़ रही थी। इस दौरान कांग्रेस ने रविकिशन को और समाजवादी पार्टी ने मनोज तिवारी को राजनीति में एंट्री करवा कर चुनाव लड़वाया, पर कामयाबी नहीं मिली। रवि कांग्रेस के टिकट पर जौनपुर से हारे थे और मनोज सपा के टिकट से गोरखपुर चुनाव में हारे।
भाजपा में सार्वाधिक कलाकार
2014 से सियासत में भाजपा का जबरदस्त उभार प्रारंभ हुआ। और उस दौर में ना सिर्फ हिन्दी फिल्मों के कलाकारों को बल्कि भोजपुरी फिल्मों के नायकों को भाजपा ने चुनावी जीत का हीरो बना दिया।
मनोज तिवारी पिछले डेढ़ दशक से तीन बार दिल्ली में लोकसभा चुनाव जीते। वो दिल्ली भाजपा के अध्यक्ष भी रहे। रवि किशन मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के संसदीय क्षेत्र गोरखपुर में दो बार लोकसभा चुनाव जीते।
निरहुआ नाम से प्रसिद्ध भोजपुरी स्टार दिनेश यादव ने 2022 में समाजवादी पार्टी के पारिवारिक गढ़ आजमगढ़ में लोकसभा सीट के उप चुनाव में अखिलेश यादव के कजिन धर्मेंद्र यादव को हरा कर जीत प्राप्त की।

बिहार में पवन सिंह को भाजपा ने 2024 में लोकसभा का टिकट दिया और फिर वापस ले लिया। लेकिन वो काराकाट से निर्दल चुनाव लड़ लिए। इस अनुशासनहीनता से नाराज़ भाजपा ने पवन को पार्टी से निकाल दिया। मौजूदा बिहार के चुनावी मौसम में पवन सिंह गृहमंत्री अमित शाह से मिले और एक बार फिर भाजपा से उनका रिश्ता कायम हुआ। उनके चुनाव लड़ने की बात चल ही रही थी कि पत्नी से विवाद के बाद ये तय हुआ कि वो चुनाव नहीं लड़ेंगे।
राजद ने खेसारी को, पीके ने रितेश को दिया मौका
फिलहाल भाजपा के कुनबे में ही ज्यादा तर भोजपुरी हीरो और गायक शामिल हुए हैं। अपवाद स्वरूप भोजपुरी स्टार खेसारी यादव मौजूदा बिहार चुनाव में राजद के टिकट पर चुनाव लड़ रहे हैं। इसी क्रम में प्रशांत किशोर की जन सुराज पार्टी ने बिहार के करगहर सीट से अभिनेता- गायक रितेश पांडेय को चुनावी मैदान में उतारा है।
मैथिली की संगीत साधना होगी बाधित
व्यवसायिक फिल्म नगरी हो या सियासत हो, यहां नैतिक मूल्यों की उम्मीद ज्यादा नहीं की जा सकती। राजनीति देशहित में नहीं स्वार्थ हित में काम करती है।
नहीं तो मैथिली ठाकुर को चुनावी राजनीति में लाकर उसकी संगीत साधना में बांधा नहीं पंहुचाई जाती। साधारण परिवार की कम उम्र की बिहार की इस बेटी ने अपनी कठोर साधना से भारतीय लोकसंगीत को दुनिया में पहुंचाने का प्रण लिया है।
सोशल मीडिया के जरिए मैथिली की सुर साधना को बिहार सहित पूरे देश की जनता ने बेहद पसंद किया और उसकी लोकप्रियता ने उसे सेलेब्रिटी बना दिया।
हो सकता है बिहार की ये बेटी राजनीतिक मंचों और चुनावी जनसभाओं में भीड़ इकट्ठा करने का राजनैतिक मकसद पूरा कर दे। ये भी हो सकता है कि मैथिली भाजपा के टिकट पर चुनाव जीत भी जाए।
संभव ये भी है कि उसकी लोकप्रियता अन्य सीटों पर भी भाजपा को फायदा पंहुचा दे। लेकिन बिहार की मिट्टी की खुश्बू को दुनिया तक पहुंचाने का संकल्प लें चुकी कम उम्र की इस संगीत साधक की साधना में व्यवधान का जिम्मेदार कौन होगा ?
वहीं स्वार्थ की राजनीति जिम्मेदार होगी जो अश्लील फिल्मों में महिलाओं का अंग-प्रदर्शन करवाने वाले सभी सुपर स्टार्स को सियासत में जगह देती हैं पर एक भी भोजपुरी फिल्म नायिका को सियासत में एंट्री नहीं देती।
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