
न्यूज डेस्क
मद्रास हाईकोर्ट ने कहा है कि नास्तिकों को भी अपने विचार रखने का अधिकार है। धर्म और ईश्वर के अस्तित्व पर अपने विचार व्यक्त करने में कुछ भी गलत नहीं है।
मद्रास हाईकोर्ट की एक खंडपीठ ने यह बातें एम दिव्यांगगम द्वारा दायर जनहित याचिका की सुनवाई के दौरान कहा। दिव्यांगगम ने याचिका दायर कर त्रिची में समाज सुधारकर पेरियार की मूर्ति के पास लगे शिलालेख को हटाने की मांग की थी, जिसमें लिखा है कि कोई भगवान नहीं है। इस पर यह भी लिखा है कि जो भी भगवान में विश्वास करते हैं, वे मूर्ख और बर्बर हैं।
फिलहाल कोर्ट ने इस शिलालेख को हटाने से इनकार कर दिया। इसके साथ ही उस याचिका को भी खारिज कर दिया जिसमें एम दिव्यांगगम ने राज्य के मुख्य सचिव को निर्देश देकर पेरियार की प्रतिमाओं के नीचे लिखे इन ‘अपमानजनक शब्दों’ को हटाने के लिए प्रार्थना की थी। हाईकोर्ट ने साफ शब्दों में कहा कि नास्तिकों को भी अपने विचार रखने का अधिकार है।
इस याचिका पर सुनवाई करते हुए जस्टिस एस मानिकुमार और सुब्रमणियम प्रसाद की पीठ ने कहा, ‘पेरियार ने जो कहा उसमें विश्वास किया और मूर्तियों पर अपने विचार रखने में कुछ भी गलत नहीं है।’ इस दौरान पीठ ने यह भी कहा कि धर्म और ईश्वर के अस्तित्व पर अपने विचार व्यक्त करने में कुछ भी गलत नहीं है।
गौरतलब है कि 17 सितंबर, 1967 को पेरियार के जीवित रहते त्रिची बस स्टैंड पर उनकी मूर्ति का अनावरण किया गया था। हाईकोर्ट की पीठ ने कहा, यदि याचिकाकर्ता को धर्म और ईश्वर के अस्तित्व पर अपने विचार व्यक्त करने के लिए संविधान के अनुच्छेद 19 के तहत संवैधानिक अधिकार है तो फिर दूसरों को भी उससे असहमत होने का अधिकार है।
दिव्यनायगम का तर्क था कि शिलालेख अपमानजनक है और पेरियार ने हजारों सभाओं को संबोधित किया था। पर, किसी भी सभा में उन्होंने ऐसे शब्दों (बर्बर)का प्रयोग नहीं किया था जो शिलालेख पर लिखा हुआ है।
याचिकाकर्ता ने कहा कि यह विचार डीके पार्टी प्रमुख के वीरमणि के थे, जिसे उन्होंने पेरियार की मूर्ति के नीचे लिखवा दिया। हालांकि अपने आदेश में पीठ ने कहा कि याचिकाकर्ता का यह तर्क कि सब कुछ वीरमणि द्वारा पेरियार के निधन के बाद किया गया था, तथ्यों के विपरीत है और इसे स्वीकार नहीं किया जा सकता।
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पेरियार के सामाजिक सुधार, जाति व्यवस्था को समाप्त करने, समान अधिकारों और भाईचारे का समाज स्थापित करने के दर्शन का प्रसार कभी भी गलत नहीं हो सकता है। न्यायाधीशों ने कहा, ‘पेरियार के अनुसार, ईश्वर में विश्वास ही असमानताओं का एकमात्र कारण था। पेरियार को नास्तिकता के लिए जाना जाता था और उनके भाषण और लेखन स्पष्ट हैं।’
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