जुबिली न्यूज डेस्क
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने उत्तर प्रदेश सरकार को निर्देश दिया है कि वह सरकारी और निजी शिक्षण संस्थानों में अध्यापकों की समय पर उपस्थिति सुनिश्चित करने के लिए ठोस और प्रभावी तंत्र विकसित करे। अदालत ने टिप्पणी की कि गरीब और ग्रामीण परिवारों के बच्चों की शिक्षा पूरी तरह स्कूल पर निर्भर रहती है, ऐसे में शिक्षक का समय पर न पहुंचना उनके सीखने के अधिकार का हनन है।

“शिक्षक की देरी से शिक्षा का अधिकार प्रभावित” — हाईकोर्ट
न्यायमूर्ति पी.के. गिरि की खंडपीठ ने कहा —“यदि शिक्षक समय पर उपस्थित नहीं होते, तो बच्चों का सीखने का अधिकार प्रभावित होता है। यह संविधान द्वारा प्रदत्त शिक्षा, समानता और जीवन के अधिकार का उल्लंघन है। इसलिए शिक्षकों के बीच समयपालन को सख्ती से लागू करने की आवश्यकता है।”
कोर्ट ने राज्य सरकार को इस दिशा में एक ठोस प्रणाली तैयार करने का निर्देश दिया ताकि शिक्षकों की उपस्थिति पर प्रभावी निगरानी रखी जा सके।
सरकार से मांगी विस्तृत रिपोर्ट
सुनवाई के दौरान अदालत को बताया गया कि इस मुद्दे पर राज्य के मुख्य सचिव की एक उच्चस्तरीय बैठक आयोजित की जा रही है। इस पर कोर्ट ने कहा कि —“बैठक में क्या निर्णय लिया गया और सरकार इस दिशा में क्या ठोस कदम उठाने जा रही है, इसका विस्तृत विवरण अगली सुनवाई में प्रस्तुत किया जाए।” अदालत ने अगली सुनवाई की तारीख 10 नवंबर निर्धारित की है।
दो अध्यापिकाओं की याचिका पर सुनवाई
यह आदेश अध्यापिका इंद्रा देवी और लीना सिंह चौहान की याचिकाओं पर पारित हुआ। दोनों अध्यापिकाओं पर समय पर उपस्थिति दर्ज न करने के कारण विभागीय कार्रवाई की गई थी, जिसे उन्होंने हाईकोर्ट में चुनौती दी थी।
कोर्ट ने कहा — तकनीक से निगरानी संभव
अदालत ने टिप्पणी की कि “आजादी के बाद से राज्य सरकार शिक्षकों की नियमित उपस्थिति सुनिश्चित करने के लिए ठोस व्यवस्था नहीं बना सकी है।” न्यायमूर्ति गिरि ने कहा —“तकनीकी युग में मोबाइल एप, बायोमेट्रिक मशीन या डिजिटल उपस्थिति प्रणाली लागू करना अब बेहद सरल है। सरकार को इसे प्राथमिकता से लागू करना चाहिए।”
कोर्ट ने यह भी कहा कि यदि कोई शिक्षक कभी-कभार 10 मिनट देरी से आता है, तो इसे मानवीय भूल मानकर छूट दी जा सकती है, लेकिन इसे आदत बनाना स्वीकार्य नहीं होगा।
पहली गलती मानकर दी राहत
सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता अध्यापिकाओं ने भविष्य में समयपालन का आश्वासन दिया। इसे ध्यान में रखते हुए अदालत ने उनके खिलाफ हुई विभागीय कार्रवाई रद्द कर दी, साथ ही चेतावनी दी कि भविष्य में यदि ऐसा दोबारा हुआ तो सख्त कार्रवाई होगी। उत्तर प्रदेश के स्कूलों में शिक्षकों की अनियमित उपस्थिति लंबे समय से चिंता का विषय रही है। शिक्षा विभाग कई बार बायोमेट्रिक उपस्थिति प्रणाली लागू करने की बात कर चुका है, लेकिन व्यापक स्तर पर इसका पालन अब भी अधूरा है।
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