जुबिली न्यूज डेस्क
इलाहाबाद: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने राज्य सरकार के नौकरशाहों और अधिकारियों के नाम के साथ ‘माननीय’ शब्द के इस्तेमाल पर कड़ी आपत्ति जताई है। कोर्ट ने इस संबंध में प्रमुख सचिव (राजस्व) को हलफनामा दाखिल करने का निर्देश दिया है और पूछा है कि आखिर किस कानून या प्रोटोकॉल के तहत अपर आयुक्त (अपील) को ‘माननीय अपर आयुक्त’ कहा गया।

जस्टिस अजय भनोट और जस्टिस गरिमा प्रसाद की पीठ ने योगेश शर्मा द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई के दौरान यह टिप्पणी की। कोर्ट ने कहा कि अधिकारियों को माननीय कहकर संबोधित करना संवैधानिक संस्थाओं और अदालतों की गरिमा को कम करने का एक निश्चित तरीका है। हाल के दिनों में यह प्रवृत्ति देखी जा रही है कि निचले स्तर से लेकर उच्च स्तर तक के राज्य अधिकारियों को पत्राचार और आदेशों में ‘माननीय’ कहकर संबोधित किया जा रहा है।
हाईकोर्ट ने स्पष्ट किया कि ‘माननीय’ शब्द का प्रयोग केवल मंत्रियों और संप्रभु संवैधानिक पदों पर आसीन व्यक्तियों के लिए किया जा सकता है। यह नियम राज्य सरकार के नौकरशाहों और अधिकारियों पर लागू नहीं होता। कोर्ट ने उदाहरण देते हुए कहा कि इस मामले में इटावा के जिलाधिकारी द्वारा कानपुर के मंडलायुक्त को ‘माननीय मंडलायुक्त’ लिखा गया है, जो नियमों के खिलाफ है।
कोर्ट ने प्रमुख सचिव (राजस्व विभाग) को यह भी निर्देश दिया है कि वह यह स्पष्ट करें कि क्या किसी अधिकारी के नाम या पद के पहले ‘माननीय’ शब्द लगाने को लेकर कोई आधिकारिक प्रोटोकॉल मौजूद है। इस मामले की अगली सुनवाई की तारीख 19 दिसंबर 2025 तय की गई है।
तेजाब की बिक्री को लेकर भी हाईकोर्ट का बड़ा कदम
इसी बीच इलाहाबाद हाईकोर्ट ने तेजाब की बिक्री पर रोक और उसके नियमन से जुड़ी जनहित याचिका को स्वतः संज्ञान मुकदमे में बदल दिया है। यह याचिका वर्ष 2014 में दाखिल की गई थी। याचिकाकर्ता द्वारा आगे पैरवी न करने की इच्छा जताए जाने के बाद कोर्ट ने यह फैसला लिया।
जस्टिस सौमित्र दयाल सिंह और जस्टिस विवेक सरन की खंडपीठ ने कहा कि केवल याचिकाकर्ता के मुकदमा वापस लेने की वजह से मामले को बंद करना न्यायहित में नहीं होगा। इसके चलते कोर्ट ने रजिस्ट्री को निर्देश दिया कि इस मामले को स्वतः संज्ञान याचिका के रूप में दर्ज किया जाए।
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